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________________ गुणरत्नकोष-गुरु २३५ द्रव्याश्रयी (द्रव्य में रहने वाला), कर्म से भिन्न और अनिरुद्ध को द्वारका से उठा लायी थी । गुप्तकाशी में नन्दी सत्तावान् जो हो, वह गुण है । गुण के चौबीस भेद है : पर आरूढ, अर्धनारीश्वर शिव की सुन्दर मूर्ति है। एक कुंड १. रूप २. रस ३. गन्ध ४. स्पर्श ५. संख्या में दो धाराएँ गिरती है, जिन्हें गङ्गा-यमुना कहते हैं। ६. परिमाण ७. पृथक्त्व ८. संयोग ९. विभाग यहाँ यात्री स्नान करके गप्त दान करते हैं। १०. परत्व ११. अपरत्व १२. बुद्धि १३. सुख । गुप्तप्रयाग-उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल । यह हर१४. दुःख १५. इच्छा १६. द्वेष १७. यत्न १८. सिल (हरिप्रयाग) से दो मील की दूरी पर स्थित है। गुरुत्व १९. द्रवत्व २०. स्नेह २१. संस्कार २२. झाला से आध मील पर श्यामप्रयाग ( श्याम गङ्गा और धर्म २३. अधर्म और २४. शब्द । दे० भाषापरिच्छेद । भागीरथी का संगम ) है। यहाँ से दो मील पर गुप्त__ शाक्त मतानुसार प्राथमिक सृष्टि की प्रथम अवस्था में प्रयाग है। शक्ति का जागरण दो रूपों में होता है, क्रिया एवं भूति गुप्तगोदावरी-चित्रकूट के अन्तर्गत अनसूयाजी से छः मील तथा उसके आश्रित छः गुणों का प्रकटीकरण होता है । वे तथा बाबूपुर से दो मील की दूरी पर गुप्त गोदावरी है । गुण है-ज्ञान, शक्ति, प्रतिभा, बल, पौरुष एवं तेज । ये एक अँधेरी गुफा में १५-१६ गज भीतर सीताकुण्ड है। र वासुदेव के प्रथम व्यूह तथा उनकी शक्ति इसमें सदा झरने से जल गिरता रहता है। यात्री इसमें लक्ष्मी का निर्माण करते हैं। छः गुणोंमें युग्मों के बदलकर स्नान करके गोदावरी के स्नानपुण्य का अनुभव करते हैं। संकर्षण, प्रद्युम्न एवं अनिरुद्ध ( द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ गुप्तारघाट-एक वैष्णव तीर्थ । शुद्ध नाम 'गोप्रतारतीर्थ' । व्यूह ) एवं उनकी शक्तियों का जन्म होता है आदि। अयोध्या से नौ मील पश्चिम सरयूतट पर है । फैजाबाद सांख्य दर्शन के अनुसार गुण प्रकृति के घटक हैं। इनकी छाँवनी होकर यहाँ सड़क जाती है। यहाँ सरयूस्नान का संख्या तीन हैं। सत्त्व का अर्थ प्रकाश अथवा ज्ञान, रज का बहत माहात्म्य माना जाता है । घाट के पास गुप्त हरि का अर्थ गति अथवा क्रिया और तम का अर्थ अन्धकार अथवा मन्दिर है। जडता है । जिस प्रकार तीन धागों से रस्सी बँटी जाती है गुरदास-एक मध्य कालीन सन्त का नाम । सुधारवादी उसी प्रकार सारी सृष्टि तीन गुणों से घटित है। दे० सांख्य- साहित्यमाला में १६वीं शती के अन्त में भाई गुरदास ने कारिका। एक और पुष्प पिरोया, जिसका नाम है 'भाई गुरदास की वार'। इस ग्रन्थ का आंशिक अंग्रेजी अनुवाद मेकालिफ गुणरत्नकोष-आचार्य रामानुजरचित यह एक ग्रन्थ है ।। ने किया है। गुणावाप्तिव्रत-यह फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा को प्रारम्भ होता , गुरु-गुरु उसको कहते हैं जो वेद-शास्त्रों का गृणन (उपदेश) है। एक वर्षपर्यन्त इसका अनुष्ठान होना चाहिए । शिव करता है अथवा स्तुत होता है (गृणाति उपदिशति वेदतथा क्रमशः चार दिनों तक आदित्य, अग्नि, वरुण और शास्त्राणि 'यद्वा गीर्यते स्तूयते शिष्यवर्गः)। मनुस्मृति चन्द्रदेव की (शिव रूप में) पूजा होनी चाहिए । प्रथम दो (२.१४२) में गुरु की परिभाषा निम्नांकित है : । रुद्र रूप में तथा अन्तिम दो कल्याणकारी शङ्कर रूप में। निषेकादीनि कर्माणि यः करोति यथाविधि । अचित होने चाहिए। इन दिनों पवित्र द्रव्यों से युक्त जल सम्भावयति चान्नेन स विप्रो गुरुरुच्यते । से स्नान करना चाहिए । चारों दिन गेहूँ, तिल तथा यवादि | जो विप्र निषेक (गर्भाधान) आदि संस्कारों को यथा धान्यों से होम का विधान है। आहार रूप में केवल दुग्ध । विधि करता है और अन्न से पोषण करता है वह गुरु ग्रहण करना चाहिए। दे० विष्णुधर्मोत्तर पुराण, ३.१३७. कहलाता है ।] इस परिभाषा से पिता प्रथम गुरु है, १-१३ (हेमाद्रि, २.४९९-५०० में उद्धृत)। तत्पश्चात् पुरोहित, शिक्षक आदि । मन्त्रदाता को भी गुप्तकाशी-उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग से २१ मील की दूरी गुरु कहते हैं। गुरुत्व के लिए वर्जित पुरुषों की सूची पर स्थित । पूर्वकाल में ऋषियों ने भगवान् शङ्कर की ___कालिकापुराण (अध्याय ५४) में इस पकार दी हुई है : प्राप्ति के लिए यहाँ तप किया था । कहते हैं बाणासुर की अभिशप्तमपुत्रञ्च सन्नद्धं कितवं तथा । कन्या ऊषा का भवन यहाँ था। यहीं ऊषा की सखी क्रियाहीनं कल्पाङ्गं वामनं गुरुनिन्दकम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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