SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 502
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८८ मण्डूकीयकथा-मथुरा मण्डूकीय कथा-ऋग्वेद के परिशिष्ट ब्राह्मण ग्रन्थ में मण्डूक त्रिपुरासुर के साथ भगवान् शङ्कर के युद्ध का विस्तृत या मण्डकीय की कथा मिलती है। मण्ड़कियों की कथा वर्णन इसमें पाया जाता है । पितरों का वर्णन भी विस्तार ऋक्प्रातिशाख्य में भी है। से मिलता है। व्रतों का वर्णन अधिक विस्तार से ५५-१०२ मतङ्ग उपागम-यह परमेश्वर आगम पर आश्रित एक अध्यायों में है। प्रयाग (१०३-११२ अ०), काशी (१८०उपागम है। १८५ अध्याय) और नर्मदा (१८७ से १९४ अ०) के मतसहिष्णुता-मत सहिष्णुता हिन्दुत्व की विशेषता है। भौगोलिक वर्णन और माहात्म्य दोनों पाये जाते हैं। यह सर्वधर्मसाम्य में विश्वास रखता है। वास्तव में मत्स्य पुराण की कई विशेषताएँ हैं। पहली विशेषता यह भारतीय धर्म परम्परा मतसहिष्णुता के ऊपर टिकी हुई है कि इसमें सभी पुराणों की विषयानुक्रमणी दी गयी है। इसमें धार्मिक समता अथवा सभी धर्मों के सह है। दूसरी विशेषता ऋषियों का वंश वर्णन है। तीसरी अस्तित्व का भाव निहित है। विशेषता राजधर्म का विशद वर्णन है। चौथी विशेषता मतसारार्थसंग्रह-अप्पय दीक्षित रचित वेदान्त विषय का प्रतिमालक्षण अर्थात विभिन्न देवताओं की मूर्तियों के ग्रन्थ । इसमें श्रीकण्ठ, शङ्कर, रामानुज, मध्व प्रभृति निर्माण का विधान है। आचार्यों के मतों का संक्षिप्त परिचय कराया गया है। मत्स्यावतार-विष्णु के दस अवतारों में से मत्स्यावतार मतिमानुष-रामानुजाचार्य रचित एक ग्रन्थ । प्रथम है। इसका आविर्भाव प्रलय काल में सृष्टिबीजों की मत्स्यजयन्ती-चैत्र शुक्ल पंचमी को इस व्रत का अनुष्ठान रक्षा के निमित्त होता है, क्योंकि नैमित्तिक प्रलय में होता है । इसी दिन भगवान् मत्स्य के रूप में अवतरित समस्त सृष्टि जलमग्न हो जाती है । दे० तैत्तिरीय संहिता हुए थे। इसलिए भगवान् विष्णु की मत्स्यावतार रूपिणी ७.१.५.१।। प्रतिमा का पूजन किया जाता है। मत्स्येन्द्रनाथ-हठयोग के विशिष्ट पुरस्कर्ता आचार्य मत्स्यद्वादशी-मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी को इस व्रत के (मछन्दरनाथ)। ये नाथ सम्प्रदाय के प्रथम आचार्य आदिपूर्व नियमों का पालन तथा एकादशी को उपवास करना नाथ के शिष्य थे । इतिहासवेत्ता आदिनाथ का समय चाहिए । द्वादशी के दिन व्रती को मन्त्रोचारण करते हए विक्रम की आठवीं शताब्दी मानते हैं तथा गोरक्षनाथ मृत्तिका लानी चाहिए। उसे आदित्य को समर्पित कर दसवीं शताब्दी के पूर्व उत्पन्न कहे जाते हैं। इसलिए शरीर पर लगाकर स्नान करना चाहिए। इसमें नारायण आदिनाथ के शिष्य एवं गोरक्षनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ के पूजन का विधान है। चार जलपूर्ण, पुष्पयुक्त कलशों की स्थिति आठवीं शताब्दी (विक्रम) का अन्त या नवीं को तिलपूर्ण पात्रों से आच्छादित कर चार समुद्रों का छादित कर चार समुद्री का शताब्दी का प्रारम्भ माना जा सकता है। नेपाल के लोग उनमें आवाहन करना चाहिए। सुवर्ण की मत्स्यावतार अधिकांशतः मत्स्येन्द्रनाथ तथा गोरक्षनाथ के भक्त हैं। रूपिणी प्रतिमा बनाकर उसका पूजन किया जाना चाहिए। मत्स्येन्द्रनाथ (पाटन)-गोंडा जिले में पाटन अथवा देवीपाटन रात्रिजागरण करना चाहिए । अन्त में चारों कलशों का नामक स्थान प्रसिद्ध देवीपीठ है। इसमें बहुत से प्राचीन ब्राह्मणों को दान करना चाहिए। इससे गम्भीर पापों तथा नवीन मन्दिर हैं, जिनमें बौद्ध मन्दिर भी है। का भी नाश हो जाता है। मत्स्येन्द्रनाथ किंवा मीननाथ का मन्दिर अति आकर्षक मत्स्यपुराण-यह शैव पुराण है। इसकी श्लोक संख्या है । यह शिवालय के ढंग का है । इसकी चमक-दमक बहुत नारदीय पुराण के अनुसार पंद्रह हजार है । किन्तु रेवा- ही निराली है। पास में स्तुपाकार मन्दिर है । बड़े-बड़े माहात्म्य, श्रीमद्भागवत, ब्रह्मवैवर्त पुराण और स्वयं वृक्षों से इसकी शोभा बढ़ जाती है। यहाँ का श्रीराधामत्स्यपुराण के अनुसार यह संख्या चौदह हजार है । मत्स्य- मन्दिर भी आकर्षक है। मन्दिरों में भारतीय मुस्लिम पुराण को मौलिक और सबसे प्राचीन माना जाता है। स्थापत्य का मिश्रण पाया जाता है ।। इसमें २९० अध्याय है तथा अन्तिम अध्याय सपूर्ण मत्स्य- मथुरा-वैष्णव हिन्दू भक्तों का पवित्र तीर्थस्थान । इसके पुराण का सूचीपत्र है। सम्बन्ध में कोई वैदिक उद्धरण नहीं मिलता । फिर भी मत्स्यावतार का वर्णन इस पुराण का मुख्य विषय है। ईसा के लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व से ही इसका माहात्म्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy