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________________ भैरवयामलतन्त्र-भैमवत ४८३ भैरवयामलतन्त्र-शाक्त साहित्य का प्रमुख तन्त्र । इसका इससे व्रती सूखोपभोग करता हआ स्वर्ग प्राप्त करता है। उल्लेख वामकेश्वर, कुलचूडामणि तन्त्र एवं आगमतत्त्व- भोज (राजा)-उज्जयिनी के प्रसिद्ध परमार राजा । धारा विलास में हआ है । वामकेश्वर इस तन्त्र का एक भाग है। इनकी दूसरी राजधानी थी। ये विद्या, कला और कवियों भैरवी-देवी के रौद्र रूप को भैरवी (भयानक) कहते हैं। के गणग्राही पारखी थे। व्याकरण, दर्शन काव्यकला यह भैरव ( शिव ) रौद्ररूप की स्त्री शक्ति है। शाक्त आदि पर इनके रचे अनेक विख्यात ग्रन्थ हैं । योगसूत्र पर मतावलम्बी लोग भैरवी की गणना दस महाविद्याओं में रची हुई योगमार्तण्ड नामक इनकी टीका अथवा वृत्ति करते हैं। एक बहुमान्य कृति है। यह बहत सरल भाषा में योग भैरवीचक्र-दे० 'वाममार्ग' । की व्याख्या करती है। भैरवतन्त्र-'आगमतत्त्वविलास' में उल्लिखित तन्त्रों में भौमवारव्रत-स्कन्दपुराण के अनुसार यह व्रत प्रत्येक एक तन्त्र । मङ्गलवार को करना चाहिए और एक शर्करापूरित भैरो (भैरवनाथ)-हिन्दुओं की धार्मिक नगरी काशी की। ताम्रपात्र दान करना चाहिए । इस प्रकार एक वर्ष व्रत रक्षा छः सौ देवताओं द्वारा, जिनके मन्दिर नगर में करते हए अन्तिम मंगलवार को एक गोदान करना बिखरे हुए हैं, होती है। विश्वेश्वर अथवा शिव इस नगरी चाहिए। मंगल देखने में सुन्दर एवं पृथ्वी के पुत्र कहे के राजा है। विश्वेश्वर के मुख्य दैवी नगररक्षक ( कोत- जाते हैं तथा उनका उपर्युक्त व्रत सौन्दर्य, रूप एवं धन वाल ) भैरोनाथ है, जिनका मन्दिर उनके स्वामी के प्राप्त कराता है। मन्दिर से एक मील से भी अधिक दूर उत्तर में स्थित भौमवत-(१) भौमवार को जब स्वाती नक्षत्र हो उस है। विश्वनाथजी को आज्ञानुसार वे देवों एवं मानवों पर दिन व्रती को नक्तपद्धति से आहार करना चाहिए। यह शासन करते है, वे सभी दुष्टात्माओं से नगर की रक्षा क्रम सात बार चलना चाहिए। मङ्गल ग्रह की प्रतिमा के लिए नियुक्त है । अतः ऐसे दुष्टों को नगर से बाहर बनवाकर उसे किसी ताम्रपात्र में स्थापित कर तथा रक्त करना उनका कर्तव्य है। भैरोनाथ अपनी आज्ञाओं का वस्त्र से आच्छादित करके केसर का अङ्गराग के समान पालन एक विशाल प्रस्तरगदा ( दण्ड ) से कराते हैं, जो मूर्ति पर लेप करना चाहिए । पुष्प, नैवेद्यादि अर्पित करके चार फुट लम्बी है एवं चाँदी से उसका ऊपरी भाग मढ़ा किसी ब्राह्मण को प्रतिमा दान में देनी चाहिए और देते हुआ है। इसकी पूजा रविवार तथा मंगलवार को होती समय निम्नांकित मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए : है । भैरोनाथ श्वान ( कुक्कुर ) की सवारी करते हैं, जो “यद्यपि त्वं कुजन्मा असि तथापि प्राज्ञाः त्वां 'मङ्गल' देवमति के सामने मन्दिर में प्रवेश करते ही दृष्टिगोचर इति कथयन्ति।" 'कूजन्मा' शब्द में श्लेष अलङ्कार है होता है। जिसके दो अर्थ हो सकते हैं; अमंगलकारी दिन में उत्पन्न भोगसंक्रान्तिव्रत-संक्रान्ति के दिन एक साथ सधवा स्त्रियों एवं पृथ्वी से उत्पन्न । मङ्गल की बाह्याकृति रक्त वर्ण की है को उनके पतियों के साथ बुलाकर उन्हें केसर, काजल, अतएव ताम्र, रक्त वर्ण का वस्त्र तथा केसर जो उसके वर्ण सुरमा, सिन्दूर, पुष्प, इत्र, ताम्बूल, कपूर तथा फल प्रदान के अनुकूल हैं, प्रयुक्त किये जाते हैं। करना चाहिए । तदुपरान्त उन्हें भोजन कराकर वस्त्रों (२) मंगलवार को ही मङ्गल का पूजन होना चाहिए। का जोड़ा देना चाहिए । एक वर्ष तक प्रति संक्रान्ति के प्रातःकाल मंगल के नामों का जप किया जाय (कुल २१ दिन इस व्रत का अनुष्ठान होता है । व्रत के अन्त में सूर्य नाम हैं, यथा, मंगल, कुज, लोहित, सामवेदियों के पक्षकी पूजा करके किसी ऐसे ब्राह्मण को जौ दान करना पाती, यम आदि) और त्रिभुजात्मक आकृति खींचकर उसके चाहिए जिसकी स्त्री जीवित हो। इससे व्रती कल्याण मध्य में एक छिद्र बनाकर केसर अथवा रक्त चन्दन के प्राप्त करता है। लेप से प्रत्येक कोण पर तीन नाम (आर, वक्र, कूज) भोगावाप्तिव्रत-इस व्रत में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के अङ्कित कर दिये जायँ । भारद्वाज गोत्र में उज्जयिनी नामक बाद प्रतिपदा से तीन दिन तक हरि का पूजन तथा पलङ्ग प्राचीन नगर में मङ्गल का जन्म हुआ था। उनका वाहन पर बिछाये जाने वाले वस्त्रों का दान किया जाता है। मेष है। यदि कोई व्यक्ति जीवनपर्यन्त इस व्रत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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