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________________ ३४६ नक्षत्र-तिथि-वार-ग्रह-योगसम्बन्धी व्रत पड़ता है और न तो रेवती (सम्पन्न) तथा पुनर्वसु (पुनः श्रोणा या श्रवण, श्रविष्ठा या धनिष्ठा, शतभिषक् या शतसम्पत्ति लाने वाला) नाम ही, जो अन्य ऋचा में प्रयुक्त। भिषा, प्रोष्ठपदा या भाद्रपदा (पूर्व एवं उत्तर), रेवती, है, नक्षत्रबोधक हैं। अश्वयुजौ तथा अप (अव)भरणी, भरणी या भरण्या । नक्षत्र-चन्द्रस्थान के रूप में परवर्ती संहिताओं में नक्षत्रों का स्थान-वैदिक साहित्य में यह कुछ निश्चित अनेक परिच्छेदों में चन्द्रमा तथा नक्षत्र वैवाहिक सूत्र में नहीं है, किन्तु परवर्ती ज्योतिष शास्त्र उनका निश्चित बाँधे गये हैं। काठक तथा तैत्तिरीय संहिता में नक्षत्र- स्थान बतलाता है। स्थानों के साथ सोम के विवाह की चर्चा है, किन्तु उसका नक्षत्र तथा मास-ब्राह्मणों में नक्षत्रों से मास की (सोम का) केवल रोहिणी के साथ ही रहना माना गया तिथियों का बोध होता है । महीनों के नाम भी नक्षत्रों के है। चन्द्रस्थानों की संख्या दोनों संहिताओं में २७ नहीं नाम पर बने हैं : फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, कही गयी है। तैत्तिरीय में ३३ तथा काठक में कोई श्रावण, प्रौष्ठपद, आश्वयुज, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष निश्चित संख्या उद्धृत नहीं है । किन्तु तालिका में इनकी (तैष्य), माघ । वास्तव में ये चान्द्र मास ही हैं। किन्तु संख्या २७ ही जान पड़ती है. जैसा कि तैत्तिरीय संहिता चान्द्र वर्ष का विशेष प्रचलन नहीं था। तैत्तिरीय ब्राह्मण या अन्य स्थानों पर कहा गया है । २८ की संख्या अच्छी के समय से इन चान्द्र मासों को सूर्यवर्ष के १२ महीनों के तरह प्रमाणित नहीं है । तैत्तिरीय ब्राह्मणों में 'अभिजित्' (जो ३० दिन के होते थे) समान माना जाने लगा था। नवागन्तुक है, किन्तु मैत्रायणी संहिता तथा अथर्ववेद की नक्षत्रकल्प-अथर्ववेद के एक शान्तिप्रकरण का नाम तालिका में इसे मान्यता प्राप्त है। सम्भवतः २८ ही 'नक्षत्रकल्प' है। इस कल्प में पहले कृत्तिकादि नक्षत्रों की प्राचीन संख्या है और अभिजित् को पीछे तालिका से अलग पूजा और होम होता है । इसके पश्चात् अद्भुत-महाशान्ति, कर दिया गया है, क्योंकि वह अधिक उत्तर में तथा अति निऋतिकर्म और अमृत से लेकर अभय पर्यन्त महाशान्ति मन्द ज्योति का तारा है । साथ ही २७ अधिक महत्त्वपूर्ण के निमित्तभेद से तीन तरह के कर्म किये जाते हैं। संख्या ( ३४३४३) भी है। ध्यान देने योग्य है कि चीनी 'सीऊ' तथा अरबी 'मानासिक' (स्थान) संख्या में नक्ष नक्षत्रकल्पसूत्र-नक्षत्रकल्प को ही नक्षत्रकल्पसूत्र भी कहते २८ हैं। वेबर के मत से २७ भारत की अति प्राचीन हैं। दे० 'नक्षत्रकल्प' । नक्षत्र-संख्या है। नक्षत्र-तिथि-वार-ग्रह-योगसम्बन्धी व्रत-हेमाद्रि ( २.५८८संख्या का यह मान तब सहज ही समझ में आ जाता ५९०, कालोत्तर से ) संक्षेप में कुछ विशेष ( लगभग है जब हम यह देखते हैं कि महीने (चान्द्र) में २७ या १६ ) पूजाओं का उल्लेख करते हैं, जो किन्हीं विशेष २८ दिन (अधिकतर २७) होते थे । लाट्यायन तथा निदा- नक्षत्रों का किन्हीं विशेष तिथियों, सप्ताह के विशेष दिनों नसूत्र में मास में २७ दिन, १२ मास का वर्ष तथा वर्ष के साथ योग होने से की जाती हैं। उनमें से कुछ उदाहमैं ३२४ दिन माने गये हैं। नाक्षत्र वर्ष में एक महीना रण यहाँ दिये जाते हैं : यदि रविवार को चतुर्दशी हो और जुड़ जाने से ३५४ दिन होते हैं । निदानसूत्र में नक्षत्र तथा रेवती नक्षत्र हो अथवा अष्टमी और मघा नक्षत्र का परिचय देते हुए सूर्य (सावन) वर्ष में ३६० दिनों का एक साथ पड़ जायँ तो मनुष्य को भगवान् शिव की होना बताया गया है, जिसका कारण सूर्य का प्रत्येक नक्षत्र आराधना करनी चाहिए तथा स्वयं तिलान्न खाना के लिए १३३ दिन व्यय करना है (१३ x २७४३६०)। चाहिए। यह आदित्यव्रत है, जिससे व्रती अपने पुत्र तथा नक्षत्रों के नाम-कृत्तिका, रोहिणी, मगशीर्ष या मग- बन्धु-बान्धवों के साथ सुस्वास्थ्य प्राप्त करता है। यदि शिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, तिष्य या पुष्य, आश्लेषा, मघा, चतुर्दशी को रोहिणी नक्षत्र हो, अथवा अष्टमी चन्द्र फाल्गुनी, फल्गू या फल्गुन्य अथवा फल्गुन्यौ (दो नक्षत्र, सहित हो तो वह चन्द्रव्रत कहलाता है। उस दिन पूर्व एवं उत्तर), हस्त, चित्रा, स्वाती या निष्ट्या, भगवान् शिव का पूजन किया जा सकता है। उन्हें नैवेद्य विशाखा, अनुराधा, रोहिणी, ज्येष्ठाग्नि या ज्येष्ठा, के रूप में दुग्ध तथा दधि अर्पित किया जाना चाहिए । विकृतौ या मूल, आषाढा (पूर्व एवं उत्तर), अभिजित्, व्रती स्वयं भी दुग्धाहार करे। उससे उसे सुख, समृद्धि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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