SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४२ अमरकोषः। [द्वितीयकाण्ड१ अनूचानः प्रवचने साङ्गेऽधीती २ गुरोस्तु यः । लब्धानुसः समावृत्तः ३ सुत्वा स्वभिषवे कृते ॥१०॥ ४ छात्रान्तेवासिनो शिष्ये ५ शैक्षाः प्राथमकल्पिकाः। ६ एकब्रह्मवताचारा मिथः सब्रह्मचारिणः ॥ ११ ॥ ७ सतीर्थ्यास्त्वेकगुरवश्चितवानग्निमग्निचित् रघुने विश्वजित् यज्ञकर सर्वस्व दक्षिणा दी थी। विश्वजित् आदि यज्ञका यह नाम है, यह भा. दी० का मत चिश्य है')॥ मनूचानः (पु), 'व्याकरण आदि ६ अङ्गोंके सहित वेदको पढ़नेवाले' का नाम है ॥ २ समावृत्तः (पु), 'गुरुकी आक्षा पाकर गृहस्थाश्रममें रहने के लिये गुरुकुलसे लौटे हुए ब्रह्मचारी का नाम है ॥ २ सुस्वा (सुस्वन् पु), 'यक्षके अन्तमें अवभृथनामक स्नान किये हुए' का । नाम है। - छात्रः, अन्तेवासी ( = अन्तेवासिन् ), शिष्यः (३ पु), 'शिष्य, छात्र के ३ नाम हैं। ५ शैक्षाः, प्राथमकल्पिकाः (२ पु । बहुवचन अविवक्षित होनेसे एकवचन भी होता है।) 'अध्ययनको प्रथम भारम्भ किये हुए ब्रह्मचारी आदि' के नाम हैं। सब्रह्मचारिणः ( = सब्रह्मचारिन् , पु) आपसमें समान वेद, समान वत और समान आचारपाले ब्रह्मचारियों का नाम है। ७ सतीयः, एकगुरुः (मा० दी । २), 'सहपाठी, एक गुरुसे पढ़नेवाले' के नाम हैं। ८ अप्रिथित (पु), 'अग्निहोत्री' का । नाम है ॥ १. यथाऽ रघुवंशे कविकुलकमलदिवाकरः कालिदासः __ 'स विश्वजितमाठे यशं सर्वस्वदक्षिणम्' इति रघुवंशः ४६ ८६ ॥ २. तदुक्कं हेमाद्रिणा चतुर्वर्गचिन्तामणो दानबण्डस्य परिभाषाख्ये तृतीयप्रकरणे 'वेदवेदाङ्गतत्वहः शुद्धास्मा पापवर्जितः। शेष मोत्रियवसाय खोऽनूचान इति स्मृतः ॥१॥ इति चतु चिन्ता.दा. खं०१० २८॥ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy