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________________ पुलिकाबन्धन-पुष्पमुनि ४११ अन्न एवं सस्य के लिए यह वर्षाकारक अनुष्ठान कराता है। कुछ लोग इसका अर्थ सर्प करते हैं, परन्तु अधिक था । पुरोहितपद के पैतृक होने का निश्चित प्रमाण नहीं अर्थ मधुमक्खी है। है, किन्तु सम्भवतः ऐसा ही था। राजा कुरु श्रवण तथा पष्टिगु-ऋग्वेद (८.५१,१ ) की बालखिल्य ऋचा में उसके पुत्र उपम श्रवण का पुरोहित के साथ जो सम्बन्ध उद्धृत एक ऋषि का नाम । था उससे ज्ञात होता है कि साधारणतः पुत्र अपने पिता के पष्टिमार्ग-भागवत पुराण के अनुसार भगवान् का अनुग्रह पुरोहित पद को ही अपनाता था। प्रायः ब्राह्मण ही पुरोहित ही पोषण या पष्टि है। आचार्य वल्लभ ने इसी भाव के होते थे । बृहस्पति देवताओं के पुरोहित एवं ब्राह्मण दोनों । आधार पर अपना पुष्टिमार्ग चलाया। इसका मूल सूत्र कहे जाते हैं। ओल्डेनवर्ग के मतानुसार पुरोहित प्रारम्भ में उपनिषदों में पाया जाता है । कठोपनिषद् में कहा गया है होता होते थे, जो स्तुतियों का गान करते थे। इसमें सन्देह कि परमात्मा जिस पर अनुग्रह करता है उसी को अपना नहीं कि ऐतिहासिक युग में वह राजा की शक्ति का प्रति साक्षात्कार कराता है । वल्लभाचार्य ने जीव आत्माओं को निधित्व करता था तथा सामाजिक क्षेत्र में उसका बड़ा परमात्मा का अंश माना है जो चिनगारी की तरह उस प्रभाव था। न्याय व्यवस्था तथा राजा के कार्यों के महान् आत्मा से छिटके हैं। यद्यपि ये अलग-अलग हैं संचालन में उसका प्रबल हाथ होता था। तथापि गुण में समान हैं। इसी आधार पर वल्लभ ने पुलिकाबन्धन-यह व्रत कार्तिकी पूर्णिमा को पुष्कर क्षेत्र में अपने या पराये शरीर को कष्ट देना अनुचित बताया है। मनाया जाता है । इस दिन पुष्कर में बहुत बड़ा मेला पुष्टिमार्ग में परमात्मा को कृपा के शम-दमादि बहिरङ्ग लगता है । दे. कृत्यसारसमुच्चय, पृ० ७। साधन हैं और श्रवण, मनन, निदिध्यासन अन्तरङ्ग साधन । पुष्कर-(१) वैदिक साहित्य में पुष्कर नील कमल का नाम भगवान् में चित्त की प्रवणता सेवा है और सर्वात्मभाव है। अथर्ववेद में इसकी मधुर गन्ध का वर्णन है। यह मानसी सेवा है। आचार्य की सम्मति में भगवान् का तालाबों में उगता था जो पुष्करिणी कहलाते थे । 'पुष्कर अनुग्रह (कृपा) ही पुष्टि है । भक्ति दो प्रकार की हैस्रजो' अश्विनों का एक विरुद है । निरुक्त (५.१४) तथा मर्यादाभक्ति और पुष्टिभक्ति। मर्यादाभक्ति में शास्त्रशतपथ ब्राह्मण (६.४,२,२) के अनुसार पुष्कर का अर्थ विहित ज्ञान और कर्म की अपेक्षा होती है। भगवान् के जल है। अनुग्रह से जो भक्ति उत्पन्न होती है वह पुष्टिभक्ति कह(२) पुष्कर एक तीर्थ का भी नाम है जो राजस्थान लाती है। ऐसा भक्त भगवान् के स्वरूप दर्शन के अतिमें अजमेर के पास स्थित है । ब्रह्मा इसके मुख्य देवता है। रिक्त और किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं करता । वह यह एक बहुत बड़े प्राकृतिक जलाशय के रूप में है इसलिए अपने आराध्य के प्रति सम्पूर्ण आत्मसमर्पण करता है। इसका नाम पुष्कर पड़ा । पुराणों के अनुसार यह तीर्थों इसको प्रेमलक्षणा भक्ति कहते हैं । नारद ने इस भक्ति का गुरु माना जाता है अतएव इसको पुष्करराज भी को कर्म, ज्ञान और योग से भी श्रेष्ठ बतलाया है। उनके कहते हैं। भारत के पंच तीर्थों और पंच सरोवरों में अनुसार यह भक्ति साधन नहीं, स्वतः फलरूपा है। इसकी गणना की जाती है। पंच तीर्थ है-पुष्कर, पष्पद्वितीया-कार्तिक शुक्ल द्वितीया को इस व्रत का कुरुक्षेत्र, गया, गङ्गा एवं प्रभास तथा पंच सरोवर है प्रारम्भ होता है। यह तिथिवत है, एक वर्ष पर्यन्त चलता मानसरोवर, पुष्कर, बिन्दुसरोवर ( सिद्धपुर ), नारायण- है, अश्विनीकुमार इसके देवता हैं। दिव्य पूजा के लिए सरोवर (कच्छ) और पम्पा सरोवर ( दक्षिण )। इसका उपयुक्त पुष्पों का अर्पण प्रति शुक्ल पक्ष की द्वितीया को माहात्म्य निम्नाङ्कित है : करने का विधान है। व्रत के अन्त में सुवण के बने हए दुष्करं पुष्करे गन्तुं दुष्करं पुष्करे तपः । पुष्प तथा गौ का दान करना चाहिए। इससे व्रती पुत्र दुष्करं पुष्करे दानं वस्तुं चैव सुदुष्करम् ।। तथा पत्नी सहित सुखोपभोग करता है । पुष्करसद्-कमल पर बैठा हुआ जन्तु । यह एक पशु का पुष्पमुनि-सामवेद की एक शाखा का प्रातिशाख्य पुष्पमुनि नाम है जो अश्वमेध के बलिपशुओं को तालिका में उद्धृत द्वारा रचित है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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