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________________ २३४ गीता-गुण रचना है। बंगाल में जयदेव को निम्बार्क मतावलम्बी समन्वित । एकान्तवादी सम्प्रदायों ने इन तीन विद्याओं कहते हैं, किन्तु गीतगोविन्द की राधा प्रेयसी हैं, पत्नी को वैकल्पिक मान लिया। इससे जीवन एकाङ्गी हो नहीं, जबकि निम्बार्कों के मतानुसार राधा कृष्ण की गया । भगवान् कृष्ण ने तीनों के समन्वयमार्ग की पुनः पत्नी हैं। प्रतिष्ठा की। गीता-दे० 'श्रीमद्भगवद्गीता'। महाभारत के भीष्म- गीताभाष्य-गीताभाष्य ग्रन्थ कई आचार्यों द्वारा रचे गये पर्व में यह पायी जाती है। महाभारतयुद्ध के पूर्व अर्जुन हैं। वे आचार्य हैं-शङ्कर, रामानुज, मध्व, केशव का व्यामोह दूर करने के लिए कृष्ण ने इसका उपदेश काश्मीरी, बलदेव विद्याभूषण आदि । इन भाष्यों में किया था। इसमें कर्म, उपासना और ज्ञान का समुच्चय साम्प्रदायिक दर्शन एवं धर्म का प्रतिपादन किया गया है। है । नीलकण्ठ ने अपनी टीका में इसके विषय में कहा है : गीतार्थसंग्रह-श्रीवैष्णव सम्प्रदाय के यामनाचार्य द्वारा भारते सर्ववेदार्थो भारतार्थञ्च कृत्स्नशः । रचित संस्कृत ग्रन्थ 'गीतार्थसंग्रह' भगवद्गीता की व्याख्या गीतायामस्ति तेनेयं सर्वशास्त्रमयी मता ॥ उपस्थित करता है । इसमें विशिष्टाद्वैत दर्शन का प्रतिपादन इयमष्टादशाध्यायी क्रमात् षट्कत्रयेण हि । किया गया है। कर्मोपास्तिज्ञानकाण्ड-त्रितयात्मा निगद्यते । गीतार्थसंग्रहरक्षा-आचार्य वेङ्कटनाथ ने तमिल में लगभग मधुसूदन सरस्वती ने अपनी टीका गीतागूढार्थदीपिका १०८ ग्रंथों की रचना है। 'गीतार्थसंग्रहरक्षा' उनमें से में गीता के उद्देश्य का विशद विवेचन किया है : एक है। इसमें भगवद्भक्ति कूट-कूट कर भरी है। जनता सहेतुकस्य संसारस्यात्यन्तोपरमात्मकम् । में यह बहुत प्रिय है। परं निःश्रेयसं गीताशास्त्रस्योक्तं प्रयोजनम् ॥ आदि गीतावली (१)-चैतन्य सम्प्रदाय के आचार्यों में सनातन भगवद्गीता के अतिरिक्त और भी गीताएँ हैं, जैसे गोस्वामी प्रमुख हैं। उन्हीं की यह पद्यमयी रचना है। भागबतपुराण में गोपीगीता, अध्यात्मरामायण में राम- श्लोकों में भगवान् कृष्ण का चरित्र वर्णित है । गीता, आश्वमेधिक पर्व में ब्राह्मणगीता, अनुगीता, देवी गीतावली (२)-राम भक्ति सम्बन्धी साहित्यभंडार में भागवत में भगवतीगीता आदि । अनेक आचार्यों ने गीता पर साम्प्रदायिक टीकाएँ गोस्वामी तुलसीदास का प्रमुख योगदान है। गीतावली में तुलसीदास ने रामकथा को गीतों में कहा है। इसके गीत तथा भाष्य लिखे हैं। इनमें शाङ्करभाष्य बहुत प्रसिद्ध गेय तो हैं ही, साहित्यिक दृष्टि से बड़े उच्चकोटि के हैं । है। यह अद्वैतवादी तथा निवृत्तिमार्गी भाष्य है। आधु गीताविवृत-मध्वमतावलन्बी श्री राधवेन्द्र स्वामीकृत एक निक टीकाकारों तथा निबन्धकारों में लोकमान्य तिलक ग्रन्थ। इसकी भाषा सरल है, रचना १७वीं शताब्दी की है। का 'गीतारहस्य', श्री अरविन्द का 'एसेज ऑन दी गीता' तथा महात्मा गान्धी का 'अनासक्तियोग' उल्ले गीतासार-भगवान् कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश किया है खनीय हैं। वह गरुड पुराण (अध्याय २३३) में 'गीतासार' के नाम से गीतातात्पर्यनिर्णय-गीता पर स्वामी मध्वाचार्यरचित एक प्रसिद्ध है । मोक्ष के लिए समस्त योग, ज्ञान आदि के प्रतिनिबन्ध ग्रन्थ । इसमें द्वैतवादी दर्शन तथा कृष्ण भक्ति का पादक शास्त्रों का सार इसमें संक्षेप से संगृहीत है। प्रतिपादन किया गया है। गुटका-कबीरपंथी सम्प्रदाय की यह प्रार्थना पुस्तिका है । गीताधर्म-भगवान् कृष्ण ने अर्जुन को राजयोग का उप- कबीर के अनुयायी नित्य पाठ में इसका उपयोग करते हैं। देश करके भागवत धर्म का पुनरारम्भ किया। इसका गुडतृतीया-इस व्रत का अनुष्ठान भाद्र शुक्ल तृतीया को तात्पर्य यह है कि गीताधर्म सृष्टि के आरम्भ से चला आ होता है। पार्वती इसकी देवता हैं। पुष्पों को गुड़ अथवा रहा था। बीच में उसका लोप हो जाने पर श्री कृष्ण पायस (खीर) के साथ भगवती को समर्पण करना चाहिए। द्वारा उसका पुनरारम्भ हुआ। गीताधर्म अध्यात्म पर गण-वैशेषिक दर्शन के अनुसार पदार्थ छः है-द्रव्य, गुण, आधारित समुच्चयवादी धर्म था। मनुष्य की मुक्ति का कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय । अभाव भी एक मार्ग त्रिविध माना जाता था-ज्ञान, कर्म और भक्ति पदार्थ कहा गया है । इस प्रकार पदार्थ सात हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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