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अमरकोषः ।
[ तृतीयकाण्डेपरिभाषा१ 'स्त्रीदाराधैर्यद्विशेष्यं यादृशैः प्रस्तुतं पदैः । गुणद्रव्यक्रियाशब्दास्तथा स्युस्तस्य भेदकाः॥२॥
१. अथ विशेष्यनिघ्नवर्गः। २ सुकृती पुण्यवान् धन्यो
, मिस प्रकार सीलिज. पुंलिङ्ग आदि सहित (बी, वारा, कलत्र,...... शब्द) पदोंसे स्त्री, दारा, कलन आदि जो विशेष्य हैं, उनके भेदक गुण (सुकृती, साधु, .....") द्रव्य (दण्ड,...") और क्रिया (पढ़ना, पढ़ाना, पकाना, बोलना,..... ) से युक्त शब्द वैसे ही होते हैं अर्थात् प्रथम काण्डमें प्रायः रूप आदिके भेदसे लिङ्गका ज्ञान होता है, किन्तु इस (सामान्य) काण्डमें जो शब्द कहे गये हैं, वे शब्द 'गुण, द्रष्य और क्रिया' से युक्त विशेष्यों के अधीन है। ('तीनोंके क्रमशः उदाहरण | १ गुणयुक्त जैसे-सुकृतिनी, सान्वी पुण्यवती वा खी; सुकृतिना, साधवा, पुण्यवन्तो वा दाराः; सुकृति, साधु, पुण्यवत् वा कलत्रम् ;........." । २ द्रव्ययुक्त जैसे-दमिनी स्त्री, दण्डिमो बाराः, दणि कलनम् ; .......। ३ कियायुक्त जैसे-'अध्यापिका सी, अध्यापका दारा:, अध्यापकं कलत्रम्..... । इन उदाहरणों में 'स्त्री, दारा और कलन' शब्दोंके क्रमशः 'सीलिज, पुंलिज और नपुंसक लिग' होने से गुणयुक्त 'सुकृती, साधु,.....' शब्द, द्रव्ययुक्त 'दण्डि,..' शब्द और क्रियायुक्त 'अध्यापिका,..." शब्द भी क्रमशः 'स्त्रीलिज, पुंखिङ्ग और मपुंसकलिमें ही प्रयुक्त होते हैं। इसी तरह अन्यत्र भी समझना चाहिये')॥
१. अथ विशेष्यनिघ्नवर्गः। । सुकृती ( = सुकृतिन् ), पुण्यवान् (पुण्यवत् ), धम्या (३त्रि), भाग्यवान्' के नाम हैं। १. दाराबम्इति पाठो युक्तः। 'सीदाराचरित्येके, सीपुन्नपुंसकैरिस्वर्थ' इति क्षी० सा० ।
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