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________________ कामत्रिवत- कामरूप 1 कामत्रिव्रत - इस व्रत में कुछ देवियों, यथा उमा, मेधा, भद्रकाली, कात्यायनी अनसूया, वरुणपत्नी का पूजन होता है। इनके पूजन से मनोवांछित अभिलाषाओं की पूर्ति होती है। तीन कामदविधि - इस व्रत में मार्गशीर्ष मास के रविवार के दिन चन्दन से चर्चित करवीर पुष्पों से भगवान् सूर्य की पूजा करनी चाहिए। कामदासप्तमी - फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को इस व्रत का प्रारम्भ होता है । इसमें एक वर्ष पर्यन्त सूर्य का पूजन होना चाहिए । इसको चार-चार मास के वर्ष के खण्ड करके फाल्गुन मास से प्रारम्भ किया जाता है । इसमें भिन्न-भिन्न फूलों भिन्न-भिन्न धूप तथा भिन्नभिन्न यों के अर्पण का विधान है। कामदेवपूजा-मंत्र शुक्ल द्वादशी को इस व्रत का अनुष्ठान होता है। इस तिथि को भिन्न-भिन्न पुष्पों से कपड़े पर चित्रित कामदेव की पूजा होती है । यह चित्रफलक शीतल जल से परिपूर्ण तथा पुष्पों से युक्त कलश के सम्मुख रखा जाना चाहिए। इस दिन पतियों द्वारा अपनी पत्नियों का सम्मान वांछनीय है । दे० कृत्यकल्पतरु का नैत्यकालिक काण्ड, ३८४ । कामधेनुव्रत – कार्तिक कृष्ण एकादशी से प्रारम्भ होकर लगातार पाँच दिन यह व्रत चलता है । इस तिथि को श्री तथा विष्णु की पूजा होती है। रात्रि में दीपों को घर, गोशाला, चैत्य, देवालय, सड़क, श्मशान भूमि तथा सरोवर में प्रज्ज्वलित करना चाहिए। एकादशी के दिन उपवास करना चाहिए तथा भगवान् विष्णु की प्रतिमा को गौ के घी या दूध में चार दिन स्नान कराना चाहिए। इसके पश्चात् कामधेनु का दान करना चाहिए। यह व्रत समस्त पापों के प्रायश्चित्तस्वरूप भी किया जाता है । कामदेवत्रयोदशी (मदनत्रयोदशी ! — चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को कामदेव त्रयोदशी कहते हैं। इस तिथि को कामदेव के प्रतीक स्वरूप दमनक वृक्ष की पूजा की जाती है । दे० 'अनङ्गत्रयोदशी' | कामन्दकीय नीतिसार - राजनीति का प्रसिद्ध ग्रन्थ । इसके प्रणेता कामन्दक नाम से प्रसिद्ध हैं । ये कौटिल्यपरम्परा के अनुयायी हैं। इस ग्रन्थ में राजनीति के विविध विषयों पर अति सारगर्भित विवरण उपस्थित किया गया है। Jain Education International १७५ विशेष कर राजा के कर्तव्य (धर्म), राजकर्मचारियों का चुनाव एवं उनका धर्म, युद्धनीति, मण्डल व्यवस्था एवं राज्य के सप्त अंगों का वर्णन अभिनय रूप में प्राप्त होता है । कुछ विद्वानों का मत है कि यह ग्रन्थ कौटिलीय अर्थ - शास्त्र का छन्दोबद्ध रूपान्तर है । किन्तु बात ऐसी नहीं हैं। कामन्दक ने एक पण्डित की भाँति युग एवं आवश्य कता के अनुसार इसके रूप को छोटा कर दिया है एवं पद्यों में रचना कर कंठस्थ करने की सुविधा उपस्थित की हैं। इसमें कौटिल्य से भिन्न विचार भी हैं एवं अतिप्राचीन आचार्यों के मतों का भी उपयोग हुआ है । इसमें ग्रन्थकार की सबसे बड़ी विशेषता साहित्यिक प्रतिभा का चमत्कार है। उपमा आदि अलद्वारों की सहायता से राजनीति के रूखे तथ्यों को अति रोचक एवं हृदयग्राही रूप दे दिया गया है । प्रजा द्वारा वर्णाश्रम धर्म पालन कराना राजा का परम कर्तव्य है, इस सिद्धान्त पर कामन्दक ने बहुत बल दिया है । काममहोत्सव - चैत्र शुक्ल चतुर्दशी को इस व्रत का अनुष्ठान होता है। त्रयोदशी की रात्रि के समय किसी उद्यान में रति तथा मदन की प्रतिमा की स्थापना करके चतुर्दशी को उनका पूजन किया जाता है। यह उत्सव श्रृंगारिक गीतों के साथ कुछ वाच यन्त्रों के साथ गाते बजाते हुए मनाना चाहिए दूसरे दिन एक पहर तक मृत्तिका से खेलना चाहिए। शैव आगम में यही व्रत चैत्रावली तथा मदनभञ्जी भी कहलाता है। दे० कृत्यकल्पतरु का व्रतकाण्ड, १९०; 'चैत्रविहित अशोकाष्टमी' । कामरूप - असम प्रदेश का प्राचीन नाम । इसके नामकरण का कारण इस प्रकार बताया गया है : "मूल प्रकृति भगवती कामरूपिणी सती (दक्षकन्या, शिवपत्नी) जिस देश में विराजमान है वह देश उनके नाम से प्रसिद्ध है।" यहाँ कामगिरि ( गोहाटी के पास ) के योनिपीठ में कामाख्या देवी का मन्दिर है तत्रचूडामणि का कथन है : 1 योनिपीठं कामगिरौ कामाख्या तत्र देवता । सर्वत्र विरला चाहं कामरूपे गृहे गृहे ॥ [ कामगिरि में योनिपीठ है। वहाँ कामाख्या नामक देवी है । सर्वत्र मैं विरला हूँ, किन्तु कामरूप में घर-घर ।] यह प्रदेश गणेशगिरि के शिखर पर स्थित है, ऐसा तन्त्रग्रन्थों में लिखा है : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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