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________________ लिङ्गाविसंग्रहवर्गः ५] मणिप्रभाध्याख्यासहितः। ५४७ मूषा सृपाटी कर्कन्धूर्यष्टिः शाटी कटी कुटी।। ३८ ॥ इति स्त्रीपुंल्लिङ्गसंग्रहः । अथ स्त्रीनपुंसकलिङ्गसंग्रहः। १ स्त्रीनपुंसकयो २ र्भावक्रिययोः व्यचिञ्च वुत्र ! औचित्यमौचिती मैत्री मंत्र्यं प्रागुवाहतः ।। ३९ ॥ ३ षष्टयन्तप्राक्पदाः सेनाछायाशालामुरानिशाः । मनु या मनुष्य, मानुशी), मूषः मूषा (सोना-चाँदी क्षादि धातु गलाने की धरिया), सपाटः सपाटी (परिमाण-भेद), कर्कन्धूः (बैर-), यष्टिः (छड़ी, लाठी), शारः शाटी (साड़ी). कटः कटी ( कमर ), कुटः कुटी ( कुटिया ), ये शब्द स्त्रीलिङ्ग और पुखिकङ्ग होते हैं । ( इनमें एक रूपवाले शब्द दोनों लिङ्गमें तुल्यरूप होते हैं )। इति स्त्रीपुंल्लिङ्गसंग्रहः । अथ स्त्री नपुंसकलिङ्गसंग्रहः । । यहाँसे आगे 'त्रिषु' (३।५।४१) के पहले 'स्त्रीनपुंसकयोः' इसका अधिकार होने से इसके मध्यवर्ती ( बीचबाले ) शब्द 'स्त्रीलिङ्ग और नपुंसकलिङ्ग' . भाव और कर्म में विहित व्यञ् । और बुञ् । प्रत्ययान्त शब्द कहींकहीं (सर्वत्र नहीं किन्तु लचपानुसार ) स्त्रीलिङ्ग और नपुंसकलिङ्ग होते हैं। ('क्रमशः उदा०-१ (व्या प्रत्ययान्त ) जैसे-औचिस्यम् औचितो, मध्यम् मैत्री, सामप्रयम् सामग्री, आईन्स्यम् भान्ती,....। १ (वुन् प्रत्ययान्त) का 'वैस्मैथुनकादिवु (२५४ ) में उदाहरण दिया गया है')। 'क्वचित्। (कहीं २ सर्वत्र नहीं ) ग्रहण करनेसे 'शौक्ल्यम् , ब्रह्मण्यम् , रामणीयकम् , साहाय्यकम् , शैष्योपाध्यायिका, गार्गिका, काठिका....." यहापर दोनों लिङ्ग (स्त्रीलिङ्ग और नपुंसकलिङ्ग) नहीं होते हैं । ३ षष्ठयन्त पूर्वपदमें रहनेपर सेना १, छाया २, शाला ३, सुरा ४, निशा ५, विकलरसे स्त्रीलिङ्ग (स्त्रीलिङ्ग और पक्ष में नपुंसकलिङ्ग) होते हैं । ('क्रमशः उदा०-1 नृसेनम् नृपेना, राजसे नम राजसेना,.....। वृक्षच्छायम् वृक्षच्छाया, कुड्यच्छायम् कुडयच्छाया,....' । ३ गोशालम् गोशाला, पाठ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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