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________________ नादबिन्दु उपनिषद्-नानकपन्थ लिखित 'धेरण्डसंहिता' नामक प्राचीन ग्रन्थ में वर्णित तत्त्वों का जनता में लोकभाषा द्वारा प्रचार किया, उनमें सात्त्विक योग प्रणाली का ही यह उद्धार नाथपंथियों ने गुरु नानक प्रमुख थे। कुछ अंशों में इनका मत कबीर से किया है। मिलता-जुलता है या नहीं यह अनिश्चित है। नानक ने इस मत में शुद्ध हठयोग तथा राजयोग की साधनाएँ अनेक हिन्दू तथा मुस्लिम महात्माओं का सत्संग किया । अनुशासित हैं। योगासन, नाड़ी ज्ञान, षट्चक्र निरूपण तथा पंजाबी के अतिरिक्त इन्हें संस्कृत, फारसी तथा हिन्दी का प्राणायाम द्वारा समाधि की प्राप्ति इसके मुख्य अंग हैं। भी ज्ञान था और इन्होंने सूफी संतों तथा हिन्दू सन्तों की शारीरिक पुष्टि तथा पंच महाभूतों पर विजय की सिद्धि के रचनाएँ पढ़ी थीं। इन्होंने सारे उत्तर भारत में घूमलिए रसविद्या का भी इस मत में एक विशेष स्थान है । घूमकर पंजाबीमिश्रित हिन्दी में उपदेश किया। मर्दाना इस पन्थ के योगी या तो जीवित समाधि लेते हैं या नाम का इनका एक शिष्य इनके भजन गाने के समय शरीर छोड़ने पर उन्हें समाधि दी जाती है । वे जलाये तीन तार वाला बाजा बजाता था। उन्होंने अनेक अनुनहीं जाते । यह माना जाता है कि उनका शरीर योग से यायी इकट्ठे किये तथा उनके लिए 'जपजी' पद्यों की एक ही शुद्ध हो जाता है, उसे जलाने की आवश्यकता नहीं। संग्रह तैयार किया। उनमें से अनेक गीतियाँ भगवान् की नाथपंथी योगी अलख (अलक्ष) जगाते हैं। इसी शब्द दैनिक प्रार्थना के निमित्त इकट्ठी की गयी थीं । कविता से इष्टदेव का ध्यान करते है और इसी से भिक्षाटन के क्षेत्र में नानक की कबीर से कोई तुलना नहीं, लेकिन भी करते हैं। इनके शिष्य गुरु के 'अलक्ष' कहने पर नानक की रचनाएँ सादी, साफ तथा विचारों को सरलता 'आदेश' कहकर सम्बोधन का उत्तर देते हैं । इन मन्त्रों से वहन करने में समर्थ हैं। दर्शन के दो ग्रन्थ भी का लक्ष्य वही प्रणवरूपी परम पुरुष है जो वेदों और ( संस्कृत में ) 'निराकारमीमांसा' तथा 'अद्भुतगीता' उपनिषदों का ध्येय है । नाथपंथी जिन ग्रन्थों को प्रमाण उनके रचे कहे जाते हैं। मानते हैं उनमें सबसे प्राचीन हठयोग सम्बन्धी ग्रन्थ उनके मत के अनुसार ईश्वर एक है, शाश्वत है घेरण्डसंहिता और शिवसंहिता है। गोरक्षनाथ कृत तथा हृदय से उसकी पूजा होनी चाहिए, न कि मूर्ति की। हठयोग, गोरक्षनाथ ज्ञानामृत, गोरक्षकल्प, गोरक्ष सहस्र हिन्दुत्व एवं इस्लाम दो रास्ते है किन्तु ईश्वर एक ही नाम, चतुरशीत्यासन, योगचिन्तामणि, योगमहिमा, है। गहस्थ का जीवन संन्यास से अधिक स्तुत्य है । धर्म योगमार्तण्ड, योगसिद्धान्तपद्धति, विवेकमार्तण्ड, सिद्ध- के नैतिक पक्ष पर उन्होंने अधिक जोर डाला। अद्वैत सिद्धान्त पद्धति, गोरखबोध, दत्त गोरख संवाद, गोरख वेदान्त के अनेक विचार, ईश्वर की व्यक्तित्व सम्बन्धी नाथजी रा पद, गोरखनाथ के स्फुट ग्रन्थ, ज्ञानसिद्धान्त कहावतें भी नानक की शिक्षाओं में प्राप्त है । 'माया' का योग, ज्ञानविक्रम, योगेश्वरी साखी, नरबोध, विरह भ्रम होना तथा गुरु की महत्ता भी उन्होंने बतायी है। पुराण और गोरखसार ग्रन्थ भी नाथ सम्प्रदाय के प्रमाण- ईश्वर से एकत्व या ईश्वर में ही विलय अथवा अपने को ग्रन्थ हैं। खो देना मोक्ष है । नानक ने अपने पापों को स्वीकार नादबिन्दु उपनिषद्-यह योगवर्गीय एक उपनिषद् है।। करते हए अपने को एक छोटा मानव बताया तथा कभी इसकी रचना छन्दोबद्ध है तथा यह चूलिकोपनिषद् का ईश्वर का अवतार नहीं कहा । नानक के पश्चात् सिक्खों अनुकरण करती है। के नौ गरु हए जिनका वर्णन अन्य स्थानों में हआ है। नानक-सिक्ख धर्म के मूल संस्थापक गुरु नानक (१४६९- दे० 'सिक्ख' । १५३८ ई०) थे। वे लाहौर जिले के तलवण्डी नामक नानकपन्थ-गुरु नानक ने नानकपन्थ चलाया जो आगे स्थान के खत्री परिवार में उत्पन्न हुए थे। उनके जीवन चलकर दसवें गुरु गोविन्दसिंह के समय में 'सिवख मत' की कहानी अनेक जनमसाखियों में कही गयो है, किन्तु बन गया। शेष विवरण के लिए दे० 'नानक' शब्द । निश्चित रूप से कुछ विशेष ज्ञात नहीं हुआ है । इस्लाम नानकपन्थी-नानक के चलाये हए पंथ के अनुयायी नानककी आँधी के कुछ ठंडे पड़ने पर जिन भारतीय सन्त- पंथी कहलाते हैं। नानकपंथी सिक्खों से अपने को भिन्न महात्माओं ने हिन्दू धर्म के सारभूत (इस्लाम के अविरोधी) मानते हैं। जैसे कबीरपंथी अपने को सनातनी हिन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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