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________________ नाटयवर्गः .] मणिप्रभाव्याख्यासहितः। ७१ १ भ्रकुंसश्च भ्रकुंसश्च भ्रकुंसश्चेति नर्तकः। स्त्रीवेषधारी पुरुषो २ नाट्योक्तौ ३ गणिकाज्जुका ॥ ११ ॥ ४ भगिनीपतिरावुत्तो ५ भावो विद्वान ६ थावुकः। जनको ७ युधराजस्तु कुपारो भर्तृदारकः ॥ १२ ॥ ८ राजा भट्टारको देव ९ स्तत्सुता मतदारिका । १० देवी कृताभिषेकाया ११ मितरासु तु भट्टिनी ॥ १३ ॥ १ भ्रकुंसः, भ्रुकुंसः, भृकुं: ( + कुंसः । ३ पु), स्त्रीका रूप बनाकर नाचनेवाले पुरुष के ३ नाम हैं । २ 'नाट्योती' इस पदका 'अङ्गहारः' (११७१६ ) के पहलेतक अधिकार होने से आगे कहे जाने वाले नामोका प्रयोग नाटक में ही होगा, अन्यत्र नहीं॥ ३ गणिका, अज्जुका (२ स्त्री) 'वेश्या' के २ नाम हैं । " भावुत्तः (+भाबूत्तः । पु), 'बहनोई' अर्थात् 'बहनके पति' का नाम है॥ ५ मावः (पु), 'विद्वान्' का नाम है ॥ ६ माधुकः (पु), 'पिता' का । नाम है ॥ ७ युवराजः, कुमारः (२ पु । म कुमारः, भर्तृदारकः) 'युवराज' के नाम हैं। ८ भट्टारकः, देवः (२ पु), 'राजा' के २ नाम हैं। ९ भर्तृदारिका (स्त्री), 'राजकुमारी' का १ नाम है। १० देवी (स्त्री), 'पटरानी' का नाम है। " 'भट्टिनी (स्त्री), 'राजाकी दूसरी सामान्य स्त्रियों का । नाम है ॥ 'भयमत्र प्रयोगक्रमः'गणिकानुचरैरज्जुकेति नाम्ना नृपेण सा । युवराजस्तु सर्वेण कुमारो भर्तृदारकः ॥१॥ भट्टारको वा देवोवावाच्यो भृत्यजनेन सः । ब्राह्मणेन तु नाम्नवराजनित्यषिमिःसच ॥ २॥ वयस्य राजनिति बाविदूषक इमं वदेत ।अभिषिक्ता तुराशाऽसौ देवीत्यन्या तु मोगिनी ।।३॥ मट्टिनीत्यपरैरन्या नोचैर्गोस्वामिनीति सा' ॥ इति ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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