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________________ १८ जैन आगम वाद्य कोश निकलती, केवल स्वर देने के लिए ही इसका प्रयोग किया जाता है। गायक अपने गले के धर्मानुसार इसमें अपना स्वर कायम कर लेते हैं और फिर इसकी झंकार के सहारे उनका गायन चलता रहता है। इसमें दो तुम्बे लगे होते हैं। नीचे का तुम्बा गोल और ऊपर का कुछ चपटा होता है। इसके अन्दर पोल होती है जिसके कारण स्वर गूंजते हैं। तम्बूरे में चार तार होते हैं, जिनमें तीन तार स्टील के तथा चौथा तार पीतल का होता है। उत्तर भारतीय तम्बूरे और कर्णाटकीय तम्बूरे की बनावट में कुछ अन्तर होता है वह इस प्रकार है ३. कर्नाटकीय तम्बूरे की घुड़च में हड्डी के स्थान पर ताम्र-पत्रिका का प्रयोग होता है . उसका दण्ड उत्तर भारतीय तम्बूरे से कम होता है। विभिन्न गायकों के बैठने के अलग-अलग ढंग होते हैं। कुछ एक घुटना नीचा और एक घुटना ऊंचा करके बैठकर तानपूरे का वादन करते हैं। कुछ तानपूरे को जमीन पर लिटाकर वादन करते है। विमर्श-डॉ. लालमणि मिश्र के (भारतीय संगीत वाद्य पृ. ४२) अनुसार तम्बूरे का सर्वप्रथम उल्लेख संगीत पारिजात में प्राप्त होता है, अतः वर्तमान में प्राप्त तम्बूरे का रूप १३वीं शताब्दी के बाद का है। डॉ. मिश्र अगर वैदिक ग्रन्थों के साथ-साथ जैनागमों का अध्ययन करते तो उनकी धारणा स्पष्ट हो जाती कि तुम्बवीणा का वर्णन अति प्राचीन है। जैनागमों में अनेक स्थलों पर इस शब्द का उल्लेख मिलता है। आचार्य मलयगिरि (विक्रम की १२वीं शताब्दी) ने राज. टी. पृ. ४९-५० और जीवा. टी. पृ. २८१ में “तुम्बा युक्ता वीणा येषां ते तुम्बवीणाः” कह कर तुम्बवीणा वाद्य की पुष्टि की है। अतः तुम्बवीणा प्राचीन वाद्य है। (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-भारतीय संगीत वाद्य) तुडिय (तूर्य) पज्जो. ९, ५४, ठाणं ८/१०, १. उत्तर भारतीय तम्बूरे में तबली के नीचे लौकी । दसा. १०/१८,२४, औप. ६८ का तुम्बा लगाया जाता है जबकि कर्नाटकीय तुरुतुरी, तित्तरी, तुण्डकिनी, तुरही, तूर्य, तातुरी, तम्बूरे में उस स्थान पर लकड़ी का ही प्रयोग कोम्बु (दक्षिण भारत) कहल (उड़ीसा) तुतरी होता है। (मराठी) २. कर्नाटकीय तम्बूरे की तबली सपाट होती है। आकार-चंद्राकार, सर्पाकार, अंग्रेजी के सी अक्षर वह उत्तर भारतीय तम्बूरे की भांति बीच से उठी के आकार आदि का २ से ४ हाथ लम्बा सुषिर नहीं रहती। वाद्य। पाया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016097
Book TitleJain Agam Vadya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size5 MB
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