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________________ २० यजुर्वेद अध्ययुं के लिए, सामवेद उद्गाता के लिए और अथर्ववेद ब्रह्म के लिए है। इस वेद का साक्षात्कार अथर्वा नामक ऋषि ने किया । इसीलिए इसका नाम अथर्ववेद पड़ा। ब्रह्मा पुरोहित के लिए यह वेद काम में आता है इसलिए जैसे यजुर्वेद को आध्वर्यव कहते हैं, वैसे ही इसे ब्रह्मवेद भी कहते हैं । कहते हैं कि इस वेद में सब वेदों का सार तत्त्व निहित है, इसीलिए यह सब में श्रेष्ठ है गोपथ ब्राह्मण में लिखा है : श्रेष्ठो हि वेदस्तपसोऽधिजातो ब्रह्मज्ञानं हृदये संबभूव । ( १1९ ) एतद्वै भूयिष्ठं ब्रह्म यद् भृग्वंगिरसः । येsङ्गिरसः सरसः । येऽथर्वाणस्तद् भेषजम् । यद् भेषजम् तदमृतम् । यदमृतं तद्ब्रह्म ग्रिफिन ने अपने अंग्रेजी पद्यानुवाद की लिखा है कि अथर्वा अत्यन्त पुराने ऋषि का जिसके सम्बन्ध में ऋग्वेद में लिखा है कि इसी सङ्घर्षण द्वारा अग्नि को उत्पन्न किया और यज्ञों के द्वारा वह मार्ग तैयार किया जिससे मनुष्यों और देवताओं में सम्बन्ध स्थापित हो गया। इसी ऋषि ने पारलौकिक तथा अलौकिक शक्तियों के द्वारा विरोधी असुरों को वश में कर लिया। इसी अचर्या ऋषि से अङ्गिरा और भृगु के वंश वालों को जो मन्त्र मिले उन्हीं की संहिता का नाम 'अथर्ववेद', 'भृग्वङ्गिरस वेद' अथवा 'अथर्वाङ्गिरस वेद' पड़ा इसका नाम, जैसा कि पहले कहा गया है, ब्रह्मवेद भी है। ग्रिफिथ ने इस नामकरण के तीन कारण बताये हैं, जिनमें से एक का उल्लेख ऊपर हो चुका है। दूसरा कारण यह है कि इस वेद में मन्त्र हैं, टोटके हैं आशीर्वाद हैं, और प्रार्थनाएं हैं, जिनसे देवताओं को प्रसन्न किया जा सकता है, उनका संरक्षण प्राप्त किया जा सकता है, मनुष्य, भूत-प्रेत, पिशाच आदि आसुरी शत्रुओं को शाप दिया जा सकता है और नष्ट किया जा सकता है । इन प्रार्थनात्मक स्तुतियों को 'ब्रह्माणि' कहा गया है। इनका ज्ञान समुच्चय होने से इसका नाम ब्रह्मवेद है । ब्रह्मवेद होने की तीसरी युक्ति यह है कि जहाँ तीनों वेद इस लोक और परलोक में सुखप्राप्ति के उपाय बताते हैं और धर्मपालन की शिक्षा देते हैं, वहाँ यह वेद ब्रह्मज्ञान भी सिखाता है और मोक्ष के उपाय बताता है। Jain Education International (३४) भूमिका में नाम है, ऋषि ने पहले-पहल अथर्ववेद अथर्ववेद के कम प्राचीन होने की युक्तियां देते हुए ग्रिफिथ यह मत प्रकट करते हैं कि जहाँ ऋग्वेद में जीवन के स्वाभाविक भाव हैं और प्रकृति के लिए प्रगाढ़ प्रेम है, वहाँ अथर्ववेद में प्रकृति के पिशाचों और उनकी अलौकिक शक्तियों का भय दिखाई पड़ता है। जहाँ ऋक् में स्वतन्त्र कर्मण्यता और स्वतन्त्रता की दशा है वहाँ अथर्ववेद में अन्धविश्वास दिखाई देता है। किन्तु उनकी यह युक्ति पाश्चात्य दृष्टि से उलटी जँचती है, क्योंकि अन्धविश्वास का युग पहले आता है, बुद्धि-विवेक का पीछे। अतः अथर्ववेद तीन गेंदों से अपेक्षाकृत अधिक पुराना होना चाहिए । अथर्ववेद में लगभग सात सौ साठ सूक्त हैं जिनमें छः हजार मन्त्र हैं । पहले काण्ड से लेकर सातवें तक किसी विषय के क्रम से मन्त्र नहीं दिये गये हैं। केवल मन्त्रों की संख्या के अनुसार सुक्तों का क्रम बाँधा गया है। पहले काण्ड में चार-चार मन्त्रों का क्रम है, दूसरे में पांच-पांच का तीसरे में छः-छः का, बीचे में सात-सात का, परन्तु पांचवें में आठ से अठारह मन्त्रों का क्रम है। छठे में तीनतीन का क्रम है। सातवें में बहुत से अकेले मन्त्र है और ग्यारह ग्यारह मन्त्रों तक का भी समावेश है। आठवें काण्ड से लेकर बीसवें तक लम्बे-लम्बे सूक्त हैं जो संख्या में पचास साठ सत्तर और अस्सी मन्वों तक चले गये है। तेरहवें काण्ड तक विषयों का कोई क्रम नहीं रखा गया है, विविध विषय मिले-जुले हैं । उनमें विशेष रूप से प्रार्थना है, मन्त्र है और प्रयोग तथा विधियाँ हैं, जिनसे सब तरह के भूत-प्रेत, पिशाच, असुर, राक्षस, डाकिनी, शाकिनी, वेताल आदि से रक्षा की जा सके। जादू-टोना करने वालों, सर्पों, नागों और हिंसक जन्तुओं से तथा रोगों से बचाव होता रहे, ऐसी विधियाँ हैं । सन्तान, सर्वसाधारण की रक्षा, विशेष प्रकार की ओषधियों में विशेष गुणों के आवाहन, मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण आदि प्रयोगों, सौख्य, सम्पति, व्यापार और जुए आदि की सफलता के लिए प्रार्थनाएँ भी हैं और मन्त्र भी हैं । चौदहवें से अठारहवें तक पाँच काण्डों में विषयों का क्रम निश्चित है । चौदहवें काण्ड में विवाह की रीतियों का वर्णन है । पन्द्रहवें, सोलहवें और सत्रहवें काण्ड में कुछ विशेष मन्त्र हैं । अठारहवें में अन्त्येष्टि क्रिया की विधियाँ और पितरों के श्राद्ध की रीतियाँ हैं । उन्नीसवें में विविध For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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