SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८६ ज्ञानपाद-ज्ञानी नामक वेदान्त ग्रन्थ में अपनी गुरुपरम्परा लिखी है। अद्वैतवादी संन्यासी को परास्त किया। अन्त में इन्होंने इन्हीं की परम्परा में प्रज्ञाचक्षु महाराज गुलाबराव जैसे वैष्णवमत स्वीकार कर लिया। प्रकाण्ड विद्वान् और महात्मा हुए। ज्ञानसागर नाम के कई ग्रन्थ हिन्दी आदि अन्य लोकज्ञानपाव-शैव आगमों एवं संहिताओं के चार विभाग हैं भाषाओं में भी उपलब्ध होते हैं। इनमें साम्प्रदायिक धर्म ज्ञानपाद, योगपाद, क्रियापाद एवं चर्यापाद । ज्ञानपाद में और दर्शन सम्बन्धी उपदेश पाये जाते हैं । दार्शनिक तत्त्वों का निरूपण है। ज्ञानसिद्धान्तयोग-नागरी प्रचारिणी सभा, काशी ने गुरु ज्ञानप्रकाश-सुधारवादी या निर्गणवादी साहित्य सम्बन्धी गोरखनाथ रचित ३७ ग्रन्थों की खोज की है। 'ज्ञानएक ग्रन्थ, जिसको १८०७ वि० के लगभग जगजीवनदास सिद्धान्तयोग' भी उनमें से एक है । गोरखपन्थ के अध्ययन सन्त ने लिखा था। के लिए यह ग्रन्थ उपयोगी है। ज्ञानयाथार्थ्यवाद-अनन्ताचार्य अथवा अनन्तार्य रचित । ज्ञानस्वरोदय--चरणदासी पन्थ के संस्थापक महात्मा चरणविशिष्टाद्वैतवाद का एक ग्रन्थ । इसमें आचार्य की दार्श दास ने इस ग्रन्थ की रचना की है। इसमें पन्थ के धार्मिक निकता एवं पाण्डित्य का पूरा परिचय मिलता है। तथा दार्शनिक सिद्धान्तों की चर्चा है । ज्ञानरत्नप्रकाशिका-तृतीय श्रीनिवास द्वारा रचित एक ज्ञानानन्द-वेदान्ताचार्य प्रकाशानन्द के गुरु स्वामी ज्ञानाग्रन्थ । इसमें दार्शनिक तत्त्वों का विवेचन किया गया है। नन्द थे । इनका जीवनकाल १५वीं और १६वीं शती का ज्ञानलिङ्गजङ्गम-वीरशैवों के पाँच बड़े मठों में केदारेश्वर मठ अति प्राचीन है। परम्परानुसार यह ५००० वर्षों से मध्य भाग होना चाहिए । स्वामी ज्ञानानन्द की गणना छान्दोग्य तथा केनोपनिषद् के वृत्तिकारों एवं टीकाकारों में अधिक पुराना है । महाराज जनमेजय के राजत्व काल में की जाती है। यहाँ के महन्त स्वामी आनन्दलिङ्ग जनम थे। इनके शिष्य ज्ञानलिङ्ग जङ्गम हुए। मठ में प्राप्त एक ताम्र ज्ञानामृत-(१) माध्व संप्रदाय के एक ग्रन्थव्याख्याकार । शासन से पता लगता है कि महाराज जनमेजय ने एक आनन्दतीर्थ द्वारा तैत्तिरीयोपनिषद् पर लिखे गये भाष्य बड़ा क्षेत्र इस मठ को इसलिए दान दिया था कि उसकी पर ज्ञानामृत एवं अन्य आचार्यों ने टीकाएं लिखी हैं। . आय से आनन्दलिङ्ग के शिष्य ज्ञानलिङ्ग भगवान् केदा (२) 'ज्ञानामृत, गोरखनाथ लिखित एक ग्रन्थ भी है । रेश्वर की पूजा किया करें । उक्त जनमेजय पाण्डव परीक्षित ज्ञानामृतसागर-भागवतसम्प्रदाय का एक ग्रन्थ । 'नारदका पुत्र था, यह कहना कठिन है । यह कोई परवर्ती राजा पाञ्चरात्र' और 'ज्ञानामृतसार' से पता चलता है कि भागवत हो सकता है। धर्म की परम्परा बौद्धधर्म के फैलने पर भी नष्ट नहीं हो पायी । इसके अनुसार हरिभजन ही मुक्ति का परम साधन ज्ञानवसिष्ठम्-स्मार्त साहित्य के अन्तर्गत अध्यात्मज्ञान सम्बन्धी ग्रन्थ 'योगवासिष्ठ रामायण' बहुत उपयोगी है । 'ज्ञानामृतसार' में छः प्रकार की भक्ति कही गयी है : रचना है। तमिल भाषा के प्रौढ़ ग्रन्थकार अलनन्तर स्मरण, कीर्तन, वन्दन, पादसेवन, अर्चन और आत्मनिवेदन। मदवप्पत्तर ने संवत् १६५७ वि० में योगवासिष्ठ का ज्ञानावाप्तिवत-चैत्र पूर्णिमा के उपरान्त एक वर्ष तक इस तमिल में पद्य अनुवाद किया है, जिसका नाम 'ज्ञान व्रत का अनुष्ठान होता है । इसमें नृसिंह भगवान् की प्रतिवसिष्ठम्' है। दिन पूजा का विधान है। सरसों से होम तथा ब्राह्मणों को मधु, घृत, शर्करा से युक्त भोजन कराना चाहिए । वैशाख ज्ञानसमुद्र-दादूपन्थी सन्त सुन्दरदास (सं० १६५५-१७४६ पूर्णिमा से तीन दिन पूर्व उपवास तथा पूर्णिमा के दिन वि०) द्वारा रचित एक ग्रन्थ । सुवर्णदान का विधान है। इससे मेधा की वृद्धि होती है। ज्ञानसागर-यह ग्रन्थ आचार्य यज्ञमूर्ति (देवराज) द्वारा तमिल ज्ञानी-परमात्मा के स्वरूप, गुण, शक्ति आदि को जाननेभाषा में रचा गया है। इन्होंने स्वामी रामानुजाचार्य वाला व्यक्ति । प्रायः उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र, गीता इन तीन से १६ वर्षों तक शास्त्रार्थ किया, किन्तु अन्त में रामानुज प्रस्थानों के अध्ययन-चिन्तन और स्वानुभव से परमात्मा ने यामुनाचार्य के 'मायावादखण्डनम्' का अध्ययन कर इस का ज्ञान होता है । सांख्य, योग, वैशेषिक दर्शनों या अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy