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________________ १७२ काठकब्राह्मण-कात्यायनस्मृति काठक ब्राह्मण-कृष्ण यजुर्वेद को काठक शाखा का ऋषियों की। कात्यायन गोत्रनाम भी सम्भव है, इस ब्राह्मण, जो सम्पूर्ण रूप में प्राप्त नहीं है। इसका कुछ भाग प्रकार उक्त ग्रन्थकर्ता कात्यायन वंशपरम्परा से अनेक तैत्तिरीय आरण्यक में उपलब्ध हुआ है। हुए होंगे। काठक संहिता-कृष्ण यजुर्वेद की चार संहिताओं में से कात्यायनस्मृति-(१) हिन्दू विधि और व्यवहार के ऊपर एक । इस वेद की संहिताओं एवं ब्राह्मणों का पृथक् कात्यायन एक प्रमुख प्रमाण और अधिकारी शास्त्रकार हैं। विभाजन नहीं है । संहिताओं में ब्राह्मणों की सामग्री भी इनका सम्पूर्ण स्मृति ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। भाष्यों और भरी पड़ी है। इसके कृष्ण विशेषण का आशय यही है निबन्धों (विश्वरूप से लेकर वीरमित्रोदय तक) में इनके कि मन्त्र भाग और ब्राह्मण भाग का एक ही ग्रन्थ में उद्धरण पाये जाते हैं। शङ्ख-लिखित, याज्ञवल्क्य और मिश्रण हो जाने से दोनों का आपाततः पृथक् वर्गीकरण पराशर ने भी कात्यायन को स्मृतिकार के रूप में स्मरण नहीं हो पाता । इस प्रकार शिष्यों को जो व्यामोह या किया है। कात्यायनस्मृति अपने विषय प्रतिपादन में नारद अविवेक होता है वही इस वेद की 'कृष्णता' है। और बृहस्पति से मिलती-जुलती है । यथा नारद के समान काठकादिसंहिता-कृष्ण यजुर्वेद की काठकादि चारों संहि- कात्यायन भी 'वाद' के चार पाद-(१) धर्म, (२) व्यवताओं का विभाग दूसरी संहिताओं से भिन्न है । इनमें हार, (३) चरित्र और (४) राजशासन मानते हैं और यह पाँच भाग हैं, जिनमें से पहले तीन में चालीस स्थानक भी स्वीकार करते हैं कि परवर्ती पाद पूर्ववर्ती का बाधक है हैं। पाँचवें भाग में अश्वमेध यज्ञ का विवरण है। (पराशरमाधवीय, खण्ड ३, भाग १, पृ० १६-१७; वीरकाण्व-कात्यायन के वाजसनेय प्रातिशाख्य में जिन पूर्वा- मित्रोदय, व्यवहार, ९-१०, १२०-१२१)। कात्यायन ने चार्यों की चर्चा है उनमें काण्व का भी नाम है। स्पष्टतः स्त्रीधन के ऊपर विस्तार से विचार किया है और उसके ये कण्व के वंशधर थे। विभिन्न प्रकारों की व्याख्या की है । प्रायः सभी निबन्धकाण्वशाखा-शुक्ल यजुर्वेद की एक शाखा । इस शाखा कारों ने स्त्रीधन पर कात्यायन को उद्धृत किया है। लगके शतपथ ब्राह्मण में सत्रह काण्ड हैं। उसके पहले, पाँचवें भग एक दर्जन निबन्धकारों ने कात्यायन के ९०० श्लोकों और चौदहवें काण्ड के दो-दो भाग हैं। इस ब्राह्मण के को उद्धृत किया है। इन उद्धरणों में कात्यायन ने बीसों एक सौ अध्याय हैं इसलिए यह 'शतपथ' कहलाता है। बार भृगु का उल्लेख किया है, भृगु के विचार स्पष्टतः दे० 'शतपथ' । मनुस्मृति से मिलते-जुलते हैं। कातन्त्रव्याकरण-वंग देश की ओर कलाप व्याकरण नारद और बृहस्पति के समान ही व्यवहार पर कात्याप्रसिद्ध है। इसे 'कातन्त्रव्याकरण' भी कहते हैं। उस यन के विचार विकसित है, कहीं-कहीं तो उनसे भी आगे। प्रदेश में इसके आधार पर अनेक सुगम व्याकरण ग्रन्थ स्त्रीधन पर कात्यायन के विचार बहुत आगे हैं । कात्यायन बनकर प्रचलित हो गये हैं। शर्ववर्मा नामक किसी ने व्यवहार, प्राड्विवाक, स्तोभक, धर्माधिकरण, तीरित, कार्तिकेयभक्त विद्वान् ने इस ग्रन्थ की रचना की है। अनुशिष्ट, सामन्त आदि पदों की नयी परिभाषाएँ भी की कात्यायन-पाणिनिसूत्रों पर वातिक ग्रन्थ रचने वाले एक हैं। कात्यायन ने पश्चात्कार और जयपत्र में भेद किया मुनि । इन्हें निरुक्तकार यास्क एवं महाभाष्यकार पतञ्जलि है; पश्चात्कार वादी के पक्ष में वह निर्णय है जो प्रतिवादी के मध्यकाल का माना जाता है। कात्यायन ने गायत्री, के घोर प्रतिवाद के पश्चात् दिया जाता है, जबकि जयउष्णिक आदि सात छन्दों के और भी भेद स्थिर किये पत्र प्रतिवादी की दोषस्वीकृति अथवा अन्य सरल आधारों हैं । इस छन्दःशास्त्र पर कात्यायनरचित सर्वानुक्रमणिका पर दिया जाता है। पठनीय है । कात्यायन वाजसनेय प्रातिशाख्य के रचयिता (२) जीवानन्द के स्मृतिसंग्रह (भाग १, पृ० ६०३भी हैं। इसके अतिरिक्त कात्यायन मुनि ने कात्यायन- ६४४) में कात्यायन नाम की एक स्मृति पायी जाती है। श्रौतसूत्र एवं कात्यायनस्मृति नामक दो और ग्रन्थों इसमें तीन प्रपाठक, उन्तीस खण्ड और लगभग ५०० की भी रचना की है। यह नहीं कहा जा सकता कि ये श्लोक हैं । आनन्दाश्रम के स्मृतिसंग्रह में यही ग्रन्थ प्रकाविभिन्न रचनाएँ एक ही ऋषिकृत हैं या अन्यान्य शित है। इसको कात्यायन का 'कर्मप्रदीप' कहा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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