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________________ ३२६ देवको-देवता विद्या, विज्ञान आदि अत्युत्तम गुणों को प्राप्त होते हैं तब कृष्ण का यह पर्याय भागवतों में बहत प्रचलित है। उन मनुष्यों का नाम भी देव होता है, क्योंकि कर्म से 'ईश्वर' अथवा 'ब्रह्म' के रूप में इसका प्रयोग होता है : उपासना और ज्ञान उत्तम हैं। इसमें ईश्वर की यह आज्ञा "एको देवो देवकीपुत्र एव ।” है कि जो मनुष्य उत्तम कर्म में शरीर आदि पदार्थों को देवजनविद्या-शतपथ ब्राह्मण (१३.४,३,१०) तथा लगाता है वह संसार में उत्तम सुख पाता है और जो छान्दोग्य-उपनिषद् ( ७.१,२,४,२,१.७,१ ) में गिनाये परमेश्वर की प्राप्तिरूप मोक्ष की इच्छा करके उत्तम कर्म गये विज्ञानों में से यह एक विज्ञान है। इसको देवविज्ञान उपासना और ज्ञान में पुरुषार्थ करता है, वह उत्तम 'देव' ___ अथवा धर्मविज्ञान कहा जा सकता है। कहलाता है। देवता-'देवता' शब्द देव का ही वाचक स्त्रीलिङ्ग है, भागवतों ( वैष्णवों) द्वारा देव शब्द का अर्थ वही हिन्दी में पुंल्लिङ्ग में इसका प्रयोग होता है । मूलतः ३३ देवता माने गये है --१२ आदित्य, ८ वसु, ११ रुद्र, लगाया जाता है जो हिब्रू शब्द 'एलोहीम' का है । यह शब्द कभी-कभी तो सर्वश्रेष्ठ ईश्वर का अर्थ और कभी द्यावा और पृथ्वो । किन्तु आगे चलकर देवमण्डल का उनके मन्त्रवर्ग के देवों, जैसे ब्रह्मा आदि का अर्थ व्यक्त विस्तार होता गया और संख्या ३३ करोड़ पहुँच गयी। करता है । ये भी पूजा के पात्र होते हैं किन्तु इनकी पूजा देवताओं का वर्गीकरण कई प्रकार से हुआ है। पहले श्रद्धामात्र है, उपासना नहीं है । भागवत अनन्य होते हैं, वे स्थानक्रम से-(१) धुस्थानीय ( ऊपरी आकाश में बहुदेवों की उपासना नहीं करते। रहने वाले ), (२) अन्तरिक्षस्थानीय ( मध्य आकाश वैदिक देवमण्डल में बहुत से देवताओं की गणना है में रहने वाले) और ( ३) पृथ्वीस्थानीय ( पृथ्वी पर रहने वाले ); दूसरे परिवारक्रम से, यथा आदित्य, वसु, जो स्थानक्रम से तीन भागों में विभक्त है-(१) पृथ्वी रुद्र आदि । तीसरे वर्गक्रम से, यथा इन्द्रावरुण, मित्रास्थानीय, (२) अन्तरिक्षस्थानीय और (३) व्योमस्था वरुण आदि । चौथे समूहक्रम से, जैसे सर्वदेवाः आदि । नीय । इसी प्रकार परिवारक्रम से देवों के तीन वर्ग हैं ___ ऋग्वेद के सूक्तों में विशेष रूप से देवताओं की (१) द्वादश आदित्य, (२) एकादश रुद्र और (३) अष्ट वसु । स्तुतियों की अधिकता है। स्तुतियों में देवताओं के नाम इनमें द्यौ और पृथिवी दो और जोड़ने से तेतीस मुख्य देव अग्नि, वायु, इन्द्र, वरुण, मित्रावरुण, अश्विनीकुमार, होते हैं। पुनः वृद्धिक्रम से तेतीस कोटि देवता माने जाते हैं । विश्वेदेवाः, सरस्वती, ऋतु, मरुत्, त्वष्टा, ब्रह्मणस्पति, जहाँ-जहाँ कोई विभूतितत्त्व पाया जाता है, वहाँ 'देव' सोम, दक्षिणा, ऋजु, इन्द्राणी, वरुणानी, द्यौ, पृथ्वी, की कल्पना की जाती है। पूषा आदि है। जो लोग देवताओं की अनेकता देवको-कृष्ण की माता का नाम देवकी तथा पिता का नहीं मानते वे इन सब नामों का अर्थ परब्रह्म परमात्मानाम वसुदेव है । देवकी कंस की बहिन थी। कंस ने पति वाचक लगाते हैं। जो लोग अनेक देवता मानते हैं वे भो सहित उसको कारावास में बन्द कर रखा था, क्योंकि इन सब स्तुतियों को परमात्मापरक मानते हैं और कहते उसको ज्योतिषियों ने बताया था कि देवकी का कोई पुत्र है कि ये सभी देवता और समस्त सष्टि परमात्मा की ही उसका वध करेगा । कंस ने देवकी के सभी पुत्रों का वध किया, किन्तु जब कृष्ण उत्पन्न हुए तो वसुदेव रातों भारतीय गाथाओं और पुराणों में इन देवताओं का रात उन्हें गोकुल ग्राम में नन्द-यशोदा के यहाँ छोड़ आये। मानवीकरण अथवा पुरुषीकरण हुआ। फिर इनकी मूर्तियाँ देवकी के बारे में इससे अधिक कुछ विशेष वक्तव्य ज्ञात बनने लगीं । इनके सम्प्रदाय बने और पूजा होने लगी। नहीं होता है । छा० उपनिषद् में भी देवकीपुत्र कृष्ण (घोर पहले सब देवता त्रिमूर्ति-ब्रह्मा, विष्णु और शिव में आङ्गिरस के शिष्य ) का उल्लेख है। परिणत हुए थे, अनन्तर देवमण्डल और पूजापद्धति का देवकीपुत्र-कृष्ण का यह मातृपरक नाम छान्दोग्य उप- विस्तार होता गया। निरुक्तकार यास्क के अनुसार निषद् ( ३.१७,६) में पाया जाता है। महाभारत के देवताओं की उत्पत्ति आत्मा से ही मानी गयी है, यथा अनुसार देवकी के पिता देवक थे। "एकस्यात्मनोऽन्ये देवाः प्रत्यङ्गानि भवन्ति ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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