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________________ उत्सव-उत्तरगीता वितरण, (६) स्पर्शन,(७) प्रतिपादन, (८) प्रादेशन, (९) (२) स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत और उसकी (१०) अपवर्जन । इसका अर्थ कर्त्तव्य क्रियाविशेष को रोक दूसरी रानी का पुत्र भी उत्तम नामक था जो आगे चलदेना भी है, जैसा मनु का कथन है : कर तीसरे मन्वन्तर का अधिपति हुआ । पु ये तु छन्दसां कुर्याद् बहिरुत्सर्जनं द्विजः । उत्तमभक्त प्राप्तिव्रत-वसन्त ऋतु में शुक्ल पक्ष की द्वादशी को माघशुक्लस्य वा प्राप्ते पूर्वाह्न प्रथमेऽहनि ।। इस व्रत का अनुष्ठान होता है। विष्णु इसका देवता है। [माघ शुक्लपक्ष के प्रथम दिन के पूर्व भाग में ब्राह्मण दे० वाराह पुराण, ५४.१-१९ । पुष्य नक्षत्र में वेदों का घर से बाहर विसर्जन करे । ] इस उत्तमसाहस-एक ऊँचा अर्थदण्ड ( जुर्माना )। जैसे प्रकार वैदिक अध्ययन-सत्र की समाप्ति का नाम उत्स 'साशीतिपणसाहस्रो दण्ड उत्तमसाहसः ।' जन है। (याज्ञवल्क्य स्मृति) उत्सव-आनन्ददायक व्यापार । इसके पर्याय है-(१) [१०८० पणों का दण्ड उत्तमसाहस कहलाता है । ] क्षण, (२) उद्धव, (३) उद्धर्ष, (४) मह । मनुस्मृति (३. अन्यत्र भी कथन है : ५९ ) में कथन है : पणानां द्वे शते साढे प्रथमः साहसः स्मृतः । तस्मादेताः सदा पूज्या भूषणाच्छादनाशनः । मध्यमः पञ्च विज्ञेयः सहस्रं त्वेव चोत्तमः ।। भूतिकामैननित्यं सत्कारेषत्सवेषु च ।। [ दो सौ पचास पणों का प्रथमसाहस दण्ड, पाँच सौ [ इसलिए सत्कार तथा उत्सवों में लक्ष्मी के इच्छुक पणों का मध्यमसाहस दण्ड और हजार पणों का उत्तममनुष्यों द्वारा भूषण, वस्त्र तथा भोजन के द्वारा स्त्रियों साहस दण्ड होता है। ] का सम्मान करना चाहिए। उत्तरकाशी-उत्तराखण्ड का प्रमुख तीर्थ स्थल । यहाँ अनेक व्रत-ग्रन्थों तथा पुराणों में असंख्य उत्सवों का उल्लेख । थों तथा जगणों में असंख्य उत्सवों का उल्लेख प्राचीन मन्दिरों में विश्वनाथजी का मन्दिर तथा देवाहै। उनमें होलिका दर्गोत्सव विशेष प्रसिद्ध हैं, जिनका सुरसंग्राम के समय छूटी हुई शक्ति ( मन्दिर के सामने का उल्लेख अन्यत्र किया गया है । 'उत्सव' शब्द ऋग्वेद त्रिशूल ) दर्शनीय है । पास ही गोपेश्वर, परशुराम, दत्ता( १.१००.८ तथा १.१०१.२) में मिलता है। इस शब्द त्रेय, भैरव, अन्नपूर्णा, रुद्रेश्वर और लक्षेश्वर के मन्दिर की व्युत्पत्ति उत्पूर्वक 'सु' धातु से है, जिसका सामान्य हैं। दक्षिण में शिव-दुर्गा मन्दिर और पूर्व में जड़भरत अर्थ है "ऊपर उफन कर बहना" अर्थात् आनन्द का अति- का मन्दिर है । इसके पूर्व में वारणावत पर्वत पर विमलेरेक । उत्सव के दिन सामूहिक रूप से आनन्द उमड़ कर श्वर महादेव का मन्दिर है । पूर्व-काशी के समान यह भी प्रवाहित होने लगता है। इसीलिए उत्सवों के दिन प्रसा- भागीरथी गंगा के तट पर असि और वरणा नदियों के धन, गान, भोजन, मिलन, दान-पुण्य आदि का प्रावि- मध्य में बसी हुई है। कहा जाता है कि कलियुग में विश्वधान है। नाथजी वास्तविक रूप में यहीं निवास करते हैं। उतथ्य-महर्षि अंगिरा का पुत्र तथा देवगुरु बृहस्पति का उत्तरक्रिया-पितरों के वार्षिक श्राद्ध आदि की क्रिया, जैसे ज्येष्ठ भ्राता, यथा प्रेतपितृत्वमापन्न सपिण्डीकरणादनु । त्रयस्त्वङ्गिरसः पुत्रा लोके सर्वत्र विश्रुताः । क्रियन्ते याः क्रियाः पित्र्यः प्रोच्यन्ते ता नृपोत्तराः ॥ बृहस्पतिरुतथ्यश्च संवर्तश्च धृतव्रतः ॥ (विष्णुपुराण) [ अङ्गिरा के तीन पुत्र संसार में प्रसिद्ध हैं--(१) बृह [ सपिण्डीकरण के पश्चात् जब प्रेत पितर संज्ञा को स्पति, (१) उतथ्य और (३) व्रतधारी संवर्त । ] महा प्राप्त हो जाता है तब उसके बाद की जानेवाली क्रिया को भारत और पुराणों में इनकी कथा विस्तार से कही गयी है। उत्तर क्रिया' कहते हैं । ] उत्तम-(१) स्वायंभुव मनु के पुत्र महाराज उत्तानपाद उत्तरगीता-'उत्तरगीता' महाभारत का ही एक अंश और महारानी सुरुचि का पुत्र । उत्तानपाद की छोटी रानी माना जाता है । प्रसिद्धि है कि पाण्डवों की विजय और सुनीति का पुत्र ध्रुव था। राज्यप्राप्ति के पश्चात् श्री कृष्ण के सत्संग का सुअवसर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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