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________________ मणिदर्पण-मण्डूक ४८७ महन्त ( मठाधीश ) और अनेक शिष्य होते है । मठों के शिष्यत्व ग्रहण कर संन्यासी हो गये और सुरेश्वराचार्य के अधीन भूमि, सम्पत्ति आदि भी होती है, जिससे उनका नाम से ख्यात हुए । संन्यासी सुरेश्वर गुरु के साथ देश भ्रमण खर्च चलता है। साथ ही मठों के गृहस्थ लोग चेला भी करते रहे और जय शङ्कर ने शृंगेरी मठ की स्थापना की होते हैं जो प्रत्येक वर्ष उन मठों को दान देते हैं। तब उनको वहाँ का आचार्य बनाया। शृंगेरी मठ की ___ मठ प्राचीन बौद्ध विहारों के अनुकरण पर बने जान प्राचीन परम्परा से ऐसा जान पड़ता है कि वे बहुत दिनों पड़ते हैं, क्योंकि बुद्ध पूर्व संन्यासियों में मठ बनाने की प्रथा नहीं थी। संन्यास ग्रहण करने के पूर्व मण्डन मिश्र ने आपस्तम्बीय मणिदर्पण-आचार्य रामानुज रचित एक ग्रन्थ । मण्डनकारिका, भावनाविवेक और काशीमोक्षनिर्णय मणिप्रभा-पतञ्जलि के योगदर्शन का १६वीं शताब्दी के नामक ग्रन्थों की रचना की थी। संन्यास के बाद इन्होंने अन्त का एक व्याख्या ग्रन्थ । इसके रचयिता गोविन्दानन्द तैत्तिरीयश्रुतिवार्तिक, नैष्कर्म्यसिद्धि, इष्टसिद्धि या स्वासरस्वती के शिष्य रामानन्द सरस्वती हैं। राज्यसिद्धि, पश्चीकरणवात्तिक, बृहदारण्यकोपनिषद्द्वात्तिक, मणिमान्-शङ्कराचार्य एवं मध्वाचार्य के शिष्यों में लघुवात्तिक, वात्तिकसार और वात्तिकसारसंग्रह आदि परस्पर घोर प्रतिस्पर्धा व्याप्त रहती थी। मध्व अपने को ग्रन्थ लिखे । सुरेश्वराचार्य ने संन्यास लेने के बाद शाङ्कर वायु का अवतार कहते थे तथा शङ्कर को महाभारत में मत का ही प्रचार किया और अपने ग्रन्थों में प्रायः उसी उद्धृत एक अस्पष्ट व्यक्ति मणिमान् का अवतार मानते मत का समर्थन किया। थे । मध्व ने महाभारत की व्याख्या में शङ्कर की मण्डल-गोलाकार या कोणाकार चक्र । शाक्त मतावलम्बी उत्पत्ति सम्बन्धी धारणा का उल्लेख किया है। मध्व के रहस्यात्मक यन्त्रों तथा मण्डलों का प्रयोग करते हैं, जो पश्चात् उनके एक प्रशिष्य पण्डित नारायण ने मणि- धातु के पत्रों पर चित्रित या लिखित होते हैं । कभी-कभी मञ्जरी एवं मध्वविजय नामक संस्कृत ग्रन्थों में मध्व घटों पर ये यन्त्र एवं मण्डल अंकित होते हैं । साथ ही वणित दोनों अवतारों ( मध्व के वायु अवतार एवं शङ्कर अंगुलियों की धार्मिक मुद्राएँ, हाथों के धार्मिक कार्यरत के मणिमान् अवतार ) के सिद्धान्त की स्थापना गम्भीरता संकेत (जिसे न्यास कहते हैं) भी इन पात्रों या घटों पर से की है। उपर्यत माध्व ग्रन्थों के विरोध में ही 'शङ्कर- निर्मित होते हैं। ये यन्त्र, मण्डल एवं मूद्रायें देवी को दिविजय' नामक ग्रन्थ की रचना हुई जान पड़ती है। उस पात्र में आमन्त्रित करने के लिए बनायी जाती हैं । मणिमञ्जरो-माध्व सम्प्रदाय का एक विशिष्ट ग्रन्थ । मण्डलब्राह्मण उपनिषद्-यह परवर्ती उपनिषद् है । रचनाकाल १४१७ वि० है । कृष्णस्वामी अय्यर ने इसका मण्डक-वर्षाकालिक जलचर, जिसकी टर्र-टर्र ध्वनि की संक्षिप्त कथासार लिखा है । दे० 'मणिमान्'। तुलना बालकों के वेदपाठ से की जाती है। संभवतः मणिमालिका-अप्पय दीक्षित रचित लघु पुस्तिका । शव इसीलिए एक वेदशाखाकार ऋषि इस नाम से प्रसिद्ध थे । विशिष्टाद्वैत पर हरदत्त प्रभूति आचार्यों के सिद्धान्त का ऋग्वेदीय प्रसिद्ध मण्डूकऋचा (७.१०३ तथा अ० वेद अनुसरण करनेवाला यह एक निबन्ध है। ४.१५,१२) में ब्राह्मणों की तुलना मण्डूकों की वर्षाकालीन मण्डन भट्ट-आश्वलायन श्रौतसूत्र के ग्यारह भाष्यकारों ध्वनि से की गयी है, जब ये पुनः वर्षा ऋतु के आगमन में से मण्डनभट्ट भी एक हैं। के साथ कार्यरत जीवन आरम्भ करने के लिए जाग पड़ते मण्डन मिश्र-नर्मदा तटवर्ती प्राचीन माहिष्मती नगरी के हैं । कुछ विद्वानों ने इस ऋचा को वर्षा का जादू मन्त्र निवासी मीमांसक विद्वान् । मण्डन मिश्र अपने समय के माना है। जल से सम्बन्ध रखने के कारण मेढक ठंडा सबसे बडे कर्मकाण्डी थे, उनके गुरु कुमारिल भट्ट ने ही करने का गुण रखते हैं, एतदर्थ मृतक को जलाने के शङ्कराचार्य को मण्डन मिश्र के पास शास्त्रार्थ करने के पश्चात् शीतलता के लिए मण्डूकों को आमन्त्रित करते हैं लिए भेजा था। (ऋग्वेद १०.१६,१४)। अथर्ववेद में मण्डूक को शङ्कराचार्य ने मण्डन मिश्र को शास्त्रार्थ में परास्त ज्वराग्नि को शान्त करने के लिए आमन्त्रित किया गया किया । मण्डन मिश्र शास्त्रार्थ की शर्त के अनुसार उनका है (७.११६) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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