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________________ काँगड़ा-काठकगृह्यसूत्र गोत्र की कल्पना कर ली जाती है, क्योंकि एक परम्परा के अनुसार सभी जीवधारियों की उत्पत्ति कश्यप से हुई। कांगड़ा हिमाचल प्रदेश का एक शक्तिपीठ, जो पठानकोट से ५९ मील पर कांगडा और उससे एक मील आगे काँगडामन्दिर स्टेशन के समीप है रास्ता मोटरस और पैदल दोनों है । यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाएँ हैं । यहाँ पर ज्वालामुखी या ज्वालाजी के नाम से दुर्गा महामाया का मन्दिर है । दोनों नवरात्रों में मेला लगता है । प्राकृतिक अग्निज्वालाओं के रूप में देवीजी दर्शन देती है। काञ्चनपुरोव्रत- यह प्रकीर्णक (फुटकर ) व्रत है। शुक्ल पक्षीय तृतीया, कृष्ण पक्षीय एकादशी, पूर्णिमा, अमावस्या, अष्टमी अथवा संक्रान्ति को सुवर्ण की पुरी, जिसकी दीवारें भी सुवर्ण की हों अथवा चाँदी या जस्ता की हों तथा खम्भे सुवर्ण के हों, दान में दी जाय। उस पुरी के अन्दर विष्णु तथा लक्ष्मी की प्रतिमाएं विराजमान करनी खण्ड २.८६८-८७६: भविष्यो तर पुराण १४७ । भगवती का यह व्रत गौरी और भगवान् शिव, राम तथा सीता दमयन्ती तथा नल, कृष्ण तथा पाण्डवों के द्वारा आचरित था । इस व्रत के आचरण से समस्त वस्तुएँ सुलभ कामनाएं पूर्ण तथा पापों का प्रक्षालन होता है। चाहिए दे० हेमाद्रि, | व्रतखण्ड, " काची (काशीवरम्) - यह तीर्थपुरी दक्षिण की काशी मानी जाती है, जो मद्रास से ४५ मील दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। ऐसी अनुभूति है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल में ब्रह्मा ने देवी के दर्शन के लिए तप किया था। मोक्षदायिनी सप्त पुरियों— अयोध्या, मथुरा, द्वारका, माया ( हरिद्वार ), काशी, काञ्ची और अवन्तिका (उज्जैन) में इसकी गणना है । काञ्ची हरिहरात्मक पुरी है । इसके शिवकाञ्ची, विष्णुकाञ्ची दो भाग हैं । सम्भवतः कामाक्षीमन्दिर ही यहाँ का शक्तिपीठ है। दक्षिण के पञ्चतत्त्वलिङ्गों में से भूतत्त्वलिङ्ग के सम्बन्ध में कुछ मतभेद है । कुछ लोग काली के एकाम्रेश्वर लिङ्ग को भूतत्वलिङ्ग मानते हैं, और कुछ लोग तिस्वारूर की त्यागराजलिङ्ग मूर्ति को । इसका माहात्म्य निम्नाङ्कित है : रहस्यं सम्प्रवक्ष्यामि लोपामुद्रापते शृणु । नेत्रद्वयं महेशस्य काशीकाञ्चीपुरीद्वयम् ॥ Jain Education International १७१ विख्यातं वैष्णवं क्षेत्रं शिवसांनिध्यकारकम् । काञ्चीक्षेत्रे पुरा पाता सर्वलोकपितामहः || श्रीदेवीदर्शनार्थाय तपस्तेपे सुदुष्करम् । प्रादुरास पुरो लक्ष्मी पद्महस्तपुरस्सरा ॥ पद्मासने च तिष्ठन्ती विष्णुना जिष्णुना सह । सर्वशृङ्गारवेषाचा सर्वाभरणभूषिता ॥ (ब्रह्माण्डपु० ललितोपाख्यान २५ ) काञ्ची आधुनिक काल में काजीवरम् के नाम से प्रसिद्ध है । यह ईसा की आरम्भिक शताब्दियों में महत्त्वपूर्ण नगर था । सम्भवतः यह दक्षिण भारत का नहीं तो तमिलनाडु का सबसे बड़ा केन्द्र था बुद्धघोष के समकालीन प्रसिद्ध भाष्यकार धर्मपाल का जन्मस्थान यहीं था. इससे अनुमान किया जाता है कि यह बौद्धधर्मीय जीवन का केन्द्र था । यहाँ के सुन्दरतम मन्दिरों की परम्परा इस बात को प्रमाणित करती है कि यह स्थान दक्षिण भारत के धार्मिक क्रियाकलाप का अनेकों शताब्दियों तक केन्द्र रहा है। छठी शताब्दी में पल्लवों के संरक्षण से प्रारम्भ कर पन्द्रहवीं एवं सोलहवीं शताब्दी तक विजयनगर के राजाओं के संरक्षणकाल के मध्य १००० वर्ष के द्राविड़ मन्दिरशिल्प के विकास को यहाँ एक ही स्थान में देखा जा सकता है । 'कैलासनाथ मन्दिर इस कला के चरमोत्कर्ष का उदाहरण है। एक दशाब्दी पीछे का पेरुमल' इस कला के सौष्ठव का सूचक है मन्दिर पल्लव नृपों के शिल्पकला प्रेम के हरण है। काशीपुराणम् अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में 'काली अपार एवं उनके गुरु 'शिवज्ञानयोगी' द्वारा काडीवरम् में प्रचलित स्थानीय धार्मिक आख्यानों के सङ्कलन के रूप में 'काञ्चीपुराणम्' ग्रन्थ तमिल भाषा में रचा गया है । काठक - कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाओं में से एक शाखा का नाम । उपर्युक्त वेद की चार संहिताएँ ऐसी हैं, जिनमें ब्राह्मणभाग की सामग्री भी मिश्रित है । इनमें से एक 'काठक संहिता' भी है तैतिरीय आरण्यक में अंशतः काठक ब्राह्मण सुरक्षित हैं । । For Private & Personal Use Only बना 'बैकुण्ठ उपर्युक्त दोनों उत्कृष्ट उदा काठक गृह्यसूत्र - काठक गृह्यसूत्र कृष्ण यजुर्वेद शाखा का ग्रन्थ है एवं इस पर देवपाल की वृत्ति है। इसमें गृह्य संस्कारों और पाक यज्ञों का कृष्ण यजुर्वेद के अनुसार वर्णन पाया जाता है । www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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