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________________ पशु-पाखण्डमत पवित्र सूत्र में शत ग्रन्थियाँ (सर्वोत्तम) हों, नहीं तो कम दो मील पर पशुपतिनाथजी का मन्दिर है। काठमांडू से कम आठ । पवित्र का तात्पर्य है यज्ञोपवीत, जो किसी विष्णुमती और बागमती नामक नदियों के संगम पर वस्तु के धागे या माला के द्वारा निर्मित हो सकता है। बसा हुआ है । पशुपतिनाथ बागमती नदी के तट पर हैं। महाराष्ट्र में इसे 'पोमवतेम' कहा जाता है। कुछ दूर पर नेपाल के रक्षक योगी मछंदरनाथ (मत्स्येन्द्रपशु (१)-पाशुपत सम्प्रदाय में पति, पशु और पाश तीन नाथ) का मन्दिर है। पशुपतिनाथ पञ्चमुखी शिवलिंग प्रधान तत्त्व है। पति स्वयं शिव है, पशु जीवगण हैं तथा रूप में हैं जो भगवान् शिव की पञ्चतत्त्व मूर्तियों में एक । पाश सांसारिक बन्धन है जिससे प्राणी बँधा रहता है। माने जाते हैं । महिषरूपधारी शिव का यह शिरोभाग है, पति (शिव) की कृपा से पशु (मनुष्य) पाश (सांसारिक इनका धड़ केदारनाथजी माने जाते हैं । नन्दी की विशाल बन्धन) से मुक्त होता है । दे० 'पाशुपत' । मूर्ति पास में है । कुछ दूर पर गुह्येश्वरी देवी का प्रसिद्ध (२) सभी जीवधारी, जिनमें मनुष्य भी सम्मिलित है। मन्दिर है । ५१ पीठों में इसकी गणना है । शैव, शाक्त, यज्ञ के उपयोगी पाँच पशुओं का प्रायः उल्लेख हआ है- पाशुपत, तन्त्र, बौद्ध आदि सभी सम्प्रदायों का यहाँ अश्व, गौ, मेष (भेड), अज (बकरा) तथा मनुष्य । अथर्ववेद संगम है। (३.१०.६) तथा परवर्ती ग्रन्थों में सात घरेलू पशुओं का पशपतिसूत्र-पाशपत शवों का आधार ग्रन्थ पशपतिसूत्र उल्लेख है । पशुओं का वर्गीकरण 'उभयतोदन्त' एवं 'अन्य- अथवा पाशपत शास्त्र माना जाता है। किन्तु इसकी कोई तोदन्त' के रूप में भी हुआ है । दूसरा और भी विभाजन है : प्रति कहीं उपलब्ध नहीं हई है। प्रथम, हाथ से ग्रहण करने वाले (हस्तादान)-मनुष्य, हाथी, पहिसानिवारण-वैष्णव आचार्य मध्व ने यज्ञों में पशुबन्दर आदि । दूसरा, मुह से पकड़ने वाले (मुखादान)। हिंसा का विरोध किया था। दुराग्रही लोगों के संतोषार्थ अन्य प्रकार का विभाजन द्विपाद एवं चतुष्पाद का है। इन्होंने पशबलि के स्थान पर 'पिष्ट पश' या अन्न का पश मनुष्य द्विपाद है जो पशुओं में प्रथम है। मुँह से चरने बनाकर बलि देने का प्रचार किया। इसमें वैष्णव धर्म का वाले पशु प्रायः चतुष्पाद (चौपाये) होते हैं। पशुओं में जीवदया वाला भाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। एक मनुष्य ही शतायु होता है और वह इसीलिए पशुओं पश्वाचारभाव-शक्ति के उपासक तान्त्रिक लोग तीन का राजा है। बौद्धिक दृष्टिकोण से वनस्पतियों, पशुओं भावों का आश्रय लेते हैं । वे दिव्य भाव से देवता का एवं मनुष्यों में भेद ऐतरेय आरण्यक में विशद रूप से साक्षात्कार होना मानते हैं । वीर भाव से क्रिया की सिद्धि निर्दिष्ट है । मनुष्यों को छोड़कर पशुओं को वायव्य, आरण्य होती है, जिसमें साधक साक्षात् रुद्र हो जाता है । पशु एवं ग्राम्य तीन भागों में बाँटा गया है (ऋग्वेद)। भाव से ज्ञान सिद्धि होती है। इन्हें क्रम से दिव्याचार, पशुपति-पशुपति (पशुओं के स्वामी) का प्रयोग रुद्र के वीराचार तथा पश्वाचार भी कहते हैं। साधक पशभाव विरुद के रूप में अति प्राचीन साहित्य में मिलता है । से ज्ञान प्राप्त करके वीर भाव के द्वारा रुद्रत्व प्राप्त करता 'पशपति' पशुओं (मनुष्यों) के स्वामी है । पशु जीवधारी है. तब दिव्याचार द्वारा देवता की तरह क्रियाशील हो हैं जो संसार के पाश में जकड़े गये हैं। वे पशुपति को जाता है । इन भावों का मूल निस्सन्देह शक्ति है । कृपा से ही मुक्ति पा सकते हैं। दे० 'पाशुपत' । पाखण्डमत-पद्मपुराण के पाषण्डोत्पत्ति अध्याय में लिखा पशुपति उपपुराण-उन्तीस उपपुराणों में पशुपति उप- है कि लोगों को भ्रष्ट करने के लिए ही शिव की दुहाई देकर पुराण भी समाविष्ट है। निश्चय ही यह शैव उपपुराण पाखण्डियों ने अपना मत प्रचलित किया है। इस पुराण है। इसमें पाशुपत सम्प्रदाय के सिद्धान्तों और क्रियाओं का में जिसको पाखण्डी मत कहा गया है, तन्त्र में उसी को वर्णन पाया जाता है। शिवोक्त आदेश कहा गया है। बुद्ध अपने द्वारा उपदिष्ट पशपतिनाथ-नेपाल की राजधानी काठमांडू में स्थित सम्प्रदाय के अतिरिक्त अन्य मत वालों को पाषण्डी अथवा प्रसिद्ध शैवतीर्थ । बिहार प्रदेश के मुजफ्फरपुर, रक्सौल पाखण्डी कहते थे। प्राचीन धर्मशास्त्र के ग्रन्थों में इसका होते हुए नेपाल सरकार के अमलेखगंज, भीमफेदी, थान- अर्थ बौद्ध और जैन सम्प्रदाय है। न्याय और शासन के कोट होता हआ मार्ग काठमांडू जाता है। वहाँ से लगभग कर्तव्य निर्देशार्थ जहाँ कुछ विधान विधर्मी प्रजाओं के लिए ५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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