SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 415
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पीठापुरम्-पुसवन ४०१ ब्रह्माण्ड के प्रत्येक पिण्ड में विद्यमान रहती हैं। इन्हीं इसी सिद्धान्त के आधार पर विशाल भूभाग पर आकर्षण और विकर्षण के प्रभाव से समस्त ग्रह-उपग्रह अनेक तीर्थ एवं पीठ स्थानों का आविर्भाव माना गया अपने अपने स्थानों पर नियमित रहकर कार्यनिरत है। इसी प्रकार के दैव पीठ की सहायता से संसार में रहते हैं। इन्हीं शक्तियों के समान रूप से स्थित होने समस्त देवी कार्य सम्पादित होते हैं । पर उनका जो आवर्त या चक्र बनता है, उसे पीठ (३) प्राचीन वैदिक उद्धरणों में पीठ शब्द स्वतन्त्र रूप कहते हैं। से व्यवहृत नहीं हुआ है, किन्तु यौगिक 'पीठसी' विशेजिस प्रकार मनुष्य को स्थिर रहने के लिए किसी षण के रूप में मिलता है । वाजसनेयी संहिता (३०.२१) स्थूल आधार की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार सूक्ष्म तथा तैत्तिरीय ब्राह्मण (३.४,१७,१) में पुरुषमेध के आनन्दमय कोष से सम्बन्धित देवताओं के लिए भी सक्षम हवनीय पदार्थों में इसका भी उल्लेख है। आधार पीठस्थल आवश्यक होता है और वह आधार पीठापुरम्-आन्ध्र प्रदेश का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान । यह यह पीठ ही है। 'पादगया क्षेत्र' है। पाँच प्रधान पिततीर्थ माने जाते इस प्रकार मन और मन्त्रादि द्वारा आकर्षण-विकर्षणा- हैं-१. गया (गयाशिरक्षेत्र) २. याजपुर-वैतरणी (उड़ीसा त्मक प्राणशक्ति की सहायता से सोलह प्रकार के दिव्य में नाभिगयाक्षेत्र) ३. पीठापुरम् (पादगयाक्षेत्र) ४. सिद्धस्थानों में पीठ की स्थापना कर अभीष्ट देवताओं का पुर ( गुजरात में मातृगयाक्षेत्र) ५. बदरीनाथ (ब्रह्मआवाहन किया जाता है। पीठ स्थल जितना पवित्र और कपाली) । बलसम्पन्न होगा उतने ही पवित्र और बलिष्ठ देवताओं पीठापुरम् में अधिकांश यात्री पिण्डदान करने आते का उस पर आवाहन किया जा सकता है। इसी प्रकार है । यहाँ कुक्कुटेश्वर शिवमन्दिर है । बाहर मधु स्वामी मति में भी जब तक पीठ की स्थिति रहती है, तभी तक का मन्दिर है। पास में माधवतीर्थ नामक सरोवर है। उस मूर्ति द्वारा दैवी कलाएँ और चमत्कार प्रकाश में आते पीपा-वैष्णवाचार्य स्वामी रामानन्द के शिष्यमंडल के है । पीठ को एक उदाहरण द्वारा भी ज्ञात किया जा प्रमुख व्यक्ति । इनका जन्म एक राजकुल में संवत् १४८२ सकता है। यथा आकर्षण और विकर्षण शक्ति युक्त दो वि० में हुआ था। 'भक्तमाल' ग्रन्थ में इनकी निश्छल पदार्थ एक दूसरे के सम्मुख रखे हों तो एक पदार्थ का भक्ति भावना का वर्णन हुआ है । आकर्षण दूसरे पदार्थ को अपनी ओर खींचेगा, एवं दोनों पीयूष-ऋग्वेद तथा परवर्ती ग्रन्थों में गौ के बच्चा देने के की विकर्षण शक्ति दोनों को उससे विपरीत दिशा की बाद के प्रथम दूध को 'पीयूष' कहा गया है। इसकी तुलना ओर प्रेरित करेगी । दोनों वस्तुओं की पथक्-पृथक् दिशा सोमलता के रस से की गयी है। में गति होने पर एक प्रकार का आवतं अथवा चक्र बन पोलुपाक मत-परमाणुओं के बीच अन्तर की धारणा न जाता है। इसी तरह जिस देवता का आवाहन किया होने के कारण वैशेषिकों को 'पीलुपाक' नाम का विलक्षण जाता है उस दैवी शक्ति का प्राणों की सहायता से अन्न- मत ग्रहण करना पड़ा। इसके अनुसार घट अग्नि में पड़मय कोष से सम्बन्ध स्थापित हो जाने पर प्राणों की कर इस प्रकार लाल होता है कि अग्नि के तेज से घट के आकर्षण शक्ति की सहायता से वह दैवी शक्ति आकर्षित परमाणु अलग-अलग हो जाते है और फिर लाल होकर हो जाती है, एवं प्राणों की विकर्षण शक्ति की विपरीत मिल जाते हैं। घड़े का यह बनना-बिगड़ना इतने सूक्ष्म किया के परिणामस्वरूप वह दैवी शक्ति विकर्षित होती है। काल में होता है कि कोई देख नहीं सकता। इस प्रक्रिया इस आकर्षण आर विकर्षण क्रिया के होने पर एक वत्ता- से होने वाले परिवर्तन को पीलुपाक मत कहते हैं। कार स्थल का निर्माण हो जाता है जिसे पीठ कहते हैं। पीलमती-अथर्ववेद (१८.२,४८) में पीलुमती को उदन्वती इस वृत्त के आभ्यन्तरीय पूर्ण स्थान पर आवाहित उस एवं प्रद्यौ नामक दो स्वर्गों के बीच का स्वर्ग कहा दैवी शक्ति का साम्राज्य स्थापित हो जाता है। क्योंकि गया है। इस आवत का मध्यगत समस्त स्थान आवाहित देवता का पुंसवन-गर्भवती स्त्री का एक धार्मिक संस्कार, जो पुत्र ही स्थान बन जाता है । संतान होने के लिए किया जाता था। इसका सर्वप्रथम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy