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________________ मधु-मधुसूदन सरस्वती - मधुका अर्थ शहद ही सबसे अधिक निश्चित है। मधुपर्क का उपयोग पूजन, श्राद्ध आदि धार्मिक कृत्यों में होता है । मधुपे - (पिके वंशज) शतपय० (११.७.२८) तथा कौषीतकि उपनिषदों ( १६.९) में उद्धृत मधु एक आचार्य का नाम है। मधुब्राह्मण मधुब्राह्मण किसी रहस्यपूर्ण सिद्धान्त की उपाधि है, जिसका उल्लेख शतपथ ब्राह्मण ( ४.१, ५, १८, १४.१.४, १३) तथा बृह० उप० (२.५,१६) में हुआ है। मधुर कवि - तमिल वैष्णवों में बारह आलवारों के नाम बड़े सम्मानपूर्वक स्मरण किये जाते हैं। इनके परम्परागत क्रम में मधुरकवि का छठां स्थान है । दे० 'आलवार' | मधुरत्रय-- तीन वस्तुएँ मधुर नाम से प्रसिद्ध हैं - घृत, मधु और शर्करा । व्रतराज, १६, के अनुसार घृत, दुग्ध तथा मधु मधुरत्रय कहलाते हैं। पूजोपचार में इनका उपयोग किया जाता है । 1 मधुवन -- व्रजमण्डल के बारह वनों में प्रथम व्रजपरिक्रमा के अन्तर्गत भी यह सर्वप्रथम आता है। यह स्थान मथुरा से ४-मील दूर है यहाँ कृष्णकुण्ड तथा चतुर्भुज, कुमार कल्याण और ध्रुव के मन्दिर हैं। लवणासुर की गुफा और वल्लभाषायणी की बैठक है। यहाँ भाद्रकृष्ण ११ को मेला लगता है । मधुश्रावणी - ' कृत्यसारसमुच्चय' ( पृ० १०) के अनुसार श्रावण शुक्ल तृतीया को मनुधावणी कहते हैं । मधुसूदन पूजा शाख शुक्ल द्वादशी को इसका अनुष्ठान होता है । इसमें भगवान् विष्णु का पूजन विहित है । व्रती इस व्रत से अग्निष्टोम यज्ञ का फल प्राप्त करता हुआ चन्द्रलोक में निवास करता है । मधुसूदन सरस्वती - अद्वैत सम्प्रदाय के प्रधान आचाय और ग्रन्थ लेखक इनके गुरु का नाम विश्वेश्वर सरस्वती और जन्म स्थान बङ्गदेश था । ये फरीदपुर जिले के कोटलिपाड़ा ग्राम के निवासी थे । विद्याध्ययन के अनन्तर ये काशी में आये और यहां के प्रमुख पण्डितों को शास्त्रार्थ में पराजित किया । इस प्रकार विद्वन्मण्डली में सर्वत्र इनकी कीर्तिकौमुदी फैलने लगी । इसी समय इनका परि चय विश्वेश्वर सरस्वती से हुआ और उन्हीं की प्रेरणा से ये दण्डी संन्यासी हो गये । मधुसूदन सरस्वती मुगल सम्राट शाहजहाँ के समकालीन थे। कहते हैं कि इन्होंने माध्य पंडित रामराज स्वामी के Jain Education International ४९१ ग्रन्थ 'न्यायामृत' का खण्डन किया था। इससे चिढ़कर उन्होंने अपने शिष्य व्यास रामाचार्य को मधुसूदन सरस्वती के पास वेदान्तशास्त्र का अध्ययन करने के लिए भेजा। व्यास रामाचार्य ने विद्या प्राप्त कर फिर मधुसूदन स्वामी के हो मत का खण्डन करने के लिये 'तरङ्गिणी' नामक ग्रन्थ की रचना की । इससे ब्रह्मानन्द सरस्वती आदि ने असन्तुष्ट होकर तरङ्गिणी का खण्डन करने के लिए 'लघुचन्द्रिका' नामक ग्रन्थ की रचना की । मधुसूदन सरस्वती बड़े भारी योगी थे। वीरसिंह नामक एक राजा की सन्तान नहीं थी । उसने स्वप्न में देखा कि मधुसूदन नामक एक यति हैं और उनकी सेवा से पुत्र अवश्य होगा । तदनुसार राजा ने मधुसूदन का पता लगाना प्रारम्भ किया। कहते हैं कि उस समय मधुसूदन जी. एक नदी के किनारे भूमि के अन्दर समाधिस्व थे । राजा खोजते खोजते वहाँ पहुँचा । स्वप्न के रूप से मिलतेजुलते एक तेजःपूर्ण महात्मा समाधिस्थ दीख पड़े । राजा ने उन्हें पहचान लिया । वहाँ राजा ने एक मन्दिर बनवा दिया कहा जाता है कि इस घटना के तीन वर्ष बाद मधुसूदनजी की समाधि टूटी। इससे उनकी योग सिद्धि का पता लगता है किन्तु वे इतने विरक्त थे कि समाधि खुलने पर उस स्थान को और राजा प्रदत्त मन्दिर और योग को छोड़ कर तीर्थाटन के लिए चल दिये । मधुसूदन के विद्यागुरु अद्वैतसिद्धि के अन्तिम उल्लेखानुसार माधव सरस्वती थे । इनके रचे हुए निम्नलिखित ग्रन्थ बहुत प्रसिद्ध है १. सिद्धान्तविन्दु यह शङ्कराचार्य कृत दशश्लोकी की व्याख्या है उसपर ब्रह्मानन्द सरस्वती ने रत्नावली नामक निबन्ध लिखा है । २. संक्षेप शारीरक व्याख्या - यह सर्वज्ञात्ममुनि कृत 'संक्षेप शारीरक' की टीका है। २. अद्वैतसिद्धि यह अद्वैत सिद्धान्त का अति उच्च कोटि का ग्रन्थ है । ४. अद्वैतरत्न रक्षण इसमें द्वैतवाद का खण्डन करते हुए अद्वैतवाद की स्थापना की गयी है। --- ५. वेदान्तकल्पलतिका - यह भी वेदान्त ग्रन्थ ही है । ६. गूढार्थदीपिका - यह श्रीमद्भगवद्गीता की विस्तृत टीका है। इसे गीता की सर्वोत्तम व्याख्या कह सकते हैं। ७. प्रस्थानभेद--- इसमें सब शास्त्रों का सामञ्जस्य For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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