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________________ १४६ ऐन्द्रि - ओ स्थापना मन्त्र एवं प्रतिज्ञाओं द्वारा करता है । दे० 'अभि- ऐल — इला का पुत्र पुरूरवा । इसीसे ऐल अथवा चन्द्रवंश का पेक' और 'राज्याभिषेक' | आरम्भ हुआ था। महाभारत ( १७५ १७) में कथन है : पुरूरवास्ततो विद्वानिलायां समपद्यत । सा वै तस्याभवन्माता पिता चैवेति नः श्रुतम् ॥ ऐन्द्रि - इन्द्र का पुत्र जयन्त । बाली नामक वानरराज को भी ऐन्द्रि कहा गया है, अर्जुन का भी एक पर्याय ऐन्द्र है, क्योंकि इन दोनों का जन्म इन्द्र से हुआ था । ऐन्द्री - इन्द्र की पत्नी । मार्कण्डेयपुराण (८८. २२) में कथन है : 'वज्रहस्ता तथैवैन्द्री गजराजोपरि स्थिता ।' दुर्गा का भी एक नाम ऐन्द्री है। पूर्व दिशा, इन्द्र देवता के लिए पढ़ी गयी ऋचा, ज्येष्ठा नक्षत्र भी ऐन्द्री कहे जाते हैं । ऐयनार - एक ग्रामदेवता, जिसकी पूजा दक्षिण भारत में व्यापक रूप से होती है । इसका मुख्य कार्य है खेतों को किसी भी प्रकार की हानि, विशेष कर दैवी विपत्तियों से बचाना । प्रायः प्रत्येक गाँव में इसका चबूतरा पाया जाता है । मानवरूप में इसकी मूर्ति बनायी जाती है । यह मुकुट धारण करता है और घोड़े पर सवार होता है । इसकी दो पत्नियों, पूरणी और पुदुक्ला की मूर्तियां इसके साथ पायी जाती है जो रक्षण कार्य में उसकी सहायता करती हैं । कृषि परिपक्व होने के समय इनकी पूजा विशेष प्रकार से की जाती है। ऐयनार की उत्पत्ति हरिहर के संयोग से मानी जाती है। जब हरि (विष्णु) ने मोहिनी रूप धारण किया था उस समय हर (शिव) के तेज से ऐयनार की उत्पत्ति हुई थी। इसका प्रतीकत्व यह है कि इस देवता में रक्षण और संहार दोनों भावों का मिश्रण है । ऐरावत-पूर्व दिशा का दिग्गज इन्द्र का हाथी, यह श्वेतवर्ण, चार दाँत वाला, समुद्र के मन्थन से निकला हुआ स्वर्ग का हाथी है । इसके पर्याय हैं - अभ्रमातङ्ग, अभ्रमुवल्लभ श्वेतहस्ती, चतुर्दन्त मल्लनाग इन्द्रकुञ्जर, हस्तिमल्ल, सदादान, सुदामा, श्वेतकुञ्जर, गजाग्रणी, नागमल्ल । महाभारत, भीष्मपर्व के अष्टम अध्याय में भारतवर्ष से उत्तर के भूभाग को उत्तर कुरु के बदले 'ऐरावत' कहा गया है। जनसाहित्य में भी यही नाम आया है। इस भाग के निवासियों के विलास एवं यहाँ के सौन्दर्यादि का वर्णन भीष्मपर्व के पूर्व अध्यायों में वर्णित 'उत्तरकुरु' देश के अनुरूप ही हुआ है । Jain Education International [ पश्चात् पुरूरवा इला से उत्पन्न हुआ । वही उसकी माता तथा पिता हुई ऐसा सुना जाता है । ] ऐल अथवा चन्द्रवंश भारतीय इतिहास का बहुत प्रसिद्ध राजवंश है । इसमें पुरूरवा, आयु, ययाति आदि विख्यात राजा हुए। ययाति के पुत्र यदु, पुरु, अनु आदि थे । यदु के वंश का विपुल प्रसार भारत में हुआ 1 ऐश्वर्यं - स्वामित्वसूचक सामग्री; वैभव; ईश्वर का भाव । उसके पर्याय है- विभूति भूति, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, वशित्व, कामावसायिता छः भगों में भी इसकी गणना है : ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसः श्रियः । ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीङ्गना ।। [ सम्पूर्ण ऐश्वर्य, वीर्य, यश, शोभा, ज्ञान और वैराग्य इन छः को भग कहते हैं । ] ऐश्वर्यतृतीया - तृतीया के दिन ब्रह्मा, विष्णु अथवा शिव की पूजा का विधान है। ऐश्वर्य की अभिवृद्धि के लिए तीनों लोकों के साथ तीनों देवताओं का नाम तथा मन्त्रोच्चारण करना चाहिए । दे० हेमाद्रि, व्रतखण्ड, १.४९८ । ओ ओ स्वरवर्ण का त्रयोदश अक्षर कामधेनु तन्त्र में इसका धार्मिक माहात्म्य इस प्रकार है : ओकारं चञ्चलापाङ्गि पञ्चदेवमयं सदा । रक्तविद्युल्लताकारं त्रिगुणात्मानमीश्वरम् ॥ पञ्चप्राणमयं वर्णं नमामि देवमातरम् । एतद् वर्ण महेशानि स्वयं परमकुण्डली | तन्त्रशास्त्र में इसके निम्नांकित नाम हैं : सद्योजातो वासुदेवो गायत्री दीर्घजकः । आप्यायनी चोर्ध्वदन्तो लक्ष्मीर्वाणी मुखी द्विजः ॥ उद्देश्यदर्शकस्तीव्र : कैलासो कैलासो वसुधाक्षरः । प्रणवांशी ब्रह्मसूत्र मजेश सर्वमङ्गला ॥ त्रयोदशी दीर्घनासा रतिनाथ दिगम्बरः । त्रैलोक्यविजया प्रज्ञा प्रीतिबीजादिकर्षिणी ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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