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________________ जगदीश जमवाड़ी जगत् का उपादान और निमित्त कारण है । ब्रह्म ही जगत् रूप में परिणत हुआ है, फिर भी वह विकाररहित है। जगत् सत् है, मिथ्या नहीं है । आचार्य मध्व के मतानुसार जगत् सत्, जड़ और अस्वतन्त्र है। भगवान् जगत् के नियामक हैं । जगत् काल की दृष्टि से असीम है । इन्होंने भी जगत् की सत्यता को सिद्ध किया है। वल्लभाचार्य के मतानुसार ब्रह्म कारण और जगत् कार्य है । कार्य और कारण अभिन्न हैं । कारण सत् है, कार्य भी सत् है, अतएव जगत् सन् है । हरि की इच्छा से ही जगत् का तिरोधान होता है। लीला के लिए अपनी इच्छा से ब्रह्म जगत् रूप में परिणत हुआ है । जगत् ब्रह्मात्मक है, प्रपञ्च ब्रह्म का ही कार्य है। आचार्य वल्लभ अविकृत परिणामवादी हैं। उनके मत से जगत् मायिक नहीं है और न भगवान् से भिन्न ही है । उसकी न तो उत्पत्ति होती है और न विनाश । जगत् सत्य है, पर उसका आविर्भाव एवं तिरोभाव होता है। जगत् का जब तिरोभाव होता है तब वह कारण रूप से और जब आविर्भाव होता है तब कार्य रूप से स्थित रहता है। भगवान् की इच्छा से ही सब कुछ होता है । क्रीडा के लिए ही उन्होंने जगत् की सृष्टि की। अकेले क्रीडा सम्भव नहीं, अतएव भगवान् ने जीव और जगत् की सृष्टि की है। आचार्य बलदेव विद्याभूषण के मतानुसार ब्रह्म जगत् का कर्त्ता एवं निमित्तकारण है । वही उपादान कारण है। ब्रह्म अविचिन्त्य शक्ति वाला है । इसी शक्ति से वह जगत् रूप में परिणत होता है । जगदीश - जगत् का ईश (स्वामी), ईश्वर ऐश्वर्य परमात्मा का एक गुण है जिससे सम्पूर्ण विश्व का वह शासन करता है । जगन्नाथ उड़ीसा प्रदेश के अन्तर्गत पुरी स्थान में कृष्ण भगवान् का एक मन्दिर है, जिसका नाम है जगन्नाथमन्दिर | 'जगन्नाथ' (विश्व के स्वामी) कृष्ण का ही एक नाम है। उपर्युक्त मन्दिर में जगन्नाथ की मूर्ति के साथ बलराम एवं सुभद्रा की भी मूर्तियां है। आषाढ़ में रथयात्रा के दिन भगवान् जगन्नाथ की सवारी रथ में निकलती है और जनता का अपार मेला लगता है। यह चार धामों में से एक धाम है। प्रत्येक आस्तिक हिन्दू भगवान् जगन्नाथ का दर्शन करना अपना पवित्र कर्तव्य समझता है दे० 'पुरी' | | ३५ Jain Education International २७३ जगन्नाथमाहात्म्य --- यह ब्रह्मपुराण का एक अंश है। ब्रह्मपुराण को आरम्भ में ब्रह्माजी का माहात्म्यसूचक बताया गया है । स्कन्दपुराण में इसका प्रमाण भी दिया गया है । परन्तु अन्त में २४५ वें अध्याय के २० वें श्लोक में इसी पुराण में लिखा है कि यह वैष्णव पुराण है। इस पुराण में वैष्णव अवतारों की कथा की विशेषता और विशेष रूप से उत्कलवर्ती जगन्नायजी के माहात्म्य का कथन इस बात को परिपुष्ट करता है। जगन्नाथाश्रम स्वामी सम्प्रदाय के एक प्रमुख वेदान्ताचार्य | जगन्नाथाश्रम स्वामीजी सुप्रसिद्ध नृसिंहाश्रम स्वामी के गुरु थे । जगमोहन - उत्तर भारतीय मंदिर निर्माण कला (नागर शैली) के अन्तर्गत एवं विशेष कर उड़ीसा के मन्दिरों में गर्भगृह के सामने एक मण्डप होता है, जिसे जगमोहन कहते हैं। इस मण्डप में कीर्तन-भजन करने वाली मंडली आरती के समय या अन्य अवसरों पर गायन-वादन करती है। जङ्गम- 'जङ्गम' का व्यवहार दो अर्थों में होता है; प्रथम जङ्गम जाति के सदस्य के रूप में और द्वितीय एक अभ्यासी जङ्गम के अर्थ में केवल दूसरी कोटि वाले ही । पूजनीय होते हैं । अधिकांश जङ्गम विवाह करते एवं जीविका उपार्जित करते हैं । किन्तु जिन्हें अभ्यासी या आचार्य का कार्य करना होता है, वे आजन्म ब्रह्मचारी रहते हैं। उन्हें किसी मठ में रहकर शिक्षा तथा दीक्षा लेनी पड़ती है । सम्पूर्ण लिंगायत सम्प्रदाय इन जङ्गमों के अधीन होता है। जङ्गमों की दो श्रेणियों भी होती हैं-गुरुस्थल एवं विरक्त गुहस्थल का वर्णन पहले हो गया है, विरक्तों का वर्णन आगे किया जायगा । दे० 'लिङ्गायत' और 'वीरशैव' । जङ्गमबाड़ी काशी में भगवान् विश्वाराध्य का स्थान 'जङ्गमवादी' ( वाटिका) मठ के नाम से प्रसिद्ध है। यह मठ बहुत प्राचीन है। सर्वप्रथम मल्लिकार्जुन जङ्गम नामक शिवयोगी को काशिराज जयनन्ददेव ने विक्रम सं० ६३१ में प्रबोधिनी एकादशी के दिन इस मठ के लिए भूमिदान किया था । इस तरह यह ताम्रशासन लगभग पौने चौदह सौ बरसों का हुआ । इस मठ के पास १२ गाँव है। इनके सिवा गोदौलिया से लेकर दक्षिण में बंगाली टोला के डाकघर तक एवं पूर्व में अगस्त्यकुण्ड से पश्चिम में रामा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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