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________________ पंचत्वं नी ६९७ पित्तभेद पंचत्वं नी मारी नांखवू; नाश करवो पारशवी स्त्री० शूद्र स्त्रीथी थयेली पंचनद पुं० जुओ पृ० ६१२ [चाल ब्राह्मणनी पुत्री पंचर्चावदुप्रसृत न० नृत्यमा एक प्रकारनी पारश्वधिकरान पुं० परशुराम पुत्र पंचवटी स्त्री० जुओ पृ० ६१२ पारसबपुं० शूद्र स्त्रीथी थयेलो ब्राह्मणनो पंचष वि० (ब०व०) पांच अथवा छ । पारसीक पुं० जुओ पृ० ६१३ पंचसट पुं० वच्चे वच्चे वाळनी पांच लट पारिपात्र पुं० जुओ पृ० ६१३ राखीन मूंडी नाखेलो पारिभद्र पुं० देवदारनुं वृक्ष (२) मंदार पंचार रस न० मंडणि ऋषिए बनावेलं वृक्ष (३) कडवो लोमडो एक सरोवर पारिमाण्य न० वेरावो; परिघ पंचाल पुं० जुओ पृ० ६१३ । पारियात्र पुं० जुओ पृ० ६१३ पंचांगविनिर्णय पुं० राजनीतिनां पांच पार्थिवपुत्रपौत्र पुं० युधिष्ठिर राजा अंग (जुओ पृ० २७७) बराबर छे (पार्थिवपुत्र-सूर्य, तेनो पुत्र यम-धर्मके नहि तेनो निश्चय राज, तेनो पुत्र) पंपरबालनन्यायः जुओ प० ६३४ पार्वती स्त्री० जुओ पृ० ६१३ पंपा स्त्रो० जुओ पृ० ६१३ पार्षत पुं० द्रुपद (२) धृष्टद्युम्न पाकयज्ञ पुं० घरमां करातो सादो यज्ञ पार्वती स्त्री० द्रौपदी (पार्षत-द्रुपदनी पाकशासन पुं० इंद्र (पाक नामना पुत्री) हांडी राक्षसने हणनार) पालिका स्त्री० पाळी-छरी(२)पळी(३) पासवरलुंठिते वेश्मनि यानिकजाग पावकीय वि० सळग; अग्निमय रमम् जुओ पृ० ६३४ पावन न० पावन - पवित्र करवू ते पाटलिपुत्र जुओ पृ० ६१३ पावित वि० पावन - शुद्ध करेलु पाणिनि पुं० जुओ पृ० ६१३। पाशफपीठ न० जुगार खेलवानुं घर पातालमुख न० पाताळना मों जेवो के मेज मोटो खाडो पाशुपाल्य न० पशु पाळवां-उछेरवां ते पांवलेय वि. भोजन वखते एक ज पातित्य न० जातिभ्रष्टता पंक्तिमा बेसवा योग्य . पात्रयति प० (पाणी पीवाना वासण पांचालेय पुं० द्रौपदीनो पुत्र तरीके वापर) पांचाल्य पुं० द्रुपद (पांचालोनो राजा) पात्रसंचार पुं० भोजन-समारंभ वखते पांडु पुं० जुओ पृ० ६१३ । वासणो मूकवां ते पांडुसोपाक पु० ते नामे एक मिश्र जाति पाज पुं० शूद्र पांड्य पुं० जुओ पृ० ६१३ पादरक्षाः पुं०ब०व० रणांगणमां हाथीना पाथदुर्गा स्त्री० रस्ता उपरनी देवता पगर्नु रक्षण करता सशस्त्र सैनिको पांसुविकर्षण न० जमीन उपर थतुं पादाष्ठील पुं० पगनो गूडो-नळो मुष्टियुद्ध; कुस्ती-दंगल (२) रेतीमां पानप वि० दारूडियु रमवू ते पापक पुं० पापी माणस (२) अनिष्ट पिचंड पुं०, न० उदर; पेट असर करनार ग्रह [जन्मेलु पितृमेध पुं० पितृओने उद्देशीने करवामां पापवंश दि० भ्रष्ट - पापी कुळमां आवतो यज्ञ ; पितृतर्पण [पित्तक्षोभ पारवये वि० शत्रुपक्षन पित्तभेद पुं० पित्त धातुनी विकृति; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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