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________________ ४२६ अमरकोषः। [तृतीयकाण्डे ~१ खुरेऽव्यश्वस्य वर्तकः ! २ व्याघ्रऽपि पुण्टीको ना ३ यधान्यामपि दापकः ।। ११ ।। ४ शालावृशाः कपिझोष्टुश्वान: मणेऽपि गैरिकम् । ६ पाडार्थेऽपि व्यताक स्या ७ दलाक त्वप्रियेऽनृते ।। १२ ।। ८ शालान्वयाननूके ये ९ शल्के शकलवल्कले। साधे शते सुवर्णा हेम्न्युगेभूषणे पले ।। १३ ।। दीनारेऽपि च निष्कोऽस्त्री११कल्कोऽस्त्रीशमलंनसोः । दभ्येऽप्य१२थ पिनाकोऽम्त्री शूलशङ्करधन्धनोः ।। १४ ।। , 'वर्तकः' (पु) के सुम (घोड़े का खुर), 'वत्तक' नामका पक्षी, २ अर्थ हैं। २ 'पुण्डरीक:'(पु) के बाघ, भाग, दिग्गज, ३ अर्थ और 'पुण्डरीकम्' (म) के सफेद छाता, औषध-विशेष, श्वेत कमल, ३ अर्थ हैं । ३ 'दीपकः' ( + दीप्यकः । पु) के अजमोदा जवाइन, मोरशिखा, चिराग, ३ अर्थ और 'दीपकम्' (न) का दीपकालकार, , अर्थ है ॥ ४ 'शालावृकः' (+मालावृकः । पु) के बन्दर, स्यार, कुत्ता, ३ अर्थ हैं। ५ 'गैरिकम् (न) के सुवर्ण (सोना), गेरू (एक प्रकारका धातुविशेष), १ अर्थ हैं। ६ 'यलीकम् (न) के पीडा, वैलचय, २ अर्थ हैं। ७ 'अलीकम्' (न) के अप्रिय, झूठ ( असत्य), ललाट, ३ अर्थ हैं। ८ 'अनूकम्' (न) के शील, वंश, १ अर्थ हैं । २ 'शल्कम् (न) के खण्ड (टुकड़ा या हिस्सा ), छिलका २ अर्थ हैं ।। 1. 'निष्कः' (पु न ) के १०८ अशर्फी सोने का बना हुआ छातीका भूषण (चन्द्रहार, सिकड़ी, हलका आदि) सोने का पल ( ४ भरी सोना), मोहर, (अशर्फी), ४ अर्थ हैं । " 'कल्कः ' (पु न ) के मैला (विट), पाप, दम्भ, ३ अर्थ हैं । ११'पिनाक' (पु न ) के शङ्करजीका त्रिशूल, शङ्करजीका धनुष, धूलि. की वर्षा, ३ अर्थ हैं ॥ १. 'सालाकाः' इति पाठान्तरम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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