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________________ भगवविषयम्-भजन ४६७ जो क्रान्तिकारी विचार गीता उपस्थित करती है वह भारतीय और कतिपय विदेशी भाषाओं में विशाल साहित्य यह है कि अन्य सम्प्रदाय केवल उन्हीं लोगों को मोक्ष का की रचना हुई है। आश्वासन देते हैं जो गृहस्थी (सांसारिकता) का त्याग कर भगवदविषयम-यह नम्भ आलवार के 'तिरुवोपमोलि' नामक संन्यास ग्रहण कर लेते हैं, जब कि गीता उन सभी स्त्री ग्रन्थ पर किसी अज्ञात लेखक द्वारा तमिल भाषा में रचित पुरुषों को मोक्ष का आश्वासन देती है जो गृहस्थ हैं, एक भाष्य है। ए. गोविन्दाचार्य ने इसके कुछ अंशों का सांसारिक कर्मों में तल्लीन हैं। उपर्युक्त विचार ने ही इस अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत किया है। ग्रन्थ को लोकप्रिय बना दिया है। यह साधारण लोगों भगवद्भावक-छान्दोग्य तथा केन उपनिषदों के अनेकाकी उपनिषद् है। नेक टीकाकारों में से भगवद्भावक भी एक हैं। गीता में मोक्ष के तीन साधन कहे गये हैं। पहला भातिन भगतानी-नाचने गाने वाली एक जाति की ज्ञान मार्ग, जो उपनिषदों में, सांख्य दर्शन में तथा और लड़कियों को ब्यङ्गयात्मक भाषा में भगतिन या भगतानी भी स्पष्ट रूप में बौद्ध व जैन दर्शनों में चर्चित है। (भक्त की पत्नी) कहते हैं। इस जाति की लड़कियाँ इस दूसरा है कर्म मार्ग । यह हिन्दू धर्म का सबसे प्राचीन रूप पेशे में प्रवेश के पूर्व नाम मात्र के लिए किसी बूढ़े संन्यासी है-अपने कर्तव्यों का पालन, जिसे संक्षेप में 'धर्म' कहते से विवाह कर लेती है, जो अपनी इस पत्नी को सभी हैं । आरम्भ में ऐसे धर्मों या कर्तव्यों में यज्ञों का महत्त्व प्रकार के सम्बन्धों की छूट देने के लिए डेढ़ दो रुपया दक्षिणा था, किन्तु जाति, अवस्था, परिवार व सामाजिक कर्तव्य प्राप्त कर लेता है। कभी-कभी ऐसे वर के अभाव में उन भी इसमें सम्मिलित थे। गीता का कर्मसिद्धान्त, जिसे स्त्रियों का विवाह गणेश या किसी भी देवता की प्रतिमा कर्मयोग कहते हैं, यह है कि धर्मग्रन्थों में वर्णित कर्म के साथ कर देते हैं। विवाह के बिना इस पेशे में प्रवेश का प्रतिपादन केवल क्षणिक सुख या स्वर्ग ही दिला । करना वे पाप समझती है। सकता है, जबकि निष्काम भाव से किये जाने से यही भगववाराधन क्रम-आचार्य रामानुज द्वारा रचित एक कर्मसम्पादन मोक्ष दिला सकता है। तीसरा मार्ग भक्ति ग्रन्थ । मार्ग है । सम्पूर्ण चित्तवृत्ति से परमात्मा का प्रेमपूर्वक भगवान्-परमेश्वर का एक गुणवाचक नाम । भगवान्, भजन-पूजन करना मोक्ष का साजन है। परमेश्वर, ईश्वर, नारायण, राम, कृष्ण, ये सभी पर्याययह महत्त्वपूर्ण है कि गीता सभी उपासकों को धर्म वाची शब्द माने जाते हैं, जो विष्णु की कोटि के हैं । शास्त्रों द्वारा अनुमोदित हिन्दू धर्म के पालन करने का भग' (छः विशेषताओं) से यक्त होने के कारण परमेश्वर आदेश करती है; जातिधर्म, परिवारधर्म, पितृपूजा के को भगवान कहते हैं। वे हैं जगत् का समस्त ऐश्वर्य पालन का आदेश देती है। गीता वर्णव्यवस्था की विरोधी (सामर्थ्य), समस्त धर्म, समस्त यश, समस्त शोभा, समस्त नहीं, जैसी कि कुछ लोगों की धारणा है । किन्तु यह गुण ज्ञान और समस्त वैराग्य (निर्गुण-निर्लेप स्थिति)। और स्वभाव के आधार पर उसका अनुमोदन करती है। ह। भङ्ग-मदकारक पौधा, जिसकी पत्तियाँ पीसकर पी जाती भी इस प्रकार गीता ने हिन्दू धर्म के सभी महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों हैं । भङ्ग का उल्लेख अथर्ववेद (११.६,१५) में भी हुआ की परिभाषा प्रस्तुत की और उनका परिष्कार किया है। ऋग्वेद (९.६१, १३) में भङ्ग सोमलता का विरुद है; उसके समय तक जीवन में जो अन्तविरोध उत्पन्न हो है; सम्भवतः अपनी मादकता के कारण । कुछ विद्वान् गये थे उनका परिहार करके समुच्चय और समन्वय का भङ्ग और सोम का अभेद मानते हैं। मार्ग प्रशस्त किया है। भजन-इसका शाब्दिक अर्थ है 'ईश्वर की उपासना करना गीता पर मध्य काल के प्रायः सभी आचार्यों ने भाष्य या उसको प्राप्त होना।' प्रचलित प्रकार के धार्मिक गीतों और टीकाएँ लिखी हैं। इनमें 'शाङ्करभाष्य, रामानुज- के लिए कीर्तन तथा भजन नाम आता है। 'भजन' कीर्तन भाष्य, मधुसूदनी टीका, लोकमान्य तिलक का गीता- तथा कथन से रूप तथा प्रणाली में भिन्न, लय, राग रहस्य, ज्ञानेश्वरी आदि बहुत प्रसिद्ध है। गीता के ऊपर एवं तुकबन्द होते है। ये भक्तिविषयक किसी विषय से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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