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________________ बौद्धधर्म बौधायनधमंसूत्र बौद्धधर्म - संसार के प्रमुख धर्मों में से यह एक है । मूलतः यह जीवन का एक दृष्टिकोण अथवा दर्शन था, धर्म नहीं, क्योंकि इसमें ईश्वर और धर्मविज्ञान के लिए कोई स्थान नहीं था । परन्तु भारत ही ऐसा देश है जहाँ ईश्वर के बिना भी धर्म चल सकता है। ईश्वर के बिना भी बौद्ध धर्म 'सद्धर्म' था। इसका कारण यह है कि यह अभौतिक परमार्थ 'निर्वाण' में विश्वास करता था और इसका आधार था प्रज्ञा, शील तथा समाधि । अपने मूल रूप में बौद्धधर्म बुद्ध के उपदेशों पर आधारित है । ये उपदेश मुख्यतः 'सूत्रपिटक' में संगृहीत हैं। उनका प्रथम उपदेश ( धर्मचक्र प्रवर्तन) सारनाथ में हुआ था । इसमें मध्यम मार्ग का प्रतिपादन किया गया है । यह दो अतियों - इन्द्रियविलास और अनावश्यक शारीरिक तप के बीच चलता है । बुद्ध ने कहा है : "हे भिक्षुओ ! परिव्राजक को इन दो अन्तों का सेवन नहीं करना चाहिए। वे दोनों अन्त कौन हैं ? पहला तो काम या विषय में सुख के लिए अनुयोग करना । यह अन्त अत्यन्त दीन, ग्राम्य, अनार्य और अनर्थसंगत है। दूसरा है शरीर को क्लेश देकर दुःख उठाना । यह भी अनार्य और अनर्थसंगत है । हे भिक्षुओ ! तथागत ( मैं ) ने इन दोनों अन्तों का त्याग कर मध्यमा प्रतिपदा ( मध्यम मार्ग) को जाना है।" यही चौथा आर्य सत्य था, जिसका उद्घोष बुद्ध ने धर्म की भूमिका के रूप में किया । इसके पश्चात् उन्होंने शेष आर्य सत्यों का उपदेश दिया । चार आर्य सत्य ( चत्वारि आर्यसत्यानि ) - (१) दुःख (२) समुदय (३) निरोध और ( ४ ) मार्ग ( निरोधगामिनी प्रतिपदा) पहला सत्य यह है कि संसार में दुःख है। फिर इस दुःख का कारण भी है। इसका कारण है तृष्णा ( वासना ) | के उत्पन्न तृष्णा होने की एक प्रक्रिया है। इसके मूल में है अविद्या अविद्या से संस्कार, संस्कार से विज्ञान, विज्ञान से नामरूप, नाम रूप से षडायतन इन्द्रियाँ और मन ), पायतन से स्पर्श, स्पर्श से वेदना, वेदना से तृष्णा, तृष्णा से भव भव से जाति (जन्म) जाति से जरा, मरण, रोग आदि दुःख उत्पन्न होते हैं । दुःख का इस प्रकार निदान हो जाने के पश्चात् उसके निरोध ( निर्वाण ) का मार्ग ढूँढना और उसका अनुसरण ५७ Jain Education International ४४९ करना चाहिए। इसी मार्ग को 'निरोपगामिनी प्रतिपदा' ( मध्यम ) कहते हैं । यह अष्टाङ्ग भी कहलाता है । आठ अङ्ग निम्नाङ्कित हैं : (१) सम्यक दृष्टि ( जीवन में यथार्थ दृष्टिकोण ), ( २ ) सम्यक् संकल्प ( यथार्थ दृष्टिकोण से यथार्थ विचार ), (३) सभ्य वाचा ( यथार्थ विचार से यथार्थ वचन ), (४) सम्यक् कर्मान्ति ( यथार्थ वचन से यथार्थ कर्म ), (५) सम्यक् आजीव ( यथार्थ कर्म से उचित जीविका ), (६) सम्यक व्यायाम ( उचित जीविका के लिए उचित प्रयत्न ), (७) सम्यक् स्मृति ( उचित प्रयत्न से उचित स्मृति ), (८) सम्यक् समाधि ( सम्यक् स्मृति से सम्यक् जीवन का संतुलन ) । बुद्ध ने 'दस शीलों' का भी उपदेश दिया, जिनमें दसों तो भिक्षुओं के लिए अनिवार्य हैं और उनमें से प्रथम पाँच गृहस्थों के लिए अनिवार्य हैं । दस शीलों की गणना इस प्रकार है : (१) जीवहिंसा का त्याग, (२) अस्तेय ( अदत्त वस्तु को ग्रहण न करना ), (३) ब्रह्मचर्य ( मैथुन त्याग ), (४) सत्य ( झूठ का त्याग ), (५) मादक वस्तु का त्याग, ( ६ ) असमय भोजन का त्याग, (७) अभिनय, नृत्य, गान आदि का त्याग, (2) माल्य, सुगन्ध, अङ्गराग आदि का स्वाग, ( ९ ) कोमल शय्या का त्याग, (१०) सुवर्ण और रजत के परिग्रह का त्याग । बौधायन -- बुध अथवा बोध के वंशज एक आचार्य, जो वेदशाखा प्रवर्तक थे । इनके द्वारा श्रौत, धर्म तथा गृह्य सूत्र रचे माने जाते हैं । बौधायनगृह्यसूत्र स्मार्ती के लिए यह गृह्यसूत्र महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमें स्मातों के कृत्यों का इतिहास दिया गया है । इसे कभी-कभी 'स्मार्तसूत्र' भी कहते हैं । इसके परिशिष्टों में स्मातों के धर्म की नियमावली दी हुई है। बौधायनधर्मसूत्र कृष्ण यजुर्वेद के तीन धर्मसूत्र प्रसिद्ध है: आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी तथा बौधायन । बौधायनधर्मसूत्र का कई स्थानों से मुद्रण हुआ है। १८८४ ई० में -- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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