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________________ क्षत्री-क्षत्रिय २१५ इसका आशय उस शासक (शासक जाति) से निश्चयपूर्वक नहीं है, जैसा परवर्ती ग्रन्थों में माना गया है । क्षत्रपति से सदा राजा का बोध हुआ है। आगे चलकर इसका अर्थ क्षत्रिय वर्ग ही प्रचलित हो गया। इसका शाब्दिक अर्थ है 'क्षत (आघात) से त्राण देनेवाला (रक्षा करनेवाला)' [क्षात् त्रायते इति क्षत्त्रः ] । क्षत्री-संहिताओं एवं ब्राह्मणों में यह बहुप्रयुक्त शब्द है, जिसका अर्थ राजसेवकों में से एक सदस्य होता है। किन्तु अर्थ अनिश्चित है । ऋग्वेद (६.१३.२ ) में इसका अर्थ वह देवता है, जो याजकों को अच्छी वस्तुएँ प्रदान करता है । अथर्ववेद ( ३.२४,७;५.१७.४ ) तथा अन्य स्थानों में (शतपथ ब्राह्मण १४.५.४.६ ) तथा शां० श्री० सू० ( १६ ९,१६ ) में यही अर्थ है । वाजसनेयीसंहिता में महीधर द्वारा इसका अर्थ द्वारपाल लगाया गया है । सायण ने इसका अर्थ अन्तःपुराध्यक्ष (शत० ब्रा० ५.३.१.७) लगाया है। दूसरे परिच्छेदों में इसे रथवाहक कहा गया है। बाद में क्षत्री शब्द से एक वर्णसंकर जाति का बोध होने लगा। क्षत्रिय-संहिता तथा ब्राह्मणों में 'क्षत्रिय' समाज का एक प्रमुख अंग माना गया है, जो पुरोहित, प्रजा एवं सेवक (ब्राह्मण, वैश्य एवं शूद्र) से भिन्न है। राजन्य क्षत्रिय का पूर्ववर्ती शब्द है, किन्तु दोनों की व्युत्पत्ति एक है, (राजा सम्बन्धी अथवा राजकुल का)। वैदिक साहित्य में क्षत्रिय का प्रारम्भिक प्रयोग राज्याधिकारी या दैवी अधिकारी के अर्थ में हुआ है। पुरुषसूक्त (ऋ० वे० १०.९०) के अनुसार राजन्य (क्षत्रिय) विराट् पुरुष के बाहुओं से उत्पन्न हुआ है। क्षत्रिय एवं ब्राह्मणों (ब्रह्म-क्षत्र) का सम्बन्ध सबसे समीपवर्ती था। वे एक दूसरे पर भरोसा रखते तथा एक दूसरे का आदर करते थे। एक के बिना दूसरे का काम नहीं चलता था। ऋषिजन राजाओं को अनुचित आचरण पर अपने प्रभाव से राज्यच्युत तक कर देते थे। वैदिक काल में छोटे राज्यों के क्षत्रियों का मुख्य कर्तव्य युद्ध के लिए सदैव तत्पर रहना होता था। क्षत्रियों के प्रायः तोन वर्ग होते थे-(१) राजकुल, (२) प्रशासक वर्ग और (३) सैनिक । वे दार्शनिक भी होते थे, जैसे विदेह के जनक, जिन्हें ब्रह्मा कहा गया है। इस काल के और भी ज्ञानी क्षत्रिय थे, यथा, प्रवाहण जैवलि, अश्वपति कैकेय एवं अजातशत्रु । इन्होंने एक उपासना का नया मार्ग चलाया, जिसका विकसित रूप भक्ति मार्ग है । राजऋषियों को राजन्यर्षि भी कहते थे। किन्तु यह साधारण क्षत्रिय का धर्म नहीं था। वे कृषि भी नहीं करते थे । शासन का कार्य एवं युद्ध ही उनका प्रिय आचरण था । उनकी शिक्षा का मुख्य विषय था युद्ध कला, धनुर्वेद तथा शासनव्यवस्था, यद्यपि साहित्य, दर्शन तथा धर्मविज्ञान में भी वे निष्णात होते थे। जातकों में 'खत्तिय' शब्द आर्यराजन्यों के लिए व्यवहृत हुआ है जिन्होंने युद्धों में विजय दिलाने का कार्य किया, अथवा वे प्राचीन जातियों के वर्ग जो विजित होने पर भी राजसी अवस्थाओं का निर्वाह कर सके थे, क्षत्रिय कहलाते थे। रामायण-महाभारत में भी क्षत्रिय का यही अर्थ है, किन्तु जातकों के खत्तिय से इसके कुछ अधिक मूल्य हैं, अर्थात् सम्पूर्ण राजकार्य सैनिक वर्ग, सामन्त आदि । परन्तु जातक अथवा महाभारत किसी में क्षत्रिय का अर्थ सम्पूर्ण सैनिक वर्ग नहीं है । सेना में क्षत्रियों के सिवा अन्य वर्गों के पदाधिकारी (साधारण सैनिक से उच्च श्रेणी के) होते थे। __ धर्मसूत्रों और स्मृतियों में क्षत्रिय की उत्पत्ति और कत्र्तव्यों का समुचित वर्णन है । मनु (१.३१) ने पुरुषसूक्त के वर्णन को दुहराया है : लोकानां तु विवृद्धयर्थ मुखबाहूरु पादतः । ब्राह्मणं क्षत्रियं वैश्यं शूद्रञ्च निरवर्तयात् ।। [लोक की वृद्धि के लिए विराट के मुख, बाहु, जंघा और पैरों से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र बनाये गये ।] स्मृतियों के अनुसार क्षत्रिय का सामान्य धर्म पठन (अध्ययन), यजन (यज्ञ करना) और दान है । क्षत्रिय का विशिष्ट धर्म प्रजारक्षण, प्रजापालन तथा प्रजारञ्जन है । आपात्, काल में वह वैश्यवृत्ति से अपना निर्वाह कर सकता है, किन्तु शूद्रवृत्ति उसे कभी स्वीकार नहीं करनी चाहिए । श्रीमद्भगवद्गीता (८.४३) के अनुसार क्षत्रिय के निम्नांकित स्वाभाविक हैं : शौयं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्ध चाप्यपलायनम् । दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम् ।। [शौर्य, तेज, धृति, दक्षता, युद्ध में अपलायन, दान और ऐश्वर्य स्वाभाविक क्षात्र कर्म हैं।] श्रीमद्भागवत पुराण (द्वादश स्कन्ध, अ० १ और ब्रह्मवैवर्तपुराण (श्रीकृष्णजन्म खण्ड, ८३ अध्याय) में क्षत्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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