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________________ १२४ मात्र आवश्यक है; किसी शारीरिक अथवा बौद्धिक प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं है । उपासना (१) वेद का अधिकांश भाग कर्मकाण्ड और उपासनाकाण्ड है, शेष ज्ञानकाण्ड है । कर्मकाण्ड कनिष्ठ अधिकारी के लिए है। उपासना और कर्म दोनों काण्ड मध्यम के लिए । कर्म, उपासना और ज्ञान तीनों काण्ड उत्तम के लिए हैं । पर उत्तम अधिकारी कर्म और उपासना को निष्काम भाव से करता है । उपासना व्यक्ति का ब्रह्म के साथ व्यक्तिगत सान्निध्य है। अतः व्यक्तिगत योग्यता और अधिकार भेद से इसके अनेक मार्ग प्रचलित हैं। सभी उपासनापद्धतियों में कुछ बातें सामान्य रूप से सर्वनिष्ठ हैं, जैसे अपने उपास्य का भावात्मक बोध, उपास्य के सान्निध्य में जाने की उत्कण्ठा, सान्निध्य - भावना से आनन्द की अनुभूति अपने कल्याण के सम्बन्ध में आश्वासन | गीता ( ९.२२ ) में भगवान् कृष्ण ने कहा है : " अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते । तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।। [ जो भक्तजन अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए निष्काम भाव से मेरी उपासना करते हैं, उन नित्य उपा सना में रत पुरुषों का योगक्षेम मैं स्वयं वह्न करता हूँ । ] (२) ईश्वर अथवा किसी अन्य देवता की सेवा का नाम भी उपासना है । उसके पर्याय हैं - ( १ ) वरिवस्या, (२) सुश्रूषा (३) परिचर्या और (४) उपासन | देवीभागवत में शक्ति उपासना की प्रशंसा में कहा गया है न विष्णूपासना नित्या वेदेनोक्ता तु कस्यचित् । न विष्णुदीक्षा नित्यास्ति शिवस्यापि तथैव च ॥ गायभ्युपासना नित्या सर्वदेवः समीरिता । यया विना स्वधः पातो ब्राह्मणस्यास्ति सर्वथा ॥ [ विष्णु की नित्य उपासना करना वेदों में कहीं नहीं कहा गया । न विष्णु की दीक्षा और न शिव की दीक्षा ही नित्य है । किन्तु गायत्री की नित्य उपासना सब वेदों में कही गयी है, जिसके बिना ब्राह्मण का अधःपतन हो सकता है । ] उपासनाकाण्ड - वेदों के सभी भाष्यकार इस बात से सहमत हैं कि चारों वेदों में समुच्चय रूप से प्रधानतः तीन विषयों का प्रतिपादन है ( १ ) कर्मकाण्ड, (२) ज्ञानकाण्ड एवं (३) उपासनाकाण्ड । उपासनाकाण्ड ईश्वर - आराधना Jain Education International उपासना उबटाचार्य से सम्बन्ध रखता है, जिससे मनुष्य ऐहिक, पारलौकिक और पारमार्थिक अभीष्टों का सम्पादन कर सकता है। ऋग्वेद के सूक्तों में विशेष रूप से स्तुतियों की अधिकता है। ये स्तुतियां विविध देवताओं की हैं। जो लोग देवताओं की अनेकता नहीं मानते वे इन सब नामों (देवनामों) का अर्थ परब्रह्म परमात्मा का वाचक लगाते हैं । जो लोग अनेक देवता मानते हैं वे भी इन सब स्तुतियों को परमात्मापरक मानते हैं और कहते हैं कि ये सभी देवता और समस्त सृष्टि परमात्मा की विभूति है। इस लिए वे वरुण को जल के देवता, अग्नि को तेज के देवता, द्यौः को आकाश के देवता इत्यादि रूप से विश्व की शक्तियों के अधिपति परमात्मा की विभूति ही मानते हैं । जहाँ पृथिवी की स्तुति है, वहाँ पृथिवी के ही गुणों का वर्णन है। पृथिवी परमात्मा की सृष्टि और उसी की विभूति है पृथिवी की स्तुति के व्याज से परमात्मा की ही स्तुति की जाती है । ये स्तुतियाँ तथा उसके सम्बन्ध की प्रार्थनाएं उपासनाकाण्ड के अन्तर्गत है । उपेन्द्र - वामन (विष्णु ), इन्द्र के छोटे भाई । 'इन्द्र के पश्चात् उत्पन्न होने वाला ।' कश्यप ऋषि एवं अदिति माता से वामन रूप में इन्द्र के अनन्तर उत्पन्न होने के कारण विष्णु का नाम उपेन्द्र पड़ा । उपेन्द्रस्तोत्र - इसे कुछ विद्वान् तमिल देश में रचा गया मानते हैं, परन्तु समझा जाता है कि 'उपेन्द्रस्तोत्र' उत्तर की ही रचना है । किन्तु इसके रचयिता के बारे में कुछ निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता । उपोषण - उपवास; आहारत्याग । तिथितत्त्व में लिखा है। उपोषणं नवम्याच दशम्याचैव पारणम् । [ नवमी के दिन उपवास और दशमी के दिन पारण करना चाहिए ] दे० 'उपवास' उपोषित - उपवास का ही एक पर्याय । मनु (५.१५५) ने कहा है : नास्ति स्त्रीणां पृथम् यज्ञो न व्रतं नाप्युपोषितम् । [ स्त्रियों के लिए यज्ञ, व्रत, उपवास, मे अलग नहीं हैं । ] उबटाचार्य - यजुर्वेद के प्रसिद्ध भाष्यकार निघण्टु के टीकाकार देवराज और भट्टभास्कर मिश्र ने अपने ग्रन्थों में माघवदेव भवस्वामी, गृहदेव, श्रीनिवास और उम्बट आदि भाष्यकारों के नाम लिखे हैं । यह पता नहीं है कि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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