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________________ ४८० भुवनेश्वर-भूतवीर निबन्ध, १० ३६४ में दो श्लोक आये हैं जिन्हें तिथितत्त्व, पुट है, जो रामभक्ति पर कृष्णभक्ति का प्रभाव प्रकट निर्णयसिन्धु आदि ने उद्धृत किया है : करता है। इधर इसकी कई प्रतियाँ अयोध्या, रोवाँ आदि शुक्लाष्टम्यां तु माघस्य दद्याद् भीष्माय यो जलम् । से प्राप्त हुई है। संवत्सरकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति ।। भूखड़-उत्तर भारत में भटकने वाले शैव योगियों का वर्ग। वैयाघ्रपद्य गोत्राय सांकृतिप्रवराय च । यह औघड़ योगियों की ही एक शाखा है जिसे गोरखनाथ अपुत्राय ददाम्येतत् सलिलं भीष्मवर्मणे ।। के एक शिष्य ब्रह्मगिरि ने गुजरात में स्थापित किया था। ब्राह्मण तक भी भीष्म पितामह जैसे आदर्श क्षत्रिय ब्रह्मगिरि ने अपने सम्प्रदाय की पाँच शाखाएँ बनायीं : को जलदान करना अपना धार्मिक कर्तव्य मानते हैं। रूखड़, सूखड़, भूखड़, कूकड़ तथा गूदड़ । प्रथम दो संख्या भुवनेश्वर-कटक और जगन्नाथपुरी के मध्यस्थित उड़ीसा में अधिक हैं। भूखड़ तथा कूकड़ अपने भिक्षापात्रों में का प्रसिद्ध तीर्थस्थान। यह स्थान प्राचीन उत्कल की राज- धूपादि सुगन्धित पदार्थ नहीं जलाते, जब कि अन्य ऐसा धानी था और अब भारत के स्वतन्त्र होने पर उड़ीसा की ___करते हैं । गूदड़ संन्णसियों के महापात्र हैं। इनका प्रिय राजधानी हो गया है। भुवनेश्वर काशी की तरह ही उच्चारण 'अलख' शब्द है। औघड़ों का एक छठा वर्ग शिवमन्दिरों का नगर है । इसे 'उत्कल-वाराणसी', 'गुप्त- अखड़ कहलाता है । काशी' भी कहते हैं। पुराणों में इसे 'एकाम्रक्षेत्र' कहा भूत-जो व्यतीत, विगत बीता या हो चुका है। अव्यक्त गया है। भगवान् शङ्कर ने इस क्षेत्र को प्रकट किया से स्थूल जगत् के विकास में घनीभूत हुए वर्गीकृत तत्त्वों इससे इसे 'शाम्भव-क्षेत्र' भी कहते हैं। यहाँ लिङ्गराज को भी (स्थिर के अर्थ में) भूत कहते हैं, जैसे आकाश, वायु, और मुक्तेश्वर के मन्दिर अपने धार्मिक स्थापत्य के लिए अग्नि, जल और क्षिति । उत्पन्न होकर विद्यमान प्राणी प्रसिद्ध हैं। ये मन्दिर नागर स्थापत्य शैली के सर्वोत्तम और सूक्ष्म शरीरधारी (प्रेत) आत्मा भी भूत कहे जाते हैं। नमूने हैं। भूतडामर तन्त्र-शाक्तों के तन्त्र साहित्य में इस ग्रन्थ का भुवनेश्वरयात्रा-'गदाधरपद्धति' के कालसार भाग, १९०- विषय जादू-टोना है । १९४ में भुवनेश्वर की चौदह यात्राओं का वर्णन किया भूतपूरीमाहात्म्य-हारीतसंहिता का एक अंश भूतपुरीगया है, यथा प्रथमाष्टमो, प्रावारषष्ठी, पुष्यस्नान, आज्य माहात्म्य है । भूतपुरी पेरुम्बुदूर का नाम है, जहाँ रामानुज कम्बल आदि । स्वामी का जन्म हुआ था। भूतपुरीमाहात्म्य में स्वामीजी भुवनेश्वरी-शाक्त उपासना सिद्धान्त के अनुसार दस महा- की प्रारम्भिक अवस्था का वर्णन है । विद्याएँ मानी गयी हैं। निगम जिसे विराट विद्या कहते भूतभैरवतन्त्र-'आगमतत्त्वविलास' में उद्धृत चौसठ तन्त्रों हैं, आगम उसे ही महाविद्या कहते हैं। दक्षिण तथा वाम की सूची में इस तन्त्र की भी गणना है। दोनों मार्ग वाले तान्त्रिक दसों विद्याओं की उपासना भूतमात्र्युत्सव-ज्येष्ठ मास की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक करते हैं। ये महाविद्याएँ हैं-महाकाली, उग्रतारा, इस व्रत का अनुष्ठान होता है। दे० हेमाद्रि, २.३६५षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगला- ३७० । 'उदसेविका' के ही तुल्य यह भी है। राजा भोज मुखी, मातङ्गी और कमला। के ग्रन्थ सरस्वतीकण्ठाभरण ( श्लोक ९४ ) के अनुसार भुवनेश्वरीतन्त्र-मिथ तन्त्रों में से एक 'भुवनेश्वरी तन्त्र' यह एक होली के जैसा जलक्रीडा उत्सव है । भ्रातृभाण्डा, भी है। भूतमाता तथा उदसेविका एक ही उत्सव के तीन नाम भुशुण्डिरामायण-रामोपासक सम्प्रदाय के अनेकानेक है । दे० हेमाद्रि, २.३६७। ग्रन्थों में भुशुण्डिरामायण भी एक है। कुछ विद्वानों का भूतवीर-ऐतरेय ब्राह्मण (७.२९) में उद्धृत पुरोहितों के मत है कि यह अध्यात्मरामायण से पहले लिखी एक परिवार का नाम, जो जनमेजय द्वारा काश्यपों को जा चुकी थी। कुछ विद्वानों के अनुसार इसका रचनाकाल निकालकर, उनके स्थान पर नियुक्त किये गये थे। १३०० ई० के आस-पास है। परन्तु यह निश्चयपूर्वक काश्यपों के एक परिवार असितमगों ने पुनः जनमेजय की नहीं कहा जा सकता। इसके भीतर माधुर्य भाव का गहरा कृपा प्राप्त की तथा भूतवीरों को बाहर निकलवा दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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