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________________ ब्रह्मवर्गः ७ ] मणिप्रभा व्याख्यासहितः । २४१ यष्टश च १ मन्त्रव्याख्याकृदाचार्य २ 'आदेश त्वध्वरे व्रती ॥ ७ ॥ यजमानश्च ३ स सोमवति दीक्षितः । ४ इज्याशीली यायजूको ५ यक्ष्वा तु विधिनेष्टवान् ॥ ८ ॥ स गीर्पतीच्या स्थपतिः ७ सोमपीथी तु सोमपाः । ८ सर्ववेदाः स येनेष्टो यागः सर्वस्वदक्षिणः ॥ ९॥ '' आचार्यः (पु), 'आचार्य' अर्थात् 'मन्त्रोंकी व्याख्या करनेवाले या शिष्यका यज्ञोपवीत संस्कारकर करूप और रहस्यके सहित वेदको पढ़ानेवाले ब्राह्मण' का नाम है ॥ २ व्रती ( = वतिनू ), यष्टा ( यष्टु ), यजमानः (पु), 'यजमान' अर्थात् 'यज्ञ करनेवाले' के ३ नाम हैं । ३ दीक्षितः (पु), 'सोमवत्' ( अनिष्टोमादि ) यक्षमें ऋत्विजों को मादेश देनेवाले यजमान' का १ नाम है ॥ यायजूकः ( २ ), 'बारबार यज्ञ करनेवाले' के ४ इज्याशीलः २ नाम हैं ॥ ५ यज्वा ( = यज्वन् पु ), 'विधिपूर्वक यश किये हुए' का १ नाम है ॥ ६ स्थपतिः (पु), 'बृहस्पतिके मन्त्रसे यश करनेवाले' का १ नाम है ॥ ७ सोमपीथी ( सोमपीथिन् । + सोमपीती = सोमपीतिन् ), सोमपाः ( + सोमपः । २ पु ), 'सोमयज्ञ करनेवाले' के २ नाम हैं ॥ ८ सर्ववेदाः (= सर्ववेदस पु), 'यश में सर्वस्व दक्षिणा देनेवाले' का १ नाम है । ( 'विश्वजित् आदि यज्ञों में सर्वश्व दक्षिणा दी जाती है, जैसे " १. 'आदिष्टो इति पाठान्तरम् ।। २. स तु गोष्पतीष्टया स्थपतिः सोमपीती तु सोमपाः' इति पाठान्तरम् ॥ आचार्यलक्षणमुक्तं मनुना 'उपनीय तु यः शिष्यं वेदमध्यापयेद् द्विषः । सकर सरहस्यं च तमाचार्य प्रचक्षते' ॥ १ ॥ इति मनुः २।१४० ॥ १६ अ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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