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________________ १६६ ह्रास होता है तथा युगों की आयु भी क्रमशः ४८०० वर्ष, ३६०० वर्ष, २४०० वर्ष १२०० वर्ष है । सभी के योग को एक महायुग कहते हैं जो १२००० वर्ष का है। किन्तु ये वर्ष दैवी हैं और एक दैवी वर्ष ३६० मानवीय वर्ष के तुल्य होता है, अतएव एक महायुग ४३,२०,००० वर्ष का होता है। कलि का मानवीय युगमान ४.३२,००० वर्ष है। कलि (तिष्य) युग में कृत ( सत्ययुग ) के ठीक विप रीत गुण आ जाते हैं। वर्ण एवं आश्रम का साहू, वेद एवं अच्छे चरित्र का ह्रास, सर्वप्रकार के पापों का उदय, मनुष्यों में नानाव्याधियों की व्याप्ति आयु का क्रमशः क्षीण एवं अनिश्चित होना, वर्वरों द्वारा पृथ्वी पर अधिकार, मनुष्यों एवं जातियों का एक दूसरे से संघर्ष आदि इसके गुण हैं । इस युग में धर्म एकपाद, अधर्म चतुष्पाद होता है, आयु सौ वर्ष की युग के अन्त में पापियों के नाश के लिए भगवान् कल्कि अवतार धारण करेंगे । युगों की इस कालिक कल्पना के साथ एक नैतिक कल्पना भी है, जो ऐतरेय ब्राह्मण तथा महाभारत में पावी जाती है : कलिः शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापरः । उत्तिष्ठस्त्रेता भवति कृतः सम्पद्यते चरन् ॥ [ सोनेवाले के लिए कलि, अँगड़ाई लेनेवाले के लिए द्वापर, उठनेवाले के लिए नेता और चलने वाले के लिए कृत ( सत्ययुग ) होता है । ] कल्कि पुराण ( प्रथम अध्याय ) में कलियुग की उत्पत्ति का वर्णन निम्नांकित है : " संसार के बनानेवाले लोकपितामह ब्रह्मा ने प्रलय के अन्त में घोर मलिन पापयुक्त एक व्यक्ति को अपने पृष्ठ भाग से प्रकट किया। वह अधर्म नाम से प्रसिद्ध हुआ, उसके वंशानुकीर्तन, श्रवण और स्मरण से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है । अधर्म की सुन्दर विडालाक्षी ( बिल्ली के जैसी आँखवाली ) भार्या मिथ्या नाम की थी । उसका परमकोपन पुत्र दम्भ नामक हुआ। उसने अपनी बहिन माया से लोभ नामक पुत्र और और निकृति नामक पुत्री को उत्पन्न किया, उन दोनों से क्रोध नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसने अपनी हिंसा नामक बहिन से कलि महाराज को उत्पन्न किया । वह दाहिने हाथ से जिल्ह्वा और वाम हस्त से उपस्थ ( शिश्न) पकड़े हुए, अंजन के समान वर्णवाला, काकोदर, कराल मुखवाला और भयानक था उससे सड़ी Jain Education International कलियुग दुर्गन्ध आती थी और वह द्यूत, मद्य, हिंसा, स्त्री तथा सुवर्ण का सेवन करने वाला था । उसने अपनी दुरुक्ति नामक बहिन से भय नामक पुत्र और मृत्यू नामक पुत्री उत्पन्न किये। उन दोनों का पुत्र निरय हुआ। उसने अपनी यातना नामक बहिन से सहस्रों रूपों वाला लोभ नामक पुत्र उत्पन्न किया। इस प्रकार कलि के वंश में असंख्य धर्मनिन्दक सन्तान उत्पन्न होती गयीं ।" गरुडपुराण ( युगधर्म ११७ अ० ) में कलिधर्म का वर्णन इस प्रकार है : "जिसमें सदा अमृत, तन्द्रा, निद्रा, हिंसा, विवाद, शोक, मोह भय और दैन्य बने रहते हैं, उसे कलि कहा गया है उसमें लोग कामी और सदा कटु बोलनेवाले होंगे। जनपद दस्युओं से आक्रान्त और वेद पाखण्ड से दूषित होगा । राजा लोग प्रजा का भक्षण करेंगे । ब्राह्मण शिश्नोदरपरायण होंगे। विद्यार्थी प्रतहीन और अपवित्र होंगे । गृहस्व भिक्षा मांगेंगे। तपस्वी ग्राम में निवास करने वाले, धन जोड़ने वाले और लोभी होंगे। क्षीण शरीर वाले, अधिक खाने वाले, शौर्यहीन, मायावी, दुःसाहसी भृत्य ( नौकर ) अपने स्वामी को छोड़ देंगे। तापस सम्पूर्ण व्रतों को छोड़ देंगे । शूद्र दान ग्रहण करेंगे और तपस्वी वेश से जीविका चलायेंगे, प्रजा उद्विग्न, शोभाहीन और पिशाच सदृश होगी । विना स्नान किये लोग भोजन, अग्नि, देवता तथा अतिथि का पूजन करेंगे । कलि के प्राप्त होने पर पितरों के लिए पिण्डोदक आदि क्रिया न होगी । सम्पूर्ण प्रजा स्त्रियों में आसक्त और सूद्रप्राय होगी । स्त्रियां भी अधिक सन्तानवाली और अल्प भाग्यवाली होंगी । खुले सिर वाली ( स्वच्छन्द) और अपने सत्पति की आज्ञा का उल्लंघन करनेवाली होंगी। पाखण्ड से आहत लोग विष्णु की पूजा नहीं करेंगे, किन्तु दोष से परिपूर्ण काल में एक गुण होगा -- कृष्ण के कीर्तन मात्र से मनुष्य बन्धनमुक्त हो परम गति को प्राप्त करेंगे। जो फल कृतयुग में ध्यान से, त्रेता में यज्ञ से और द्वापर में परिचर्या से प्राप्त होता है वह कलियुग में हरि कीर्तन से सुलभ है । इसलिए हरि नित्व ध्येय और पूज्य हैं।" भागवत पुराण (द्वादश स्कन्ध, तीन अध्याय) में कलिधर्म का वर्णन निम्नांकित है : 1 "कलियुग में धर्म के तप शौच, दया, सत्य इन नार पाँवों में केवल चौथा पाँच (सत्य) शेष रहेगा । वह भी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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