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________________ २२० गकार परमेशानि पञ्चदेवात्मकं सदा । दोनों रूपों की ओर विद्वानों ने संकेत किये है। अतः निर्गुणं त्रिगुणोपेतं निरीहं निर्मलं सदा ।। गङ्गा का भौतिक रूप के साथ एक पारमार्थिक रूप भी है। पञ्चप्राणमयं वणं सर्वशक्त्यात्मकं प्रिये । वनपर्व के अनुसार यद्यपि कुरुक्षेत्र में स्नान करके मनुष्य अरुणादित्यसंकाशां कुण्डलीं प्रणमाम्यहम् ।। पुण्य को प्राप्त कर सकता है, पर कनखल और प्रयाग के [हे परमेश्वरी देवी! ग वर्ण सदा पञ्चदेवात्मक है। स्नान में अपेक्षाकृत अधिक विशेषता है । प्रयाग के स्नान तीन गुणों से संयुक्त होते हुए भी सदा निर्गुण, निरीह को सबसे अधिक पवित्र माना गया है। यदि कोई व्यक्ति और निर्मल है । यह वर्ण पञ्च प्राणों से युक्त और सभी सैकड़ों पाप करके भी गङ्गा (प्रयाग) में स्नान कर ले तो शक्तियों से संपन्न है । लालवर्ण सूर्य के समान शोभा वाले उसके सभी पाप धुल जाते हैं। इसमें स्नान करने या कुण्डलिनीशक्ति स्वरूप इस वर्ण को प्रणाम करता है।] इसका जल पीने से पूर्वजों की सातवीं पीढ़ी तक पवित्र वर्णोद्धारतन्त्र के अनुसार इसके ध्यान की विधि इस हो जाती है । गङ्गाजल मनुष्य की अस्थियों को जितनी प्रकार है : ही देर तक स्पर्श करता है उसे उतनी ही अधिक स्वर्ग में प्रसन्नता या प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। जिन-जिन स्थानों से ध्यानमस्य प्रवक्ष्यामि शृणुष्व वरवणिनी । होकर गङ्गा बहती है उन स्थानों को इससे संबद्ध होने के दाडिमीपुष्पसंकाशां चतुर्बाहुसमन्विताम् ॥ कारण पूर्ण पवित्र माना गया है । रक्ताम्बरधरां नित्यां रत्नालङ्कारभूषिताम् । गीता (१०.३१) में भगवान् कृष्ण ने अपने को नदियों एवं ध्यात्वा ब्रह्मरूपां तन्मन्त्रं दशधा जपेत् ।। में गङ्गा कहा है। मनुस्मृति ( ८.९२ ) में गङ्गा और तन्त्रों में इसके निम्नलिखित नाम पाये जाते हैं : कुरुक्षेत्र को सबसे अधिक पवित्र स्थान माना गया है । कुछ गो-गौरी गौरवो गङ्गा गणेशो गोकुलेश्वरः । पुराणों में गङ्गा की तीन धाराओं का उल्लेख है-स्वर्गङ्गा शार्की पञ्चात्मको गाथा गन्धर्वः सर्वगः स्मृतिः ।। (मन्दाकिनी), भूगङ्गा ( भागीरथी ) और पातालगङ्गा सर्वसिद्धिः प्रभा धूम्रा द्विजाख्यः शिवदर्शनः । । (भोगवती)। पुराणों में भगवान विष्णु के बायें चरण के विश्वात्मा गौः पृथग्रूप बालबन्धुस्त्रिलोचनः । अँगूठे के नख से गङ्गा का जन्म और भगवान् शङ्कर की गीतं सरस्वती विद्या भोगिनी नन्दिनी धरा । जटाओं में उसका विलयन बताया गया है। भोगवती च हृदयं ज्ञानं जालन्धरी लवः ॥ विष्णुपुराण (२.८.१२०-१२१) में लिखा है कि गङ्गा गङ्गा-भारत की सर्वाधिक पवित्र पुण्यसलिला नदी। राजा का नाम लेने, सुनने, उसे देखने, उसका जल पीने, स्पर्श भगीरथ तपस्या करके गङ्गा को पृथ्वी पर लाये थे। यह ___करने, उसमें स्नान करने तथा सौ योजन से भी 'गङ्गा' कथा भागवत पुराण में विस्तार से है । आदित्य पुराण के नाम का उच्चारण करने मात्र से मनुष्य के तीन जन्मों अनुसार पृथ्वी पर गङ्गावतरण वैशाख शुक्ल तृतीया को तक के पाप नष्ट हो जाते हैं । भविष्यपुराण (पृष्ठ ९, १२ तथा हिमालय से गङ्गानिर्गमन ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तथा १९८) में भी यही कहा है । मत्स्य, गरुड और पद्म(गङ्गादशहरा) को हुआ था। इसको दशहरा इसलिए पुराणों के अनुसार हरिद्वार, प्रयाग और गङ्गा के समुद्रकहते हैं कि इस दिन का गङ्गास्नान दस पापों को संगम में स्नान करने से मनुष्य मरने पर स्वर्ग पहुँच जाता हरता है। कई प्रमुख तीर्थस्थान-हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर, है और फिर कभी उत्पन्न नहीं होता। उसे निर्वाण की सोरों, प्रयाग, काशी आदि इसी के तट पर स्थित हैं। प्राप्ति हो जाती है। मनुष्य गङ्गा के महत्त्व को मानता हो ऋग्वेद के नदीसूक्त (१०.७५.५-६) के अनुसार गङ्गा या न मानता हो यदि वह गङ्गा के समीप लाया जाय और भारत की कई प्रसिद्ध नदियों में से सर्वप्रथम है। महा- वहीं मृत्यु को प्राप्त हो तो भी वह स्वर्ग को जाता है और भारत तथा पद्मपुराणादि में गङ्गा की महिमा तथा पवित्र नरक नहीं देखता । वराहपुराण (अध्याय ८२) में गङ्गा के करनेवाली शक्तियों की विस्तारपूर्वक प्रशंसा की गयी है। नाम को 'गाम् गता' (जो पृथ्वी को चली गयी है) के रूप स्कन्दपुराण के काशीखण्ड (अध्याय २९) में इसके सहस्र काठशीवाट (अध्याय २९) में दसके सहस्र में विवेचित किया गया है। नामों का उल्लेख है। इसके भौतिक तथा आध्यात्मिक पद्मपुराण (सृष्टिखंड, ६०.३५) के अनुसार गङ्गा सभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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