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________________ प्रावरणषष्ठी - प्रेयमेध आदि पर भी विचार किया गया है । यदि परिषद् द्वारा विहित प्रायश्चित्त की अवहेलना कोई व्यक्ति करता था तो उसे राज्य दण्ड देता था। अब धर्मशास्त्र, परिषद् और जाति सभी के प्रभाव उठते जा रहे हैं, कुछ धार्मिक परिवारों को छोड़कर प्रायश्चित्त कोई नहीं करता । प्रायश्चित्त के ऊपर धर्मशास्त्र का बहुत बड़ा साहित्य है । स्मृतियों के मोटे तौर पर तीन विभाग है : आचार व्यवहार और प्रायश्चित्त। इसके अतिरिक्त बहुत से निबन्ध ग्रन्थ और पद्धतियाँ भी प्रायश्चित्तों पर लिखी गयी है। प्रावरणषष्ठी - यह शीतकाल में ओढ़ना दान करने की तिथि है । मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी को देवों, दीनों तथा ब्राह्मणों को शीत निवारण के लिए कुछ वस्तुएं ( कम्बलादि) दान में देनी चाहिए। दे० गदाधरपद्धति, कालसार भाग, ८४ । प्रावरणोत्सव - मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी को पुरुषोत्तम जगन्नाथ भगवान् की बारह यात्राओं में से एक यात्रा होती है । प्रियमेष- ऋग्वेद के प्रियमेषसूक्त (६.४५) में यह एक ऋषि का नाम है, जहाँ उनके परिवार प्रियमेधसः का अनेकों बार उल्लेख हुआ है । प्रियादास महाप्रभु चैतन्य द्वारा प्रचारित गौडीय सम्प्रदाय के अनुयायी एक महात्मा । नाभाजी कृत 'भक्तमाल' नामक संतों के ऐतिहासिक ग्रन्थ के ये सुप्रसिद्ध भाष्यकार हैं। इसमें इन्होंने ब्रजभाषा की प्रांजल शैली में कवित्तमयी रचना की है । इनका समय १८वीं शती है । भक्तसमाज में भक्तमाल और उसकी प्रियादासी व्याख्या वेदवाक्य मानी जाती है । प्रीतिव्रत - एक वैष्णव व्रत । इससे भगवान् विष्णु में रति और उनके लोक की प्राप्ति होती है जो व्यक्ति आपाड़ मास से चार मास तक विना तेल के स्नान करता है और इसके पश्चात् व्यंजन सहित सुस्वादु खाद्य पदार्थ दान में अर्पित करता है, वह विष्णुलोक को जाता है। प्रेत - वैदिक साहित्य में प्रेत ( देह से निर्गत) का मृत व्यक्ति अर्थ (शत० प्रा० १०.५.२.१३) होता है। पर वर्ती साहित्य में इसका अर्थ प्रेतात्मा (भूत-प्रेत ) होता हैं, जो अशरीरी होते हुए भी घूमता रहता है और जीव धारियों को कष्ट देता है । Jain Education International ४३१ प्रेतचतुर्दशी-कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को रात्रि में इस व्रत का अनुष्ठान करना चाहिए। यदि संयोग से उस दिन मंगलवार तथा चित्रा नक्षत्र हो तो महान् पुण्य उपलब्ध होगा। शिव इसके देवता है। चतुर्दशी को उपवास करके शिवपूजनोपरान्त भक्तों को उपहारादि देकर भोजन कराया जाय; इस दिन गंगास्नान से मनुष्य पापमुक्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त अपामार्ग की टहनी लेकर सिर पर फैरनी चाहिए तथा बाद में यम के नाम (कुल १४) लेकर तर्पण करना चाहिए । इसी दिन नदीतट पर, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के मन्दिरों में, स्वगृह में, चौरस्तों पर दीपमालिका प्रज्वलित की जाय। इस कृत्य को करने वाला अपने परिवार की २१ पीढ़ियों सहित शिवलोक प्राप्त करता है । इसी तिथि को परिवार के उन सदस्यों के लिए लुकाटियाँ जलायी जायँ जो शस्त्राघात से मरे हों और अन्यों के लिए अमावस्या के दिन । व्रतकर्ता इस दिन प्रेतोपाख्यान श्रवण करता है (उन पाँच प्रेतों की कथा जो एक ब्राह्मण को जंगल में मिले थे । 'संवत्सर प्रदीप' में इसका निर्देश है। दे० वर्षकृत्यकौमुदी, ४६१-४६७, यह भीष्म ने युधिष्ठिर को सुनायी थी ) जिसको सुनने तथा आचरण करने से मनुष्य प्रेतयोनि ( अशरीरी योनि) को घटा सकता है तथा प्रेतत्व से मुक्त भी हो सकता है । व्रती उन चौदह वनस्पतियों को ग्रहण करे जो 'कृत्यचिन्तामणि' की भूमिका ( पृ० १८ ) में निर्दिष्ट हैं । दे० राजमार्त्तण्ड, १३३८ - १३४५ । तिथितत्त्व, पृ० १२४ तथा रघुनन्दन के कृत्यतस्व में वे १४ वनस्पति परिगणित हैं । कदाचित् इसका प्रेतचतुर्दशी नाम इसलिए पड़ा है कि इस दिन प्रेतोपाख्यान' सुनना सुनाना चाहिए। प्रेमरस- यह वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्गीय साहित्य से सम्ब न्धित, १६वीं शताब्दी के मध्य कृष्णदास द्वारा व्रजभाषा में रचा हुआ एक ग्रन्थ है। इसमें प्रेमरसरूपा भक्ति का विवेचन और वर्णन है । प्रेमविलास - गौडीय वैष्णव साहित्य सम्बन्धी १७वीं शताब्दी का ग्रन्थ । इसके रचयिता नित्यानन्ददास हैं । यह ग्रन्थ चैतन्य सम्प्रदाय का इतिहास प्रस्तुत करता है । प्रेमानन्द - स्वामीनारायणीय साहित्य में अनेकों कविताएँ गुजराती भाषा में 'प्रेमानन्द' द्वारा रचित प्राप्त हैं । प्रेयमेष-प्रियमेध के वंशज यह उन पुरोहितों का पैतृक नाम है, जिन्होंने त्र्यात्रेय उद्गम के लिए यज्ञ किया था । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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