SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चिदानन्व-चैतन्यचन्द्रोदय २६७ राज की यहाँ स्थापना हुई, ऐसी अनुश्रुति है । धार्मिक यहाँ की रम्य एकान्त स्थली में वल्लभाचार्यजी ने भगविस्तार और कला की अभिव्यक्ति दोनों ही दृष्टियों से यह वान् की आराधना की थी। उसकी स्मृति में 'महाप्रभुजी मन्दिर अपूर्व है। की बैठक स्थापित है। इससे वैष्णव भी इसे अपना तीर्थ इसी चिदम्बरपुर के निवासी उमापति नामक एक । मानते हैं। ब्राह्मण शूद्र सन्त मरई ज्ञानसम्बन्ध के शिष्य हो गये थे, चूलिकोपनिषद्--इस उपनिषद् में सेश्वर सांख्ययोग सिद्धान्त जिसके कारण उनको जाति से निकाल दिया गया। किन्तु सरलता से प्रस्तुत किया गया है। चूलिका का सांख्य मत गुरु की कृपा से उमापति बहत बड़े सैद्धान्तिक ग्रन्थों के प्रणेता मैत्रायणी के निकट प्रतीत होता है, अतएव ये दोनों उपहुए। उन्होंने अनेक ग्रन्थ रचे जिनमें से आठ तो सिद्धान्त निषदें (चलिका एवं मैत्रायणी) लगभग एक ही काल को शास्त्रों में से हैं। आगे चलकर इनका नाम उमापति शिवा- रचनायें हैं। चार्य हुआ। चेतन-आत्मा का एक पर्याय । इसका अर्थ है 'चेतना रखने चिदानन्द-माध्व वैष्णवों के इतिहास में अठारहवीं शती के । वाला ।' चिदूप होने से आत्मा का यह नाम हुआ । पुरुषमध्य कई अनन्य भगवत्प्रेमी कवि हुए, जिन्होंने भगवान् सूक्त के चतुर्थ मन्त्र में पुरुष के रूप एवं कार्यों के वर्णन कृष्ण की स्तुति के गीत कन्नड़ भाषा में लिखे थे। इनमें में कथित है 'ततो विश्वं व्यक्रामत्', अर्थात् यह नाना प्रकार एक थे चिदानन्द दास, जिनका कन्नड़ ग्रन्थ 'हरिभक्ति का जगत् उसी पुरुष के सामर्थ्य से उत्पन्न हुआ है । वह रसायन' अति प्रसिद्ध है। इनका 'हरिकथासार' नामक दो प्रकार का है; एक 'साशन' अर्थात् चेतन, जो कि अन्य कन्नड़ ग्रन्थ भी सैद्धान्तिक ग्रन्थ समझा जाता है। भोजनादि के लिए चेष्टा करता है और जीवसंयुक्त है । चिन्तामणितन्त्र-'आगमतत्त्वविलास' में दी गयी ६४ तन्त्रों दूसरा 'अनशन', अर्थात् जो जड है और भोज्य होने के की सूची में इसका ३३वा क्रम है । तन्त्र के विभिन्न अङ्गों लिए बना है, क्योंकि उसमें ज्ञान नहीं है, वह अपने आप पर इससे प्रकाश पड़ता है। चेष्टा भी नहीं कर सकता। आत्मा सभी दर्शनों में चेतन चिन्त्य-(१) अट्ठाईस आगमों में से एक शैव आगम माना गया है। चैतन्य उसका गुण है। चैतन्य (१)-आस्तिक दर्शनों के अनुसार चैतन्य आत्मा का 'चिन्त्य' नामक भी है। गुण है। चार्वाक तथा अन्य नास्तिक मतों के अनुसार (२) द्धि का विषय सम्पूर्ण स्थूल विश्व चिन्त्य चैतन्य आत्मा का गुण न होकर प्राकृतिक तत्त्वों के संघात (चिन्ता का विषय ) कहलाता है। इससे विपरीत ब्रह्म से उत्पन्न होता है । जड़वाद के अनुसार पृथ्वी, जल, तेज तत्त्व अचिन्त्य है। और वायु ये चार ही तत्त्व है जिनसे विश्व में सब कुछ चुनार-वाराणसी से पश्चिम गंगातटवर्ती 'चरणाद्रि' नामक बना है। इन्हीं चारों तत्त्वों के मेल से देह बनती है। एक पहाड़ी किला । यह मिर्जापुर जिले में गंगा के दाहिने जिन वस्तुओं के मेल से मदिरा बनायी जाती है उनको तट पर स्थित पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है। पृथक्-पृथक् करने से नशा नहीं होता, किन्तु संयोग से इसकी स्थिति ( भगवान के ) चरण के आकार की है, निर्मित मदिरा से ही मादकता उत्पन्न होती है । उसी तरह अतः इसका नाम चरणा द्रि पड़ा। स्थानीय परम्परा के चारों तत्त्वों की पृथक् स्थिति में चैतन्य नहीं मालूम अनुसार इसका देशज नाम चरणाद्रि से चुनार हो गया है। होता, किन्तु इनके एक में मिल जाने से ही शरीर में लोग इसे राजा भर्तृहरि की तपोभूमि और दुर्ग में स्थित चैतन्य उत्पन्न हो जाता है। शरीर जब विनष्ट हो जाता मन्दिर को राजा विक्रमादित्य का बनवाया मानते हैं। है तो उसके साथ-साथ चैतन्य गुण भी नष्ट हो जाता है। मन्दिर इतना प्राचीन नहीं जान पड़ता । परन्तु गहड़वाल चैतन्य (२)-दे० 'कृष्ण चैतन्य' । राजवंश के समय तक कंतित (कान्तिपुरी) और चरणाद्रि संन्यास आश्रम के 'दसनामी' वर्ग के अन्तर्गत दीक्षित दोनों महत्त्वपूर्ण स्थान थे । चुनार दुर्ग का महत्त्व तो पूरे होने वाले शिष्य का यह एक उपनाम भी है। मध्यकाल तक बना रहा। प्रायः प्रत्येक दुर्ग एक प्रकार चैतन्यचन्द्रोदय-सं० १६२५ वि० के लगभग बङ्गाल में का शाक्तपीठ माना जाता था। धार्मिक नवजागरण हुआ तथा महाप्रभु कृष्ण चैतन्य के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy