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________________ ५०० अमरकोषः। । तृतीयकाण्ड १ कर्पूर्वार्ता करीषामिः कः कुल्याभिधायिनी। २ भावे तरिक्रयायां च पौरुष ३ विषमप्सु च ।। २२३ ।। ४ उपादानेऽप्यामिषं स्या ५ दपराधेऽपि "किरिवषम् । ६ स्याद् वृधी लोकधास्वंशे वत्सरे वर्षमलियाम् ।। २२४ ।। ७ प्रेक्षा नृत्येक्षणं प्रक्षा ८ भिक्षा सेवाऽऽर्थना भृतिः । १ रिघट शोभाऽपि १० त्रिषु परे ११व्यक्ष कासयनिकश्योः ॥२२५॥ (पु) के जुआ खेलनेका पाशा, कर्ष ( सोलह मासा, प्रमाण-विशेष), पहिया, बहेबा, व्यवहार ( आय व्ययका विचार अर्थात् लेन देन ), ५ अर्थ है ॥ ''कडूः' (पु) का खेती (जीविका), उपला (गोहरा, गोइंठा ) का भार, २ अर्थ और 'ग' (बी) का नहर, १ अर्थ है। २ पौरुषम्' (न) के पुरुषका भाव, पुरुषका कर्म (पुरुषार्थ), तेज १ अर्थ और 'पौरुषम' (त्रि) का पोरसा (हाथ उठाये हुए मनुष्य के साढ़े चार हाथका प्रमाण विशेष) १ अर्थ है। ३ 'विषम्' ( न) के जल, जहर, २ अर्थ हैं॥ ४ 'आमिषम्' (नपु) के उपादान (घूस, रिस्वत), भोग्य वस्तु, संभोग, मांस, " अर्थ हैं। ५ किलिषम्' (+किल्मिषम् । न) के अपराध, पाप, रोग, ३ अर्थ हैं । ६ वपम् (पु न ) के वर्षा, जम्बूद्वीपके खण्ड (१।। में उक्त भारत आदि नव वर्ष), वर्ष (साल), ३ अर्थ और 'वर्षा' (स्त्री नि० ब० व.) का वर्षा ऋतु, १ अर्थ है ॥ ७ 'प्रेक्षा' (स्त्री)के नाच, देखना (+ नाच देखना, बुद्धि, ३ अर्थ हैं ।। ८ भिक्षा' (स्त्री) के सेवा, याचना, वेतन, भिक्षा में मिला हुआ पदार्थ, ५ अर्थ हैं ॥ ९ स्विट' ( = स्विष स्त्री ) के शोभा, वचन, तेज, ३ अर्थ हैं। १० य हांसे आगे सब पकारान्त शब्द त्रिलिङ्ग हैं । ११ 'न्यक्षम्' (त्रि ) के साकल्य, नीच, २ अर्थ यक्ष:' (पु) का परशुराम, ५ अर्थ है। १. 'किल्मिषम् इति पाठान्तरम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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