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________________ १७४ कान्यकुब्ज ब्राह्मण-कामधेनुतन्त्र कान्यकुब्ज ब्राह्मण-भौगोलिक आधार पर ब्राह्मणों के दो कापालिकों का प्राचीनतम उल्लेख महाभारत में पाया बड़े विभाग है-पञ्चगौड (उत्तर भारत के) तथा पञ्चद्रविड जाता है। परन्तु वहाँ शैव रूप में ही वे चित्रित है, (दक्षिण भारत के )। पञ्चगौड़ों की ही एक शाखा कान्यकुब्ज बीभत्स रूप में नहीं। चालुक्य नागवर्धन (सातवीं शती) है । गौड़ों का उद्गमस्थल कुरुक्षेत्र है । इस प्राचीन गौड़- के कपालेश्वर मंदिर के अभिलेख में कापालिकों का वर्णन भूमि के निवासी होने के कारण इस प्रदेश के ब्राह्मण गौड़ । महाव्रती के रूप में मिलता है। इसके अनन्तर आठवीं कहलाये । पजाब और कश्मीर के ब्राह्मण सारस्वत हैं। शताब्दी के भवभूतिरचित 'मालतीमाधव' नाटक में प्रयाग के पास से कान्यकुब्ज तक फैले हुए ब्राह्मण कान्य- कापालिक साधक अघोरघण्ट का उल्लेख आता है, कुब्ज कहलाये। कान्यकुब्जों में सरयूपारीण, जुझौतिया जिसका सम्बन्ध श्रीशैल पर्वत (आन्ध्र) से था। और बङ्गाली भी सम्मिलित हैं। पंच गौड़ों में मैथिल और ग्यारहवीं शताब्दी के चन्देल राजाओं के राजपण्डित उत्कल ब्राह्मण भी माने जाते हैं। कृष्ण मिश्र द्वारा रचित 'प्रबोधचन्द्रोदय' में भी कापालिकों कापालिक-पाशुपत शैवों का एक सम्प्रदाय । इसका शाब्दिक की चर्चा है । इस ग्रन्थ के अनुसार कापालिकों का सम्बन्ध अर्थ है 'कपाल (खोपड़ी) धारण करने वाला' । कपाल नरबलि, श्रीचक्र, योगसावन तथा अनेक घोर असामामृतक अथवा मृत्यु का प्रतीक है, जिसका सम्बन्ध शिव के जिक क्रियाओं से था। योगदीपिका (१.८, ३.९६) में विध्वंसक, घोर अथवा रौद्र रूप से है। कापालिकों का कापालिकों का उल्लेख मिलता है : आचार-व्यवहार वाममार्गी शाक्तों से मिलता-जुलता है। 'निषेव्यते शीतलमद्यधारा इनकी संख्या कभी भी अधिक नहीं थी। वास्तव में एक कापालिके खण्डमतेऽमरोली।' संघटित सम्प्रदाय की अपेक्षा कुछ साधकों का ही यह एक किसी समय कश्मीर में कापालिक-उत्सव मनाया जाता समुदाय रहा है। था। कृष्ण चतुर्दशी के दिन नृत्य, गीत, सामूहिक यौनकापालिक मत के उद्गम के विषय में पुराणों में विहार के साथ यह उत्सव सम्पन्न होता था। आजकल अद्भुत कथाएं दी हुई है। इनमें से एक के अनुसार यह सम्प्रदाय प्रायः लुप्त है । शिव ने ब्रह्मा का वध किया था। इसका प्रायश्चित्त करने कापाली-शिव का एक विरुद, क्योंकि वे अपने घोर वेश के लिए उन्होंने कपाली व्रत धारण किया और ब्रह्मा का मे नरकपाल धारण करते हैं । महाभारत (१३.१७.१०२) कपाल उनके हाथ में पड़ा रह गया। कपाली व्रत एक में कथन है : प्रकार का उन्मत्तव्रत था, जिसके द्वारा शिव ब्रह्महत्या से अजैकपाच्च कापाली त्रिशङ्करजितः शिवः । मुक्ति पा सके । ब्रह्माण्डपुराण तथा नीलमत-पुराण में इससे कापेय-'कपि' गोत्र में उत्पन्न व्यक्ति । काठकसंहिता भिन्न शिवताण्डव की कथा दी हुई है। शिव का घोर और पञ्चविंश ब्राह्मण में कापेयों को चित्ररथ का पुरोहित ताण्डव संसार के विध्वंसक भीषण भार को स्वयं वहन कहा गया है । दे० 'शौनक'। करने के लिए है, जिससे विश्व इसकी विभीषिका से सुर- कामतानाथ (कामदगिरि)-बाँदा जिले में चित्रकूट के अन्तक्षित रहे। कापालिक साधकों का भी यही उद्देश्य है। र्गत सीताकुण्ड से डेढ़ मील दूर कामतानाथ या कामदगिरि उनके घोर रूप के भीतर महती करुणा छिपी रहती है। नामक पहाड़ो, जो परम पवित्र मानी जाती है । इस पर परन्तु कभी-कभी पथभ्रष्ट कापालिक भ्रमवश शिव का ऊपर नही चढ़ा जाता, इस की परिक्रमा की जाती है। अनुकरण करते हुए मानव-शिर काटने का अभिनय भी परिक्रमा तीन मील की है। रामचन्द्र जी ने वनवास काल करते थे। ऐसी घटनाएं कभी-कभी बीच में सुनाई पड़ती में यहीं अधिक समय व्यतीत किया था। है। 'शंकरदिग्विजय' काव्य में आचार्य शंकर के साथ कामधेनतन्त्र-शाक्त साहित्य के अन्तर्गत 'कामधेनुतन्त्र' घटी एक ऐसी ही दुर्घटना का उल्लेख है। ये जटाजूट की रचना सोलहवीं शती में हुई। इसका अंग्रेजी अनुवाद धारण करते हैं, जूट में नवचन्द्र की प्रतिमा प्रतिष्ठित मुनरो द्वारा हुआ है। रहती है, इनके हाथ में नरकपाल का कमण्डलु रहता है, ___ 'कामधेनु' नामक एक व्याकरण ग्रन्थ भी किसी परवर्ती ये कपालपात्र में मदिरा-मांस का भी सेवन करते हैं । शाकटायन द्वारा लिखा बताया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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