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________________ ४६६ भक्तिरत्नाजलि-भगवद्गीता काल १५वीं शती है। इसके रचयिता विष्णुपुरी हुआ है। आगे चलकर परमात्मा के ऐश्वर्य अर्थ में महात्मा हैं। इसका विलय हो गया और परमात्मा को 'भगवान्' कहा भक्तिरत्नाञ्जलि-द्वैताद्वैत वैष्णव मत के विद्वान् लेखक जाने लगा। देवाचार्य द्वारा रचित यह ग्रन्थ निम्बार्कीय सिद्धान्त तथा भगत-वनवासी जाति में उग्र स्वभाव के देवों को शान्त भक्ति का प्रतिपादन और शाङ्कर मत का खण्डन करने व पूजा करने का कार्य जो करता है, उसे भगत करता है। (सं०-भक्त) कहते हैं। भगतों की प्रतिष्ठा के कारण है भक्तिरसामृतसिन्धु-चैतन्य महाप्रभु के शिष्य रूप गोस्वामी समय-समय पर इनमें देवी का आवेश, उसके प्रभाव से द्वारा रचित 'भक्तिरसामृतसिन्धु' में भक्ति की व्याख्या, बड़बड़ाने तथा हिलने, मुँह से गाज निकालने, कच्चा उत्कृष्टता तथा वैष्णवमत की साधना का सर्वांगीण विचार मांस खाने तथा भूत-भविष्य की बातों का बखान करना । किया गया है। इस ग्रन्थ की टीका जीव गोस्वामी ने गृहदेवों की स्थापना, पारिवारिक तथा कौटुम्बिक धार्मिक लिखी है। रूप और जीव दोनों महात्मा चाचा-भतीजे, कृत्यों का प्रतिपादन, फसल की वृद्धि करना, बीमारों को परम संत और उच्च कोटि के ग्रन्थकार थे। अच्छा करना आदि भगत के काम है । भक्तिरसायन-(१) मधुसूदन सरस्वती (अद्वैत सम्प्रदाय भगवत्-इसका शाब्दिक अर्थ है 'भग (छः प्रकार के ऐश्वर्य) के दिग्गज विद्वान्) द्वारा लिखित यह ग्रन्थ भक्ति सम्बन्धी से युक्त'। यह ईश्वर का एक विशेषण है। पुरुषवाचक लक्षणग्रन्थ है। इससे उनकी भगवद्रसज्ञता और भावुकता अर्थ में यह 'भगवान्' बोला जाता है और स्त्रीवाचक का परिचय मिलता है। अर्थ में भगवती (देवी)। (२) कन्नड़ भाषा में महात्मा सहजानन्द द्वारा भगवती–देवी मात्र: 'भगवान' की शक्ति अथवा पत्नी। भक्तिरसायन नामक ग्रन्थ रचा गया है, जो शैव संप्रदाय । उमा का एक नाम भगवती भी है। विषयक है। भगवद्गीता-महाभारत के दार्शनिक और परमोच्च ज्ञान भक्तिवाद-मोक्ष के तीन साधनों (कर्म, ज्ञान तथा भक्ति) सम्बन्धी अंशों में सबसे महत्त्वपूर्ण तथा अति प्रसिद्ध भगमें से यह तीसरा साधन है। यह सबसे सहज साधन है।। वद्गीता है। भीष्मपर्व में यह उद्धृत है। इसके रचनादे० 'भक्तिमार्ग'। काल को लेकर नव शिक्षाधारियों में बड़ा मतभेद है। भक्तिसागर-महात्मा चरणदासजी द्वारा रचित एक इसमें स्वयं कहा गया है कि यह कुरुक्षेत्र में महाभारत ग्रन्थ । युद्धारम्भ के ठीक पहले कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद भक्तिसिद्धान्त-जीव गोस्वामी द्वारा रचित ग्रन्थ । के रूप में उच्चरित हुई थी। यही विश्वास हिन्दुओं में भग-द्वादश आदित्य देवताओं में से एक। इस शब्द का आज तक प्रचलित है। न्यायाधीश तैलङ्ग और भण्डारसाधारण अर्थ है 'देने वाला', 'बाँटने वाला'। ऋग्वेद में कर के विचार से यह ईसा पू० चौथी शताब्दी में रची इस देवता की विधर्ता, विभक्ता, भगवान् इत्यादि उपा गयी। किन्तु आधुनिक विद्वान् इसे ई० की प्रथम या धियाँ पायी जाती हैं । वास्तव में यह समृद्धि और ऐश्वर्य दूसरी शताब्दी को रचना बताते हैं । गीता का प्रायः सात का देवता है। वरुण के साथ ही इसका उल्लेख पाया सौ श्लोकों वाला वर्तमान आकार सम्भवतः पीछे स्थिर जाता है । उषा भग की बहिन (भगिनी) है, जो स्वयं हुआ, किन्तु मूल उपदेश रूप में यह महाभारतजागृति और समृद्धि की देवी है। यास्क (निरुक्त, कालीन ही है। गीता भारतीय धर्म पर अतुल प्रभाव १२.१३) के अनुसार भग सूर्य का वह रूप है जो पूर्वाह्न डालने वाला ग्रन्थ है। यहाँ ऐसी कोई भी रचना नहीं है की अध्यक्षता करता है। प्राचीन ईरानी भाषा में भग जो हिन्दूविचारकों के द्वारा इतनी प्रशंसित हो जितनी (बघ) 'अहुरमज्द' का एक विशेषण है। स्लोवानिक गीता है। इसकी अनेक पाश्चात्य विचारकों तथा विद्वानों (यूरोपीय आर्य) भाषा में ईश्वर का एक नाम भग (बोगु) ने भी उच्च प्रशंसा की है। विश्व की सभी भाषाओं में है। इस देवता का व्यक्तित्व स्पष्ट और विकसित नहीं इसके असंख्य संस्करण अनुवाद के रूप में प्रकाशित हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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