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________________ चार्वाकदर्शन- चित्रभानुव्रत काम को ही पुरुषार्थ मानने वाले मनुष्यों में यह मत फैला हुआ है। यद्यपि चार्वाक का नाम प्रसिद्ध नहीं है तथापि उसका मत और उसका तर्क बहुत फैले हुए, व्यापक हैं । पाश्चात्य देशों में इस प्रकार का तर्क मानने वाले बहुत लोग हैं। यह मत आधुनिक द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद से मिलता जुलता है, केवल तर्क और युक्ति पर आधारित है । परवर्ती दार्शनिक सम्प्रदायों के ऊपर इसके आघात का यह प्रभाव हुआ कि इन सम्प्रदायों ने अपने तर्कपक्ष को पर्याप्त विकसित किया, जिससे वे इसके आक्षेपों का उत्तर दे सकें और इसका खण्डन कर सकें । चार्वाकदर्शन सम्प्रदाय के रूप में भारत में बहुत प्रचलित नहीं हुआ । ( पूर्ण विवरण के लिए दे० 'सर्वदर्शनसंग्रह', प्रथम अध्याय । ) चार्वाकदर्शन दे० 'चार्वाक' । चित्त- पतञ्जलि के अनुसार मन, बुद्धि और अहंकार तीनों से मिलकर चित्त बनता है। चित्त की पाँच वृत्तियाँ होती - प्रमाण, विपर्यय, विकल्प निद्रा और स्मृति चित्त कीक्षित, मूढ, विक्षिप्त, निरुद्ध एवं एकाग्र ये पाँच प्रकार की भूमियाँ होती हैं। आरम्भ की तीन चित्तभूमियों में योग नहीं हो सकता, केवल अन्तिम दो में हो सकता है। } चित्तवृत्तियों के निरोध का ही नाम योग है । पतञ्जलि अष्टाङ्गयोग का वर्णन किया है। ये आठ अंग हैंयम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि । योग का अंतिम चरण समाधि है । इसका उद्देश्य है चित्त के निरोध से आत्मा का अपने स्वरूप में लय । चितौड़गढ़ इसका प्राचीन नाम चित्रकूट था। यहाँ पहले पाशुपत पीठ था। मेदपाट के सिसौदिया वंश के राजाओं के समय में इसकी बड़ी प्रतिष्ठा बढ़ी। पुराने उदयपुर राज्य का यह यशस्वी दुर्ग है। यह भारत का महान् ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक तीर्थ है। यहाँ का कण-कण मातृभूमि की रक्षा के लिए तथा हिन्दुत्व के गौरव की रक्षा के लिए रक्तसिचित है। दुर्ग के भीतर महाराणा प्रताप का जन्मस्थान, रानी पद्मिनी, पन्ना धाय तथा मीराबाई के महल, कीर्तिस्तम्भ, जयस्तम्भ, जटाशंकर महादेव का मन्दिर, गोमुख कुण्ड, रानी पद्मिनी तथा अन्य राजपूत ३४ Jain Education International २६५ वीराङ्गनाओं की विस्तृत चिताभूमि, काली माता का मन्दिर आदि दर्शनीय स्थान हैं । चित्रकूट- यह उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में करवी स्टेशन के पास पयस्विनी के तट पर स्थित अति रम्य स्थान है । चित्रकूट का सबसे बड़ा माहात्म्य यह है कि भगवान् राम ने बनवास के समय वहाँ निवास किया था। चित्रकूट सदा से तपोभूमि रहा है। महर्षि अत्रि-अनसूया का यहाँ आश्रम है, जहाँ से मध्य प्रदेश लग जाता है । यहाँ तपस्वी, भगवद्भक्त, विरक्त महापुरुष सदा रहते आये हैं । चित्रगुप्तपूजा - यमद्वितीया को प्रातःकाल सवेरे चित्रगुप्त आदि चौदह यमों की पूजा होती है । इसके बाद बहिनों के घर भाई के भोजन करने की प्रथा बहुत पुरानी है। इस दिन बहिनें शाप के व्याज से भाई को आशीर्वाद देती हैं । शाप देने का उद्देश्य यमराज को धोखा देना है। शाप से भाई को मरा हुआ जानकर वह उस पर आक्रमण नहीं करता । कायस्थों का यह विश्वास है कि चित्रगुप्त उनके पूर्वज हैं । अतः इस दिन वे उनकी विधिवत् पूजा करते हैं । चित्रगुप्त यमराज के लेखक माने जाते हैं, अतः उनकी कलम-दवात की भी पूजा होती है । चित्रदीप -- विद्यारण्य स्वामी द्वारा विरचित पञ्चदशी अद्वैत वेदान्त का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है । इसके चित्रदीप नामक प्रकरण में उन्होंने चेतन के विषय में कहा है कि घटाकाश, महाकाश जलाकाश एवं मेघाकाश के समान कूटस्थ, ब्रहा, जीव और ईश्वर-भेद से चेतन चार प्रकार का है । व्यापक आकाश का नाम महाकाश है, घटावच्छिन्न आकाश को घटाकाश कहते हैं, घट में जो जल है उसमें प्रतिबिम्वित होनेवाले आकाश को जलाकाश कहते हैं और मेघ के जल में प्रतिबिम्बित होनेवाले आकाश का नाम मेघाकाश है । इन्हीं के समान जो अखण्ड और व्यापक शुद्ध चेतन है उसका नाम ब्रह्म है, देहरूप उपाधि से परिच्छिन्न चेतन को कूटस्थ कहते हैं, देहान्तर्गत अविद्या में प्रतिबिम्बित चेतन का नाम जीव है और माया में प्रतिविम्बित चेतन को ईश्वर कहते हैं । चित्रपट - अप्पय दीक्षितकृत मीमांसाविषयक ग्रन्थों में से एक चित्रपट है । यह ग्रन्थ अप्रकाशित है । चित्रभानुव्रत - शुक्ल पक्ष की सप्तमी को इस व्रत का अनुष्ठान किया जाता है। रक्तिम सुगन्धित पुष्पों से तथा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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