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________________ ३७२ नीतिशास्त्र-नीराजनविधि १. धर्मसमुद्देश १८. अमात्य बोध होता है । इसका स्त्रीलिंग रूप 'नीथा' केवल एक २. अर्थसमुद्देश १९. जनपद बार ही ऋग्वेद में प्रयुक्त हुआ है, जिसका अर्थ हथियार है। ३. कामसमुद्देश २०. दुर्ग नीमावत-निम्बार्क सम्प्रदाय का ही अन्य नाम सधुक्कड़ी ४. अरिषड्वर्ग २१. कोश बोली में नीमावत है । दे० 'निम्बार्क' शब्द ।। ५. विद्यावृद्ध २२. बल नीराजनद्वादशी-कार्तिक शुक्ल द्वादशी को नीराजन ६. आन्वीक्षिकी २३. मित्र द्वादशी भी कहते हैं । रात्रि के प्रारम्भ होने के समय जब ७. त्रयी २४. राजरक्षा भगवान् विष्णु शयन त्याग कर उठ बैठते हैं, इस व्रत का ८. वार्ता २५. दिवसानुष्ठान आचरण किया जाता है । विष्णु की प्रतिमा के सम्मुख ९. दण्डनीति २६. सदाचार तथा अन्य देवगण, जैसे सूर्य, शिव, गौरी, पितरों के १०. मन्त्री २७. व्यवहार सम्मुख तथा गोशाला, अश्वशाला, गजशाला में भी दीप११. पुरोहित २८. विवाद माला प्रज्वलित की जानी चाहिए। राजा लोग भी १२. सेनापति २९. षाड्गुण्य समस्त राजचिह्नों को राजभवन के मुख्य प्राङ्गण में रख १३. चार ३०. युद्ध कर पूजें । एक धार्मिक तथा शुद्धाचरण करने वाली स्त्री १४. विचार ३१. विवाह अथवा वेश्या को राजा के सिर के ऊपर तीन बार दीपों १५. दूत ३२. प्रकीर्ण की माला धुमानी चाहिए। यह महाशान्तिप्रदायक (साधना१६. व्यसन ३३. ग्रन्थकर्ताप्रशस्ति परक) धार्मिक कृत्य है, जिससे रोग दूर होते हैं तथा धन१७. स्वामी ३४. पुस्तकदाता प्रशस्ति धान्य की अभिवृद्धि होती है। महाराज अजपाल ने सर्वनीतिशास्त्र-नीतिशास्त्र का प्रारम्भिक अर्थ राजनीति- प्रथम इस व्रत का आचरण किया था। इसका आचरण शास्त्र है, किन्तु परवर्ती काल में नीति का साधारण अर्थ प्रतिवर्ष होना चाहिए । आचरणशास्त्र किया जाने लगा तथा राजनीति इसका नीराजननवमी-कृष्ण पक्ष की नवमी ( कार्तिक मास ) एक भाग बन गया। शुक्रनीतिसार (१.५) में नीति की को नीराजननवमी कहते हैं। इसकी रात्रि में दुर्गाजी परिभाषा इस प्रकार से दी गयी है : तथा उनके आयुधों का पूजन होता है। दूसरे दिन प्रातः सर्वोपजीविक लोकस्थितिकृन्नीतिशास्त्रकम् । सूर्योदय के समय नीराजनशान्ति करनी चाहिए । दे० धर्मार्थकाममूलं हि स्मृतं मोक्षप्रदं यतः ।। नीलमत पुराण (पृ० ७६, श्लोक ९३१-९३३) । [नीतिशास्त्र सभी की जीविका का साधन, लोक की नीराजनविधि-यह एक शान्तिप्रद कर्म है। कार्तिक कृष्ण स्थिति सुरक्षित करने वाला, धर्म, अर्थ और काम का द्वादशी से शुक्ल प्रतिपदा तक इसका अनुष्ठान होता है । मूल और इस प्रकार मोक्ष प्रदान करने वाला है। ] यदि राजा इस विधि को करे तो उसे अपनी राजधानी आधुनिक अर्थ में नीतिशास्त्र प्राचीन धर्मशास्त्र का ही की ईशान दिशा में दीर्घाकार ध्वजाओं से सज्जित विशाल एक अङ्ग है। धर्म शब्द के अन्तर्गत ही नीति का भी समा मण्डप बनवाना चाहिए जिसमें तीन तोरण भी हों । इसमें वेश है । धर्म के सामान्य और विशेष अङ्ग में व्यक्तिगत देवगण की पूजा तथा होम करने का विधान है। यह तथा सामाजिक नीति अन्तनिहित है ।। धार्मिक कृत्य उस समय किया जाय जब सूर्य चित्रा नक्षत्र सामान्य नीति पर चाणक्यनीति, विदुरनीति, भर्तृहरि से स्वाती नक्षत्र की ओर अग्रसर हो रहा हो तथा जब नीतिशतक आदि कई प्रसिद्ध ग्रन्थ है। विशिष्ट अथवा तक वह स्वाती पर विद्यमान रहे । पल्लवों से आच्छादित, सामाजिक (वर्ण-आश्रमपरक) नीति पर धर्मशास्त्र का बहुत पञ्चवर्ण सूत्रों से आवृत, जलपूर्ण कलश स्थापित किया बड़ा अंश है। जाय । तोरण की पश्चिम दिशा में मन्त्रोच्चारण पूर्वक नीथ-यह एक प्रकार का गान था जो सोमयागों के अवसर हाथियों को स्नान कराया जाय । अश्वों का भी स्नान हो, पर गाया जाता था। 'नीथ' (चालक) गान के स्वर का तदनन्तर राजपुरोहित उन्हें (हाथियों को) भोजन-चारा बोध प्रथम अर्थ से तथा दूसरे अर्थ से स्तुति की ऋचा का खिलाये । यदि हाथी प्रसन्नतापूर्वक उस भोजन को ग्रहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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