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________________ पप्रियवर्गः ] मणिप्रभाव्याख्यासहितः। २७१ १-शक्तयस्तिनः प्रभावोत्साहमन्त्रजाः । २ क्षयः स्थानं च वृद्धिश्च त्रिवर्गो नीतिवेदिनाम् ॥ १९ ॥ ३ स प्रतापः प्रभावश्च यत्तेजः कोषदण्डजम् । ४ भेदो दण्डः साम दानमित्युपायचतुष्टयम् ॥२०॥ १ शक्तिः (स्त्री), 'शक्ति' अर्थात् 'सामर्थ्य' 'प्रभात्र, उत्साह और मन्त्र (गुप्त सलाह से होती है अर्थात् प्रभावज, उत्साहज और मन्त्रज' थे। शकिया हैं। (कोष और दण्ड बल प्रभावज शक्ति १, विक्रम बल उत्साहज शक्ति २, और सन्धि आदि पड्गुण तथा सामादि उपायका यथावत् प्रयोग मन्त्रज शक्ति ३, है')। . २ क्षयः (पु), स्थानम् (न), वृद्धि (लो), क्रमशः कृषि आदि अष्टवर्गकी कमी होने को क्षय, सामान्य रहने (कमी-बेपी नहीं होने) को स्थान और बढ़ने को वृद्धि कहते हैं । ये ही तीनों (यः, स्थानम् , वृद्धिः), नीति जाननेवालोंका त्रिवर्ग है; त्रिवर्गः (पु), है ॥ ३ प्रभावजा, प्रतापः (२ पु), 'प्रताप' अर्थात् 'खजाने तथा शासनसे उत्पन्न तेज' के १ नाम हैं । ४ भेदः, दण्डः (पु), साम ( = सामन् ), दानम् (२ न), क्रमशः वैरी मन्त्री आदिको गुरुचर आदिके द्वारा फोड़कर अपने पक्ष में लाकर शत्रुको वशमें करनेको भेद १, अपराधियों शासन करने को दण्ड २, मोठे वचन या अन्यान्य उपायोंसे क्रोध दूर करनेको साम ३ और किसी वस्तु के देनेको दान कहते हैं। ये ही चारो (भेदः, दण्डः, साम दानम्), नीति जाननेवालों के उपाय, उपायः (पु) है। (१ भेदके तीन, २दण्डके दो चार, १. अष्टवगों यथा-कृषिर्वणिक्पथो दुर्गः सेतुः कुञ्जरबन्धनम् । खन्याक र बलादानं शून्यानां च विवेचनम् ॥ १॥ इति ।। २. तदुक्तं याशवल्क्येन _ 'उपायाः साम दानं च भेदो दण्डस्तथैव च ।। इति याश० स्मृ० ११३४६ । मनुं प्रति मत्स्येनोपायस्य सप्तविधवमुक्तं तथा हि 'साम भेदस्तथा दानं दण्डश्च मनुजेश्वर । उपेक्षा च तथा माया इन्द्रजालंच पार्थिव ॥१॥ प्रयोगाः कथिताः सप्त तन्मे निगदतः शृणु' वीर० राज० प्रक० पृ० २८० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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