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________________ उखा-उज्जैन उखा-यज्ञों से सम्बन्धित हविष्य राँधने का बड़ा पात्र । यह मिट्टी का बना होता था ( मृन्मयी ) । दे० वाजसनेयी संहिता ११.५९, तैत्तिरीय संहिता, ४.१.५४ । उग्र - ( १ ) शंकर का एक नाम; एकादश रुद्रों में से एक । वायुपुराण के अनुसार यह वायुमूर्ति है। (२) क्षत्रिय के द्वारा शूद्र स्त्री में उत्पन्न एक वर्णसंकर जाति । इस सम्बन्ध में मनु का कथन है : क्षत्रियात् शूद्रकन्यायां क्रूराचारविहारवान् । क्षत्रशूद्रवपुरु नाम प्रजायते ॥ [ क्षत्रिय और शूद्रकन्या से उत्पन्न कूर आचार-विहारवान् व्यक्ति उग्र कहा जाता है । ] इसका कार्य बिलों में रहने वाले गोधा आदि को मारना अथवा पकड़ना है । उग्रचण्डा - दुर्गा देवी का एक विरुद । महिषासुर के प्रति भगवती का कथन है : उग्रचण्डेति या मूर्तिर्भद्रकाली हाहं पुनः । यया मूर्त्या त्वां हनिष्ये सा दुर्गेति प्रकीर्तिता ॥ एतासु मूर्तिषु सदा पादलग्नो नृणां भवान् । पूज्यो भविष्यसि त्वं वै देवानामपि रक्षसाम् ॥ [ उग्रचण्डी नाम से प्रसिद्ध जो मूर्ति है वह मैं भद्रकाली हूँ जिस मूर्ति से मैं तुम्हें मारूंगी वह दुर्गा नाम से विख्यात है । इन मूर्तियों में सदा मेरे पाँव के नीचे दबे हु तुम मनुष्यों, राक्षसों तथा देवताओं के द्वारा पूजित होगे । ] उग्रतारा (१) — दुर्गा देवी का एक स्वरूप । जो उग्र भय से भक्तों की रक्षा करती है उसे उग्रतारा कहते हैं । उग्रतारा (२) - देवी का एक प्रसिद्ध पीठ । यह सहरसा स्टेशन (दरभंगा) के पास वनगामहिसी नामक गाँव के समीप है। कुछ लोग इसे 'शक्तिपीठ' मानते हैं। सतीदेह का नेत्रभाग यहाँ गिरा था। यहां एक यन्त्र पर तारा, एकजा तथा नीलसरस्वती की मूर्तियां अङ्कित हैं । इनके अतिरिक्त दुर्गा काली, त्रिपुरसुन्दरी, तारकेश्वर तथा तारानाथ की भी मूर्तियां है । उप्र नक्षत्र तीनों पूर्वा (पूर्वाषाढ पूर्वाभाद्रपदा और पूर्वाफाल्गुनी), मघा तथा भरणी उग्र नक्षत्र कहलाते हैं । ० बृहत्संहिता ( ९७-९८ ) । इनकी शान्ति के लिए धार्मिक कृत्यों का विधान है। उपशेखरा — गङ्गा का एक पर्याय शेखर अर्थात् मस्तक पर गंगा रहती है ।) ( उग्र अर्थात् शंकर के - Jain Education International १०७ उग्रश्रवा - महाभारत का प्रवचन करने वाले एक ऋषि, जो सुत नामक निम्न जाति में उत्पन्न हुए थे । उच्चाटन मन्त्र प्रयोग से किसी को भगाना मारण-मोहन आदि पट् कर्मों के अन्तर्गत इस अभिचार कर्म की गणना है। इसकी देवी दुर्गा है, तिथि कृष्णचतुर्दशी तथा अष्टमी भी है। दिन शनिवार है। जप करने वाले को बालों का सूत्र बनाकर पीड़े के दांतों से बनी हुई माला इसमें पिरोनी चाहिए और जप के समय उसे धारण करना चाहिए। फल इसका उच्चाटन है अर्थात् शत्रु को अपने देश तथा स्थान से भगा देना विशेष विवरण के लिए देखिए 'शारदातन्त्र' | उच्छिष्टभुक भोजन का बचा हुआ भाग इसे फिर खाना तामसिक भोजन के प्रकार में आता है और इसको त्याज्य बताया गया है । भोजन करने के बाद बिना हाथ-मुँह धोया हुआ व्यक्ति कहीं न जाय (न चोच्छिष्टः स्वचिद् व्रजेत् — मनु । ) । उच्छिष्ट गणपति- 'शङ्करदिग्विजय' में गाणपत्यों के छः भेद कहे गये हैं जो गणपति के विभिन्न रूपों तथा गुणों की अर्चा किया करते थे । ये छः रूप हैं : महागणपति, हरिद्रागणपति, उच्छिष्टगणपति, नवनीतगणपति, स्वर्णगणपति एवं सन्तानगणपति । उच्छिष्ट गाणपत्यों का एक वर्ग हेरम्ब गणपति की उपासना किया करता था। उच्चैःश्रवा - इसके कई अर्थ है, यथा- जिसका यश ऊँचा हो, जिसके कान ऊँचे हों अथवा जो ऊँचा सुनता हो । मुख्य अर्थ इन्द्र का घोड़ा है । यह श्वेत वर्ण का है । पुराणों में इसकी गिनती उन चौदह रत्नों में है, जो के समुद्रमन्थन पश्चात् क्षीरसागर से निकले थे । अमृत से इसका पोषण होता है । यह अश्वों का राजा है । इसीलिए श्वेत वर्ण के अश्व महत्त्वपूर्ण और पूजनीय माने जाते हैं। उज्जैन भारत का प्रसिद्ध तीर्थ, जिसका सम्बन्ध ज्योतिर्लिङ्गमहाकाल से है। इस नगर को उज्जयिनी अथवा अवन्तिका भी कहते हैं । यहीं से शिव ने त्रिपुर पर विजय प्राप्त की थी, अतः इसका नाम उज्जयिनी पड़ा । इसका प्राचीनतम नाम अवन्तिका अवन्ति नामक राजा के नाम पर था । दे० स्कन्द पुराण | इस देश को पृथ्वी का नाभिदेश कहा गया है। द्वादश ज्योतिलिङ्गों प्रसिद्ध महाकाल का मन्दिर यहीं है । ५१ शक्तिपीठों में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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