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________________ छन्द (बेदाङ्ग)-छन्दोग २७१ है। देवमूर्तियों के ऊपर प्रायः प्रभामण्डल और छत्र का है और इनमें से सबसे अधिक गायत्री छन्द का व्यवहार अङ्कन होता है । हुआ है। कात्यायन ने इन सात छन्दों के अनेक भेद ___ बौद्ध स्तूपों की हम्यिका के ऊपर भी छत्र अथवा छत्रा- स्थिर किये हैं। उन सब भेदों को जानने के लिए कात्यावलि ( कई छत्रों का समूह ) पायी जाती है । यन की रची सर्वानुक्रमणिका देखनी चाहिए। छन्द (वेवाङ्ग)-वेद के छः अङ्ग हैं-शिक्षा, कल्प, व्याक- इन्हीं सात छन्दों को मूल मानकर व्यावहारिक भाषा रण, निरुक्त, ज्योतिष और छन्द । जैसे मनुष्य के अङ्ग आँख, में अनन्त छन्दों का निर्माण हआ है। उत्तररामचरित में कान, नाक, मुँह, हाथ और पांव होते हैं, वैसे ही वेदों की लिखा है कि पहले-पहल आदिकवि वाल्मीकि के मुख से आँख ज्योतिष है, कान निरुक्त हैं, नाक शिक्षा है, मुख । लौकिक अनुष्टुप् छन्द की रचना हुई थी। इसके कुछ ही व्याकरण है, हाथ कल्प हैं तथा पाँव छन्द हैं। शिक्षा । दिन बाद आत्रेयी ने वनदेवता से बातों-बातों में और छन्द से ठीक-ठीक रीति से उच्चारण और पठन का इसकी चर्चा की। इस पर वनदेवता बोली, "क्या ज्ञान होता है। इस प्रकार वैदिक साहित्य का छठा आश्चर्य की बात है ! यह तो वेद से अतिरिक्त किसी नये अङ्ग छन्द है । ऋग्वेद सम्पूर्ण पद्यमय है। सामवेद एवं छन्द का आविष्कार हो गया है।" इस कथा से जान पड़ता अथर्ववेद भी पद्यमय ही हैं। केवल यजुर्वेद में पद्य और है कि भवभूति के अनुसार पहला लौकिक छन्द अनुष्टप गद्य दोनों हैं। पद्य अथवा छन्दों की संख्या एवं प्रकार है और पहले लौकिक कवि वाल्मीकि थे। वाल्मीकिअगणित हैं। रामायण में भी इस तरह की कथा दी हुई है। परन्तु छन्द का प्रधान प्रयोजन भाषा का लालित्य है। गद्य वाल्मीकीय रामायण, बालकाण्ड, दूसरे सर्ग के १५वें को सुनकर कान और मन को वह तृप्ति नहीं होती जो श्लोक की टीका करते हुए रामानुज स्वामी यह प्रकट पद्य को सुनकर होती है। पद्य याद भी जल्दी होते हैं करते हैं कि लौकिक छन्दों का प्रयोग वाल्मीकि से पहले और बहुत काल तक स्मरण रहते हैं । साथ ही वे गम्भीर चल चुका था। से गम्भीर भाव संक्षेप में व्यक्त कर देते हैं। यह तो कात्यायन की सर्वानुक्रमणिका के बाद छन्दशास्त्र के छन्दों का साधारण गुण हुआ, परन्तु वेदाध्ययन में छन्द सबसे प्राचीन निर्माता महर्षि पिङ्गल हुए। इन्होंने का ज्ञान अनिवार्य है। छन्दों को जाने विना वेदाध्ययन १,६१,६६,२१६ प्रकार के वर्णवृत्तों का उल्लेख किया पाप माना जाता है। है । संस्कृत साहित्य में इस भारी संख्या में से लगभग छन्दों को वेद का चरण बताया जाता है। जिन छन्दों ५० प्रकार के छन्द व्यवहार में आते हैं। अन्य लौकिक का प्रयोग संहिताओं में हुआ है वे और किसी ग्रन्थ में नहीं भाषाओं में संस्कृत की अपेक्षा बहुत प्रकार के छन्दों का पाये जाते । वेद के ब्राह्मण एवं आरण्यक खण्ड में वैदिक व्यवहार हुआ है। परन्तु उनकी गिनती वेदाङ्ग में नहीं है। छन्दों के विषय में बहुत सी कथाएँ आयी है पर उनसे छन्दस-वेद अथवा वेदों के सूस्तों के पवित्र पाठ को छन्दस् छन्द के विषय का विशेष ज्ञान नहीं होता । कात्यायन की कहते हैं । किन्हीं विद्वानों के मत में छन्दस् वेदों का प्राक्'सर्वानुक्रमणिका' में सात छन्दों का उल्लेख है : (१) संहिता रूप था जो संकलित न होकर केवल गान में सुरगायत्री ( २ ) उष्णिक् ( ३) अनुष्टुप् , (४) बृहती क्षित था । परन्तु सामान्यतः सम्पूर्ण वेद को ही छन्दस् (५) पंक्ति (६ ) त्रिष्टुप् और (७) जगती । गायत्री कहते हैं । वैदिक भाषा को भी छन्दस् कहा जाता था। छन्द में सब मिलाकर सस्वर २४ अक्षर होते हैं। वैदिक बौद्धों ने इसके प्रयोग का विरोध किया। प्रारम्भिक बौद्ध गायत्री छन्द त्रिपदा अर्थात् तीन चरणों का होता है। साहित्य में कहा गया है कि जो छन्दस् का प्रयोग करेगा इसी प्रकार २८ अक्षरों का उष्णिक् छन्द होता है । अनु- वह दुष्कृत (पाप) करेगा। ष्टुप् में ३२ अक्षर होते हैं । बृहती में ३६, पंक्ति में ४०, छन्दोग-सामवेद संहिता के मन्त्रों को गाने वाले छन्दोग त्रिष्टुप् में ४४ और जगती में ४८ अक्षर होते हैं। जान कहलाते हैं। इन्हीं छन्दोगों के कर्मकाण्ड के लिए जो आठ पड़ता है, जगती से बड़े छन्द वैदिक काल में नहीं बनते ब्राह्मण ग्रन्थ व्यवहार में आते हैं वे छान्दोग्य कहे जाते हैं । थे। वेद का बहुत भारी मन्त्रभाग इन्हीं सात छन्दों में ये सब आरण्यक ग्रन्थ 'छान्दोग्यारण्यक' नाम से प्रसिद्ध हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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