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________________ प्रतिवप् प्रतिवप् १ प० वादधुं (२) रोपवुं (३) जडबुं; सखत चोटाडवु प्रतिविधातव्यम् 'सावचेती रासवी जोइए'; 'सामां पगलां लेवां जोईए' प्रतिशाखा स्त्री० डाळीमांथी फूटेली डाळी; उपशाखा प्रतिष्ठान न० जुओ पृ० ६१३ प्रतीप पुं० दुश्मन; विरोधी ( २ ) शंतनु राजाना पिता; भीष्मना दादा प्रत्यधिदेवता स्त्री० सामे के नजीक रहेती कुळदेवी प्रत्यरि पुं० बरोबरियो शत्रु ( २ ) जन्मनक्षत्रथी ९ मुं, १४ मुं के २३ मुं नक्षत्र (३) स्वनक्षत्रथी दिननक्षत्र सुधीनी संख्याने नवे भागतां पांचमी तारा प्रत्याम्नाय पुं० प्रतिनिधि; अवेजी प्रत्याश्वास पुं० श्वास लेवो ते; विश्रांति प्रद्युम्न पुं० जुओ पृ० ६१४ प्रद्योत पुं० जुओ पृ० ६१४ प्रधानमल्लनिबर्हणन्यायः जुओ पृ० ६३४ प्रपंचन न० निरूपण; विस्तार प्रपंचयत प० ( विस्तारथी समजाववुं ) प्रब्रू २ उ० जाहेर करवुं ( २ ) पोकार ( ३ ) कहेवुं ( ४ ) शीखववुं ( ५ ) प्रशंसा करवी प्रभाववत् वि० शक्तिशाळी ( २ ) भव्य प्रमहस् वि० महा तेजस्वी के प्रभाववाळु प्रमिला स्त्री० जुओ पृष्ठ ६१४ प्रमृष्टि स्त्री० लुछवं - मांज-साफ क प्रयाग न० जुओ पृ० ६१४ बक पुं० जुओ पृ० ६१४ बदरिकाश्राम पुं० जुओ पृ० ६१४ बदरीतपोवन न० बदरिकाश्रम पासेनुं तपोवन Jain Education International ६९९ बलराम प्रलंबबाहु वि० नीचेनी बाजु लटकता हाथवाळं [ पेट प्रण न० सीधो ढोळाव ( २ ) कराड (३) प्रश्नपूर्वकेन अ० परीक्षा पछी ० आगळ लंबावेलो आंगळी प्रसृष्टा स्त्री० (२) लडाईमा एक दाव (आखा शरीरने सकंजामां लें ) प्रस्फुरिताषर वि० नीचलो होठ कंपतो होय तेवुं प्रस्रवण पुं० जुओ पृ० ६१४ [ तेवुं प्रहतमुरज वि० ढोल-मृदंग वागतां होय प्रह्लाद पुं० जुओ पृ० ६१४ प्रह्वल १ प० कंप; धूजबुं प्राग्ज्योतिष न० जुओ पृ० ६१४ प्राची स्त्री० पूर्व दिशा प्राजित पुं० सारथि [ मानना प्राज्ञमानिन् वि० पोताने पंडित - डाहधुं प्रातिकूलिक वि० प्रतिकूळ के विरोधी एवु [ मुख्यत्वे प्राधान्यतः अ० मुख्य मुख्य होय एम; प्रायश्चेतन न० प्रायश्चित्त प्रार्च् १ ५० प्रशंसा करवी - प्रेरक ० संमानवु; पूजवुं प्रार्थनासिद्धि स्त्री० इच्छा पूर्ण थवी ते प्रियदत्ता स्त्री० पृथ्वी ( मांत्रिक नाम ) प्रीतिच्छेद पुं० आनंदनो नाश प्रैष्य न० नोकरी; चाकरी; दासत्व प्रोड्डी ( प्र + उद् + डी ) ऊंचे ऊडबु प्रोद्दीप्त वि० सळगतुं; वळतुं प्रोन्नत वि० शक्तिशाळी; मजबूत प्लक्ष पुं० जुओ पृ० ६१४ [वाळी) लायित वि० पार करावनाएं ( होडी बधिरकर्णजपन्यायः जुओ पृ० ६३४ बभ्रुवाहन पुं० जुओ पृ० ६१४ बल, बलभद्र, बलराम पुं० जुओ पृ० ६१४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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