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________________ ३२२ दीक्षित-दुन्दुभि इस शब्द का मुल सम्बन्ध वैदिक यज्ञों से है। वैदिक यज्ञ दीर्घश्रवा-शाब्दिक अर्थ है 'बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त' । यह एक . का अनुष्ठान करने के पूर्व उसकी दीक्षा लेनी पड़ती थी। राजर्षि का नाम है, जिन्होंने पञ्चविंश ब्राह्मण के अनुदीक्षा लेने के पश्चात् लोग दीक्षित कहलाते थे, तभी वे सार राज्य से निष्कासित होने पर भूख से पीड़ित होकर अनुष्ठान के लिए अधिकारी माने जाते थे। इसका सामान्य किसी विशेष साम मन्त्र का दर्शन और गान किया। इस अर्थ है किसो धार्मिक कृत्य में प्रवेश की योग्यता प्राप्त प्रकार तब उनको भोजन प्राप्त हुआ। ऋग्वेद के एक करना। परिच्छेद में औसिज (वणिक्) को 'दीर्घश्रवा' कहा गया है दीक्षित-(१) यज्ञानुष्ठान की दीक्षा लेने वाला। जो सायण के मतानुसार व्यक्तिवाचक नाम है तथा (२) अप्पय दीक्षित के पितामह का नाम आचार्य राथ के मतानुसार विशेषण है। दीक्षित था। आचार्य दीक्षित भी अद्वैत सम्प्रदाय के दीर्घायु-वैदिक भारतीयों (ऋ० वे० १०.६२,२; अ० अनुयायियों में गिने जाते हैं। इन्होंने बहत से यज्ञ किये थे वे०१.२२,२) की प्रार्थना का एक मख्य विषय था इसी से ये 'दीक्षित' उपनाम से विभूषित हुए। इनका 'दीर्घायु की कामना' । जीवन का आदर्श लक्ष्य १०० वर्ष निवासस्थान काञ्चीपुरी था। जीना था। अथर्ववेद (२.१३,२८,२९; ७.३२) में अनेक दीपमालिका (बीपावली, दिवाली)-हिन्दुओं के चार प्रमुख क्रियाएं दीर्घायु के लिए भरी पड़ी हैं जो 'आयुष्याणि' त्योहारों में से एक । विशेष कर यह वैश्यवर्ग का त्योहार है कहलाती है। किन्तु सभी वर्ग वाले इसे उत्साहपूर्वक मनाते हैं। यह सारे दोघीयुष्य-दे० 'दीर्घायु' । भारत में प्रचलित है । दीपमालिका कार्तिक की अमावस्या । दुग्धव्रत-भाद्रपद की द्वादशी को दुग्ध का पूर्णरूप से परित्याग को मनायी जाती है । इस अवसर पर मकानों की पहले कर यह व्रतारम्भ किया जाता है । निर्णयसिन्धु, १४१ ने से सफाई, सफेदी और सजावट हुई रहती है। रात को इस विषय में भिन्न सिद्धान्त प्रतिपादित किया है । उसके इस विष दीपदान होता है। दीपों की मालाएँ सजायी जाती हैं। अनुसार व्रती खीर अथवा दही ग्रहण कर सकता है किन्तु इसीलिए इसका नाम 'दीपमालिका' है। इस दिन महा- दुग्ध निाषद्ध । दुग्ध निषिद्ध है। दे० वर्षकृत्यदीपिका, ७७, स्मतिकौस्तुभ, लक्ष्मी तथा सिद्धिदाता गणेश की पूजा होती है। साधक लोग रात भर जागकर जप आदि करते हैं । इसी रात को दुग्धेश्वरनाथ-उत्तर प्रदेश, पं देवरिया जिले के रुद्रपुर जुआ खेलने की बुरी प्रणाली चल पड़ी है, जिसमें कुछ कसवा के पास दुग्धेश्वरनाथ महादेव का मन्दिर है। लोग अपने भाग्य की परीक्षा करते हैं। इन्हें महाकाल का उपलिङ्ग माना जाता है। यह स्थान दीपव्रत-मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को इस व्रत का अनु बहुत प्राचीन है । नगर और दुर्ग के विस्तृत अवशेष तथा ष्ठान होता है। इसमें भगवती लक्ष्मी तथा नारायण का वैष्णव, शैव, जैन एवं बौद्ध मूर्तियाँ यहाँ पायी जाती हैं । पञ्चामृत से स्नान कराकर वैदिक मन्त्रों तथा स्तुतियों से इसकी चर्चा फाहियान ने अपने यात्रावर्णन में की है। प्रणाम निवेदन करते हुए पूजन होता है। दोनों प्रतिमाओं पहले यहाँ पञ्चक्रोशी परिक्रमा होतो थी, जिसमें अनेक के सम्मुख दीप प्रज्वलित किया जाता है । तीर्थ पड़ते थे । शिवरात्रि तथा अधिक मास में यहाँ मेला दीप्त आगम-यह एक शैव आगम है। लगता है। मुख्य मन्दिर के आसपास अनेक नवीन दीप्तिव्रत-एक वर्ष तक प्रति दिन सायंकाल इस व्रत का मन्दिर हैं। दुन्दुभि-एक चर्मावृत आनद्ध प्रकार का बाजा, जो युद्ध एवं अनुष्ठान होता है । इसमें व्रती को तेल निषिद्ध है । वर्ष शान्ति दोनों में व्यवहृत होता था। ऋग्वेद तथा उसके के अन्त में स्वर्ण का दीपक, लघु स्थाली, त्रिशूल और परवर्ती साहित्य में प्रायः इसका उल्लेख हुआ है । भूमिएक जोड़ा वस्त्र का दान विहित है। इसके आचरण से दुन्दुभि एक विशेष प्रकार का नगाड़ा था, जो जमीन को मनुष्य इहलोक में मेधावी होता है तथा अन्त में रुद्रलोक खोदकर उसके गड्ढे को चमड़े से मढ़कर बनाया जाता प्राप्त करता है । यह संवत्सरवत है। था। इसका प्रयोग महाव्रत के समय सूर्य की वापसी के दीर्घनीय----ऋग्वेद की एक ऋचा (८.५०.१०) में दीर्घनीथ विरोधी प्रभावों को रोकने के लिए होता था। दुन्दुभिको यज्ञकर्ता कहा गया है। वादक भी पुरुषमेघ की बलिवस्तुओं में सम्मिलित है। २५४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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