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________________ तत्त्वकौमुदी-तत्त्वबोधिनी २९१ से प्रेरित होकर विश्व की सृष्टि होती है । इस प्रक्रिया को तत्त्वदीधिति-सं० १४५७ वि० में रघनाथ शिरोमणि ने 'आभास' भी कहते हैं। गङ्गेश उपाध्याय रचित 'तत्त्वचिन्तामणि' पर 'तत्त्वदीतत्वकौमदी-आचार्य वाचस्पति मिश्र ने सांख्यकारिका पर धिति' नामक व्याख्या लिखी है। तत्त्वकौमुदी नामक टीका की रचना की है। __ तत्त्वदीधितिटिप्पणी-जगदीश तर्कालङ्कार (१६६७ वि०) तत्त्वकौमुदीव्याख्या-चौदहवीं शती वि० के उत्तरार्ध में ने रघुनाथ शिरोमणि के ग्रन्थ 'तत्त्वदीधिति' पर 'तत्त्वभारती यति ने बाचस्पतिमिश्ररचित 'सांख्यतत्त्वकौमुदी' दीधितिटिप्पणी' नामक उपटीका लिखी है। पर 'तत्त्वकौमुदीव्याख्या' नामक टीका लिखी है। तत्त्वदीपन-१५वीं शती में आचार्य अखण्डानन्द ने अद्वैततत्त्वकौस्तुभ-भट्टोजि दीक्षितकृत 'तत्त्वकौस्तुभ' नामक वेदान्तीय शारीरकभाष्य सम्बन्धी ग्रन्थ 'पञ्चपादिकावेदान्त विषयक ग्रन्थ है। इसमें द्वैतवाद का खण्डन विवरण' के ऊपर 'तत्त्वदीपन' नामक निबन्ध लिखा । यह किया गया है। प्रामाणिक रचना मानी जाती है । तस्वदीपनिबन्ध-वल्लभाचार्य ने संस्कृत में अनेक विद्वत्तासत्त्वचिन्तामणि-नव्य न्याय पर मैथिल विद्वान् गङ्गेशो पूर्ण ग्रन्थों की रचना की, जिनमें से उनके सिद्धान्तों को पाध्याय रचित यह अति प्रसिद्ध ग्रन्थ है। अनेक आचार्यों संक्षेप में बतलाने वाली 'तत्त्वदीपनिबन्ध' पद्यमय ने इस पर टीका व भाष्य लिखे हैं। रचना है । इसके साथ 'प्रकाश' नामक गद्य टीकाभाग तत्वचिन्तामणिव्याख्या-वासुदेव सार्वभौम (१५३३ वि०) तथा सत्रह संक्षिप्त पुस्तिकाओं का भाग भी जुड़ा हुआ है । ने गङ्गेशोपाध्याय रचित प्रसिद्ध न्यायग्रन्थ 'तत्त्वचिन्ता तत्त्वनिरूपण-पन्द्रहवीं शती में राम्य जामाता मुनि ने मणि' पर यह व्याख्या लिखी है। तत्त्वनिरूपण नामक निबन्ध लिखा । यह विशिष्टाद्वैतमंत तत्त्वटीका-वेदान्ताचार्य वेङ्कटनाथ (१३२५ वि०) ने तत्त्व- का समर्थक सम्मान्य ग्रन्थ है । टीका नामक ग्रन्थ तमिल भाषा में लिखा । भगवद्भक्ति तत्त्वनिर्णय-श्रीवैष्णव मतावलम्बी वरदाचार्य (तेरहवीं इसमें कूट-कूटकर भरी है। शताब्दी विक्रमीय) ने 'तत्त्वनिर्णय' नामक ग्रन्थ की तत्त्वत्रय-(१) रामानुज स्वामी द्वारा प्रतिपादित विशि रचना की, जिसमें उन्होंने विष्णु को ही परब्रह्म सिद्ध ष्टाद्वैत मत के अनुसार सष्टि के मल में तीन तत्त्व है किया है । यह ग्रन्थ सम्भवतः अप्रकाशित है। (१) ईश्वर (सर्वात्मा) (२) चित् (आत्मा) और (३) तत्त्वप्रकाश-शिवज्ञान योगी ने, जो शैव सम्प्रदाय की अचित् (जड प्रकृति) । प्रथम तत्त्व ही वास्तव में तत्त्व है तमिल शाखा के प्रसिद्ध आचार्य थे, तमिल में 'तत्त्ववजो पिछले दो से विशिष्ट है। इन तीनों में सायुज्य पिरकाश' ( सं० तत्त्वप्रकाश ) नामक ग्रन्य की रचना की सम्बन्ध है। थी। रचनाकाल १८वीं शती है। तत्त्वप्रकाशिका-जयतीर्थ ( सं० १३९७ वि० ) ने आचार्य (२) लोकाचार्य दक्षिण के एक प्रसिद्ध वैष्णव विद्वान मध्वरचित 'वेदान्तसूत्रभाष्य' पर 'तत्त्वप्रकाशिका' नामक हो चुके हैं । इनका काल विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी है, टीका लिखी है। इन्होंने विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त को समझाने के लिए 'तत्त्वत्रय' एवं 'तत्त्वशेखर' नामक ग्रन्थ लिखे। दोनों ग्रन्थ तत्त्वप्रदीपिका-(१) तेरहवीं शताब्दी में चित्सुखाचार्य ने सरल एवं सुबोध है। तत्त्वत्रय में चित्तत्त्व अथवा आत्म अपने 'तत्त्वप्रदीपिका' नामक ग्रन्थ में न्यायलीलावतीकार तत्त्व, अचित्तत्त्व अथवा जडतत्त्व और ईश्वरतत्त्व का वल्लभाचार्य के मत का खण्डन किया है। तत्वप्रदीपिका निरूपण करते हुए रामानुजीय सिद्धान्त का प्रतिपादन का दूसरा नाम 'चित्सुखी' है। (२) तेरहवीं शती के अन्तिम चरण में त्रिविक्रम ने किया गया है। मध्वाचार्य रचित 'वेदान्तसूत्रभाष्य' पर 'तत्त्वप्रदीपिका' तत्त्वत्रयचुलुकसंग्रह-पन्द्रहवीं शताब्दी में आचार्य वरदगुरु नामक टीका लिखी है। ने रामानुज मत की व्याख्या करते हुए 'तत्त्वत्रयचुलुक- तत्त्वबोधिनी-सोलहवीं शताब्दी को उत्तरार्द्ध में अद्वैत मत संग्रह' नामक ग्रन्थ लिखा है। के प्रमुख आचार्य नृसिंहाश्रम स्वामी उद्भट दार्शनिक एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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