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________________ दुर्गन्धदुर्भाग्यनाशनत्रयोदशी-दुर्गोत्सना ३२६ A .. दुर्गन्धदुर्भाग्यनाशनत्रयोदशी-ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को इस देवीमाहात्म्य में ७०० श्लोक हैं अतएव यह 'सप्तशती' व्रत का अनुष्ठान होता है । तीन वृक्षों, यथा श्वेत मन्दार भी कहलाता है। इसमें देवों की रक्षा के लिए दुर्गा के अथवा अर्क, लाल करवीर तथा नीम का पूजन इसमें द्वारा अनेक दानवों को मारने की चर्चा है। उनका रूप किया जाता है । यह व्रत सूर्य को बहुत प्रिय है । इसको युद्ध के बीच बड़ा ही भयंकर हो गया है । यहाँ उनके प्रतिवर्ष करना चाहिए। इससे शरीर की दुर्गन्ध तथा सम्प्रदाय के नियमादि तो नहीं दिये जा रहे है किन्तु दुर्भाग्य नष्ट हो जाता है। यह प्रकट है कि ग्रामीण सरलवृत्ति के लोग इनकी पूजा दुर्गा-दुर्गति और दुर्भाग्य से बचाने वाली देवी। इनका में मदिरा और मांस का प्रयोग करते थे। सम्भवतः उन उल्लेख सर्वप्रथम महाभारत में आता है। वहाँ उनकी दिनों देवी को नरबलि भी देते थे जो अब वजित है। धीरेस्तुति महिषमदिनी तथा कुमारी देवी के रूप में हुई है, धीरे इस शाक्त पूजा पद्धति पर वैष्णव धर्म का प्रभाव जो विन्ध्य पर्वत में निवास करती है तथा मदिरा, मांस, पड़ा। दुर्गा अब बहुत अंश में वैष्णवी हो चुकी हैं । भागवत पशुबलि से प्रसन्न होती है। अपनी सुचरित्रता से वे कृष्णसम्प्रदाय के साथ दुर्गा का सम्बन्ध इसी तथ्य की स्वर्ग को धारण करती हैं। वे कृष्ण की बहिन भी हैं, उन्हीं की तरह घने नीले रङ्ग की तथा मयूरपंख की दुर्गा की मूर्ति का अंकन शक्ति के प्रतीक के रूप में कलँगी धारण करती है । इनका शिव से कोई सम्बन्ध यहाँ हुआ है। वे अत्यन्त सुन्दरी (त्रिपुरसुन्दरी) परन्तु महती नहीं दिखाया गया है। शक्तिशालिनी के रूप में दिखायी जाती है। उनकी आठ, महाभारत (६.२३) में ही एक और परिच्छेद में ये दस, बारह अथवा अठारह भुनाएँ होती हैं, जिनमें अस्त्रदेवी कृष्णकथा से सम्बन्धित हैं तथा यहाँ उन्हें शिव की शस्त्र धारण किये जाते हैं। उनका वाहन सिंह है, जो पत्नी उमा कहा गया है। उन्हें वेद, वेदान्त, सूचरित्रता स्वयं शक्ति का प्रतीक है। वे अपनी शक्ति ( एक शस्त्र तथा अन्य अनेक गुणों से संयुक्त बतलाया गया है। किन्तु का नाम ) से महिषासुर ( तमोगुण के प्रतीक ) का वध वे कुमारी नहीं हैं। करती हैं। दुर्गापूजा अथवा दुर्गोत्सव आश्विन मास के हरिवंश के दो अध्यायों तथा मार्कण्डेय पुराण के एक शक्ल पक्ष में मनाया जाता है । इसके प्रथम नौ दिनों को अंश को 'देवीमाहात्म्य' कहते हैं । हरिवंश का रचनाकाल नवरात्र कहते हैं । इसमें अनेक प्रकार की धार्मिक क्रियाओं चौथी या पाँचवी शती ई० बताया जाता है, इसलिए का अनुष्ठान किया जाता है। देवीमाहात्म्य अधिक से अधिक छठी शताब्दी ई० का दुर्गाचन्द्रकलास्तुति-व्याख्या समेत यह स्तुति कुवलयानन्दहोना चाहिए, क्योंकि यह बाण कवि रचित 'चण्डीशतक' कृत एक निबन्ध ग्रन्थ है जो शाक्त सम्प्रदाय में बहुत लोक(७वीं शताब्दी का प्रारंभिक काल) की पष्ठभमि का काम प्रिय है। करता है । हरिवंश के अध्यायों में दुर्गा के सम्प्रदाय के दूर्गाशतनामस्तोत्र-विश्वसारतन्त्र में यह स्तोत्र पाया जाता धार्मिक दर्शन का वर्णन पाया जाता है । है। इस तन्त्र में भी ६४ तन्त्रों की तालिका दी हई है, देवी के उपासकों का एक सम्प्रदाय है तथा वैष्णव जिसका उल्लेख 'आगमतत्त्वविलास' में है। और शवों की तरह इस मत के अनुसार देवी ही उप- दुर्गोत्सव-दोनों नवरात्रों (शारदीय एवं वसन्तकालीन) में निषदों का ब्रह्म है । देवी शक्ति का विचार यहाँ सर्वप्रथम दुर्गा की पूजा होती है। किन्तु शारदीय पूजा का माहादृष्टिगोचर होता है। ब्रह्म जब कर्म के नियमों से बाधित त्म्य बहुत बड़ा है, क्योंकि परम्परा के अनुसार भगवान् नहीं है, तो वह अवश्य निष्क्रिय होगा और जब ईश्वर राम ने इस अवसर पर दुर्गापूजा की थी। यह भारत का निष्क्रिय है तो उसकी पत्नी ही उसकी शक्ति होगी। सम्भवतः सबसे बड़ा व्यापक उत्सव है । षष्ठी से नवमी इसीलिए वे ( शक्ति, देवी ) और भी पूजा के योग्य हैं तक विशेष पूजा का आयोजन होता है तथा दशमी को तथा व्यावहारिक मनुष्य की उनके प्रति और भी निष्ठा श्रीमूर्ति का विसर्जन होता है। देवीमति के निर्माण एवं बढ़ जाती है। सजावट में लाखों रुपयों का खर्च होता है। भारतीय धर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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