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________________ गोविन्दद्वादशी-गोविन्दसिंह २५१ [गो ( वेदवाणी ) से जो जाना जाता है वह गोविन्द सत्रहवीं शती के प्रारम्भिक चालीस वर्षों में चैतन्य सम्प्रकहलाता है । ] हरिवंश के विष्णुपर्व (७५.४३-४५) में दाय का आन्दोलन पर्याप्त बलिष्ठ था एवं इस काल में कृष्ण के गोविन्द नाम पड़ने की निम्नलिखित कथा है : बँगला में उत्कृष्ट काव्यरचना ( सम्प्रदाय सम्बन्धी ) करने अद्यप्रभृति नो राजा त्वमिन्द्रो वैभव प्रभो । वाले कुछ कवि और लेखक हुए। इस दल में सबसे बड़ी तस्मात्त्वं काञ्चनः पूर्णदिव्यस्य पयसो घटै : ॥ प्रतिभा गोविन्ददास की थी। एभिरद्याभिषिच्यस्व मया हस्तावनामितः । गोविन्दप्रबोध-कार्तिक शक्ल एकादशी को इस व्रत का अहं किलेन्द्रो देवानां त्वं गवामिन्द्रतां गतः ।। अनुष्ठान होता है । कुछ ग्रन्थों में द्वादशी तिथि है। गोविन्द इति लोकास्त्वां स्तोष्यन्ति भुवि शाश्वतम् ॥ गोविन्द भगवत्पादाचार्य-आचार्य गोविन्द भगवत्पाद गौड गोपालतापिनी उपनिषद् (पूर्व विभाग, ध्यान प्रकरण, पादाचार्य के शिष्य तथा शङ्कराचार्य के गुरु थे। इनके ७-८ ) में गोविन्द का उल्लेख इस प्रकार है : विषय में विशेष कोई बात नहीं मिलती। शङ्कराचार्य को तान् होचुः कः कृष्णो गोविन्दश्च कोऽसाविति गोपीजन जीवनी से ऐसा मालूम होता है कि ये नर्मदा तट पर वल्लभः कः का स्वाहेति। तानुवाच ब्राह्मणः कहीं रहा करते थे । शङ्कराचार्य का उनका शिष्य होना ही पापकर्षणो गोभूमिवेदविदितो विदिता गोपीजना विद्या- यह बतलाता है कि वे अपने समय के उद्भट विद्वान्, अद्वैत कलाप्रेरकस्तन्माया चेति ।' सम्प्रदाय के प्रमुख आचार्य एवं सिद्ध योगी रहे होंगे । उनका महाभारत (१.२१.१२ ) में भी गोविन्द नाम की कोई ग्रन्थ नहीं मिलता। किसी का कहना है कि ये व्युत्पत्ति पायी जाती है : गोविन्द पादाचार्य ही पतञ्जलि थे। परन्तु यह मत प्रामागां विन्दता भगवता गोविन्दनामितौजसा । णिक नहीं है, क्योंकि पतञ्जलि का समय दूसरी शती ई० वराहरूपिणा चान्तविक्षोभितजलाविलम् ।। पू० का प्रथम चरण है। उनका कोई अद्वैत सिद्धान्त पुनः महाभारत ( ५.७०.१३ ) में ही : सम्बन्धी ग्रन्थ नहीं मिलता है। विष्णुर्विक्रमाद्देवो जयनाज्जिष्णुरुच्यते । गोविन्दभाष्य-अठारहवीं शती में बलदेव विद्याभूषण शाश्वतत्वादनन्तश्च गोविन्दो वेदनाद् गवाम् ॥ ने चैतन्य सम्प्रदाय के लिए 'वेदान्तसूत्र' पर एक व्याख्या ब्रह्मवैवर्त पुराण (प्रकृतिखण्ड, २४ वा अ० ) में भी लिखी, जिसे 'गोविन्दभाष्य' कहते हैं। इस ग्रन्थ में यही बात कही गयी है : 'अचिन्त्य भेदाभेद' का दार्शनिक मत दर्शाया गया है कि युगे युगे प्रणष्टां गां विष्णो ! विन्दसि तत्त्वतः । ब्रह्म एवं आत्मा का सम्बन्ध अन्तिम विश्लेषण में भी गोविन्देति ततो नाम्ना प्रोच्यसे ऋषिभिस्तथा ।। अचिन्त्य है। [हे विष्णु ! आप युग युग में नष्ट हुई गौ ( वेद ) गोविन्दराज-तैत्तिरीयोपनिषद् के एक वृत्तिकार । मनुको तत्त्वतः प्राप्त करते हैं, अतः आप ऋषियों द्वारा स्मति की टीका करनेवाले भी एक गोविन्दराज हुए हैं। गोविन्द नाम से स्तुत होते हैं।] गोविन्दविरुदावली-महाप्रभु चैतन्य के शिष्य रूप गोस्वामी गोविन्दद्वादशी-फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को इस व्रत का द्वारा रचित एक ग्रन्थ । अनुष्ठान होता है । एक वर्षपर्यन्त इसका आचरण किया गोविन्दशयनवत-आषाढ़ शुक्ल एकादशी को इस व्रत का जाता है । प्रत्येक मास की द्वादशी को गौओं को विधि- अनुष्ठान होता है । किसी शय्या पर अथवा क्यारी में विष्णु वत् चारा खिलाना चाहिए। घृत, दधि अथवा दुग्ध भगवान् की प्रतिमा स्थापित की जानी चाहिए। चार मिश्रित खाद्य पदार्थों को मिट्टी के पात्रों में रखकर आहार मास तक व्रत के नियमों का आचरण किया जाना चाहिए। करना चाहिए। क्षार तथा लवण वर्जित है। हेमाद्रि, चातुर्मास्यव्रत भी इसी तिथि को आरम्भ होता है। १.१०९६.९७ ( विष्णुरहस्य से ) तथा जीमूतवाहन के गोविन्दशयन के बाद समस्त शुभ कर्म, जैसे उपनयन, कालविवेक, ४६८ के अनुसार द्वादशी के दिन पुष्य नक्षत्र विवाह, चूडाकर्म, प्रथम गृहप्रवेश इत्यादि चार मास आवश्यक है। तक निषिद्ध हैं। गोविन्ददास-ये चैतन्य सम्प्रदाय के एक भक्त कवि थे। गोविन्दसिंह-सिक्खों के दसवें गुरु । ये गुरु तेगबहादुर के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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